काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

उद्देश्य और परिचय

मित्रों, व्यंग्य, साहित्य की एक गम्भीर विधा है । व्यंग्य और हास्य में बड़ा अन्तर होता है । हास्य सिर्फ हॅसाता है पर व्यंग्य कचोटता है, सोचने पर मजबूर कर देता है । व्यंग्य आहत कर देता है । सकारात्मक व्यंग्य का उद्देश्य किसी भले को परेशान करना नहीं बल्कि बुराइयों पर प्रहार करना है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक हो । सुदर्शन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, बुराइयों, कुरीतियों, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, बाजार, फिल्म, मीडिया, इत्यादि पर एक कटाक्ष है ।

लोग पूछते हैं क्या व्यंग्य साहित्य से सामाजिक परिवर्तन या क्रांति हो सकती है। मेरा जवाब है नहीं! पर व्यंग्य सामाजिक परिवर्तन की चेतना उत्पन्न करता है और परिवर्तन या क्रांति के लिए मानसिक तैयारी करता है।स्व0 – -हरिशंकर परसाई

साहित्य जो कि बड़े बूढ़ों के अनुसार हमेशा से एक ऐब रहा है और ऐयाशी के लक्षण हैं, ऐसे कुछ दुर्गुण खाकसार के अन्दर भी विद्यमान हैं । आज के समय में साहित्य सेवा वाकई में ऐयाशी है क्योंकि किताबें बहुत मॅंहगी होती हैं और इनको खरीदना हाथी पालने के बराबर या बीवी पालने के बराबर है । सुदर्शन समर्पित है हिन्दी हास्य व्यंग्य के पांच पाण्डवों को ।

  1. स्व. हरिशंकर परसाई

  2. स्व. शरद जोशी

  3. स्व. रवीन्द्रनाथ त्यागी

  4. स्व. मनोहर श्याम जोशी

  5. श्री श्रीलाल शुक्ल

इन पांडवों की हजारों व्यंग्य रचनाओं को पढ पढ कर मैंने थोड़ा बहुत लिखना सीखा है । मेरे लेखन में अगर आपको कहीं-कहीं श्रंगार रस की झलक मिलती है या लगता है कि मिश्र जी कुछ-कुछ बहक रहें हैं तब इसके लिए स्व. रवीन्द्र नाथ त्यागी जी जिम्मेदार होंगे । मेरी रचनाओं में जब आपको हास्य मिश्रित व्यंग्य की झलक मिले तब इसके लिए आप स्व. शरद जोशी जी और चिरंजीवी श्री लाल शुक्ल को कुसूरवार ठहरा सकते हैं और जब लगे कि व्यंग्य रचना कुछ ज्यादा ही मार्मिक, हृदयस्पर्शी और तेज़ाबी हो गई है तब इसका श्रेय आप स्व. हरिशंकर परसाई जी की भटकती आत्मा को दे सकते हैं । ये पाँचों लोग अपने व्यंग्यवाण छोड़ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। देवगण ऊपर अपनी खैर मना रहे होंगे। उम्मीद है कि सुदर्शन आपको पसंद आयेगा । सुदर्शन आपको कैसा लगा, जरूर बतायें

मित्रों   “सुदर्शन”  में मेरे अलावा कुछ और प्रबुद्ध पत्रकारों, साहित्यकारों के भी लेख छपेंगे……ऐसे ही एक वयोवृद्ध पत्रकार हैं श्री नरेश मिश्र जी…….वे उच्चकोटि के व्यंग्यकार भी है……पुराने लोग जानते हैं की  आकाशवाणी के “हवामहल” कार्यक्रम में उनका एक मेगा  सीरियल चला करता था……”मुंशी इतवारी लाल”……वे इस धारावाहिक के लेखक हैं…….जो की आकाशवाणी पर १७ साल लगातार चला……. उनके ही एक लेख की कुछ पंक्तियाँ नीचे दे रहा हूँ जो भारत की संस्कृति में  हास्य व्यंग्य को बखूबी परिभाषित करती हैं……………..

“हम मानते हैं कि ब्रह्म के अलावा सभी जीव गुण और दोष के पुतले हैं । गुण और दोष का मिश्रण ही मनुष्य की खास पहचान है । हम आनंद की अनुभूति के लिये पैदा हुये हैं । रोने-धोने, बिसूरने और निषेधात्मक भयादोहन करने वाली चिंताओं में बैचेन रह कर जिंदगी गुजारना हमारे जीवन का मकसद कतई नहीं है । समाज में विषमताएं हैं, गरीबी है, आर्थिक द्वंद हैं, दुरूह समस्याएं हैं इसके बावजूद हर हाल मे हंसते रहना और चुनौतियों का डट कर मुकबला करना हमारी संस्कृति का मूल संदेश है । इसलिये हम आये दिन त्यौहार मनाते हैं और सारे गमों को भुलाकर आनंद की नदी में डुबकी लगाते हैं । हम बूढ़े नहीं होते । हमारा शरीर बूढ़ा होता है । बुढ़ापे में भी फागुन आता है तो होली के हुड़दंग में जवान महिलाओं को बुढ़ऊ बाबा से देवर का रिश्ता जोड़ने में कोई हिचक नहीं होती ।

इक्कीसवीं सदी में हास्य व्यंग्य की विधा का नया कलेवर नई दिशा की ओर संकेत कर रहा है । वह समाज की विसंगतियों का आईना है । जनभावनाओं की हसरत नापने के लिये थर्मामीटर का काम करता है । हमारे तथाकथित लोकतंत्र में जितने पाखंड विद्रूप हैं, जितनी विसंगतियाँ हैं, सियासत में छल-प्रपंच का पासा खेला जा रहा है उसका चित्रण करने के लिये गंभीर गाढ़े शब्दों में रचे गये साहित्य की जरूरत नहीं है । बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, जाति विद्वेष, धार्मिक उन्मांद के दम घोंटू वातावरण में हास्य व्यंग समाज को ऑक्सीजन देने का काम करता है । इस बहाने समाज का तनाव कम होता है और उसे राहत मिलती है ।”

– के. एम. मिश्र

इलाहाबाद

email : kmmishrr@gmail.com

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