काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

शनिवार, 18 नवंबर 2017

बुरे फंसे उदार बनकर

मित्रों, जहर भी कभी कभी अमृत का काम कर जाता है और अमृत भी कभी कभी जहर का मजा दे जाता है । बचपन से ही बच्चों का सिखाया जाता है नेकी करो, बदी से डरो । सदा सत्य बोला, बुरा नाकहो, बुरा न बोलो, बुरा न सुनो । बड़ों का आदर करो । गरीबों पर दया करो । इन्हीं सब सतकर्मों की लिस्ट में एक नाम और आता है उदारता का । उदारता का अर्थ हाता है जहाँ एक खर्च होना हो वहाँ चार खर्च करना । आप लोग पूछोगे कि उदारता का अर्थ खर्चीला होना तो नहीं होता है । भाई साहब ! जो उदार होता है उसको लक्ष्मी माता से मोह नहीं होता है । मोह नहीं होता है इसलिये उदार होता है । उदारता का एक अर्थ आप और निकाल सकते हैं मदद करना मदद दो प्रकार की होती है । सरकारी मदद और गैर सरकारी मदद । दोनो ही प्रकार की मददों का हश्र एक जैसा ही होता है । जिसको मदद मिलनी चाहिये उस तक मदद पहुँचने के पहले ही वह बीच के लोगों की मदद कर देती है ।

हर कोई आदमी उदार होने का खतरा मोल नहीं ले सकता है । उदारवान का जिगर और बटुआ दोनो ही बड़ा होना चाहिये । उदार पुरूष दो प्रकार के होते हैं । पहला नेता टाइप कोई पुरूषार्थी हो और दूसरा कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर लक्ष्मी जी की कृपा हो और सरस्वती जी उससे रूठ गई हों । सरस्वती न रूठतीं तो वो क्यों अपना पैसा उदारता के शौक पर न्यौछावर करता । राजनैतिक व्यक्ति अगर उदार नहीं हुआ तो कर चुका राजनिति । वोट के लिये उसे उदार होना पड़ता है । कर्म से नहीं तो वाणी से उदार तो वे होते ही हैं । उनके वायदे उदारता की ही निशानी हैं ।

आज के समय में अगर ‘ ‘ के प्रति उदार है तो इसलिये क्योंकि  के कई काम भविष्य में  की उदारता के बिना नहीं चल सकते । इसको मुचुअल अंडरस्टैंडिंग कहते हैं । ऐसे समय में अगर ‘ ‘ के प्रति उदारता दिखाता है जब कि उसका कोई काम भविष्य में  से नहीं निकलता तो समझिये  को डाक्टर की जरूरत है । आप कहेंगे कि इसी को तो सच्ची उदारता कहते हैं । मैं सिर्फ इतन कहँगा कि  के दिमाग में नुक्स है और उसे वैद्य हकीम की जरूरत है ।

उदार शब्द से मिलता जुलता शब्द है उधार । ये दोनो शब्द एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ज्ञानीजन जानते हैं कि उदार पुरूष वह है जो उधार दे सकता है । उदार मानव से उधार लेना बांये हाथ का खेल होता है । वे उधार देने को तत्पर है । आप फौरन जाइये, इससे पहले कि उसका उदारता का नशा हिरन हो उधार रूपया पीट लाइये । उदार मानव यह सोच कर उधार देता है कि उदारता राजा महराजाओं का शौक है । जो आदमी उधार रूपया ले जा रहा है वो इतनी उदारता तो दिखायेगा ही की कभी न कभी तो रोकड़ वापस ही करेगा । उधर उधार लेने वाला महात्मा चारवाक का वंशज होता है । वह यह दर्शन लगाता है कि भाई साहब आपने उधार रूपया देकर बड़ी उदारता दिखाई अब एक उदारता और दिखाइये यह उधारी आप भूल जाइये ।

अब तक उदार पुरूष नशे में ही हैं तो दिया हुआ रूपया भूल सकते हें । दूसरा आदमी उनकी जय जयकार करते हुये फरार हो जायेगा । और अगर उदार पुरूष का नशा हिरन हो चुका है और बुध्दि हानि लाभ का हिसाब लगा रही है तो जल्दी ही उदार पुरूष नरसिंह अवतार लेंगे और रूपया उदरस्थ करने वाले का उध्दार करने को तत्पर हो जायेंगे । स्थति गंभीर । दंगा फसाद । पुलिस । हवालात । जमानत । कचहरी । वकील खुश । पक्षकार हैरान । मजा लो उदारता का ।

परिस्थतियाँ और अच्छे संस्कार आदमी को मूसीबत में फंसाये बिना नहीं मानते हैं । बात छ:-सात साल पहले की है जब हम पहली बार अपनी उदारता के चक्कर में मूर्ख बने थे । पहली बार जाना कि कोई किस तरह अपनी मजबूरी की झूठी कहानी सुना कर चपत लगा जाता है । अनुभव बिना ठोकर खाये तो मिलता नहीं । श्रीमान जमुनादास जी (उस व्यक्ति का फर्जी नाम) ने मात्र दो सौ रूपयों में मुझे यह सीख दी की अगर आपके सामने कोई व्यक्ति मर भी रहा हो तो भी उसकी मदद उसको मदद उसको लक्ष्मी देकर कदापि मत करो । जैसे ही लक्ष्मी मिलीं वह मरता हुआ व्यक्ति बेस्ट ऐक्टिंग एवार्ड प्लस आपकी लक्ष्मी लेकर ओलंपिक की मैराथन रेस का खिलाड़ी बन जायेगा । आप भी सोच में पड़ जाओगे कि वह अच्छा एक्टर था या एथलीट या आप खुद अव्वल दर्जे के मूर्ख हैं ।

मित्रों, तब हमारे अंदर थोड़ा बचपना था । तब हम संस्कारी बालक हुआ करते थे । मोरल साईंस से बड़ा लगाव था । दुनिया बड़ी सच्ची जान पड़ती थी क्योंकि श्री एक हजार आठ श्री जमुनादास जी से हमारी मुलाकात नहीं हुयी थी ।

पिताजी हमारे बैंक अधिकारी हैं । त बवह शहर की एक ब्रांच में पोस्टेड थे । एक दिन दोपहर के समय श्री एक हजार आठ जमुनादास जी पधारे । एक सांवला सा आदमी । मुँह पर चेचक के धब्बे । हमारे अनुज, छोटे भाई साहब बाहर ही खेल रहे थे । जमुनादास जी ने उनसे पिताजी के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी कीं फिर दरवाजे पर दस्तक दी । हम बारह निकले । उन्हाेंने अपना परिचय जमुनादास जी के नाम से दिया और बताया कि वे भी पिताजी की ही बैंक में कार्यरत हैं । बैंक में क्लर्क हैं । अचानक उनकी माता जी की तबीयत बहुत खराब हो गई है और उन्होंने अपनी जननी को बगल के ही एक नर्सिंग होम मे एडमिट करा दिया है । माता जी की हालत बहुत सीरियस है । डाक्टर ने ये दवाईयाँ लिखी हैं और उनकी जेब में जो पैसे हैं वह काफी कम है इसलिये साहब का घर जानकर मदद के लिये चले आये हैं । दो सौ रूपये कम पड़ रहे हैं आप दे दीजिये । मैं साहब को कल बैंक में वापस कर दूँगा ।

यह कहानी तो संक्षेप में है । जमुनादास जी ने यह कहानी इस अदाकारी से बतलायी कि अमिताभ बच्चन ने दीवार फिल्म में क्या एक्टिंग की होगी । जमुनादास जी की आंखे भीग गई थीं । जिव्हा थरथराने लगी थी । हाथ जोड़े वे करूणा की मूर्ति लग रहे थे । ऐसा लगता था कि उनकी माताजी का टू बी से नाट टू बी होना मेरे पैसे पर निर्भर करता है और मुझे यह पाप नहीं कमाना चाहिये । एक पुत्र अपनी माँ की जान बचाने के लिये मेरे दरवाजे पर भिखारी बना खड़ा है । मैं उसकी एक्टिंग से क्लीनबोल्ड हो गया । मुझे लगा अपना सर्वस्व लुटा कर उसकी माँ की प्राण रक्षा करनी चाहिये । मैंने तत्काल अपने जमा किये हुये रूपयों मे से दो सौ रूपये निकाले और उस महान आत्मा श्रवण कुमार को अर्पित कर दिये । जमुनादास जी ने एक सहस्त्र बार थैंक्यू का जाप किया । मेरी उदारता का बिगुल बजाया और फूट लिये ।

मैने अपने भगवान को याद किया । प्रभू हमारे एकाउंट में दो सौ रूपये डेबिट करलो । आज एक व्यक्ति की मरती माँ को जीवनदान दिया है । बहुत बड़ा पुण्य कमाया है । नोट किये रहो । हृदय गदगद। मन प्रसन्न । मैं और राजा हर्षवर्धन एक ही थैले के चट्टे बट्टे । कर्ण क्या खाकर मेरी उदारता से टक्कर लेगा । स्वर्ग में देवता मेरी उदारता के गीत गायेंगे और पता नहीं क्या क्या । फिर दो सौ रूपये भी तो कल जमुनादास जी पिताजी को लौटा ही देंगे । फ्री में ही पुण्य कमाया ।

शाम को पिताजी घर वापस आये । मैंने उनको अपनी उदारता की कथा और जमुनादास जी की करूण गाथा सुनाई । पिताजी बड़ी शांति से सुनते रहे । फिर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई । शाबाश बेटा । बुरे वक्त में जमुनादास की मदद कर के तुमने महान काम किया है पर इस नाम का कोई आदमी मेरे ऑफिस में काम नहीं करता और न ही मैं किसी जमुनादास जी को जानता हँ ।

मुझे अपने वह सौ के दो नोट याद आये जिनका जमुनादास जी पाणिग्रहण कर चलते बने थे । धर्मराज आकाश से ठेंगा दिखा रहे थे ले बेटा और पुण्य ले । मैं अपने दो सौ रूपये की विरह वेदना में दु:खी हो गया । पिताजी ने आकाशवाणी की कि जमुनादास जी ने उन रूपयों से माँ के लिये दवा तो नहीं खरीदी होगी पर अपने लिये दारू जरूर खरीदी होगी और हर पैग पर हमारी उदारता के नाम चियर्स कर रहे होंगे ।

हाय! जमुनादास तुम कहाँ उड़ गये एक उदार बालक के दो सौ रूपयों का हरण कर के । जमुनादास जी यह आपने अच्छा नहीं किया । मैं ही मिला था अपको बनाने के लिये । मेरे ऊपर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा । आप समझ सकते हैं मित्रों, एक कक्षा आठ का बच्चा जिसने अठन्नी चवन्नी जोड़ जोड़ कर दो सौ रूपयाें का चिल्लर जमा किया था । पिताजी को उन चिल्लरों को देकर सौ के दो कड़क नोट प्राप्त किये थे । जिंदगी में पहली बार मुद्रा खर्च कर के उदारता दिखाने का जो रिस्क लिया उसमें माया मिली न राम वाली सदगति प्राप्त हुई । दो दिन तक दु:ख मारे भूख हड़ताल टाईप हो गई । आगे भी मेरा राष्ट्रीय शोक कन्टीन्यू रहता पर पिताजी को मेरे ऊपर दया आ गई और उन्होंने अपनी जेब से दो सौ रूपये प्रदान किये । विदेशी सहायता पा कर जियरा कुछ हल्कान ।

जमुनादास जी ने मुझे यह सीख दी कि बचवा किसी अजनबी मनई पर पहले तो विश्वास ही मत करो । फिर भी उदारता झाड़े बिना कलेजे में ठंडक नहीं पड़ती तो उसकी मदद के नाम पर नहीं तो उसकी ऑस्कर विनिंग एक्टिंग, स्क्रिप्ट, ड्रेस डिजाइनिंग के नाम पर मदद कर दो । जोरदार नाटक दिखाया है इसलिये इस कलाकार का दस पांच रूपये दे कर भला किया जाये ।

मित्रों, तब से आज तक सैंकड़ों जमुनादास जी मिल चुके हैं और कुछ की मदद दस-पांच देकर उनकी बेजोड़ अदाकारी के नाम पर कर चुका हँ । क्योंकि पता नहीं किस भेष में श्री राम मिल जायें । आप लोग भी सावधान रहियेगा क्या पता अबकी बार जमुनादास जी की माँ की तबीयत फिर सीरियस हो जाये और अगली बार आपका दरवाजा हो ।

(आकाशवाणी इलाहाबाद से 14.02.2001 की शाम युववाणी कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रसारित ।)

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