काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

बुधवार, 22 नवंबर 2017

कल की बात पुरानी : भाग -1


पृथ्वी पर तीन रत्न हैं – जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।

– संस्कृत सुभाषित

 

बहुत समय पहले की बात है । मतलब कि प्रचीन काल की बात है । कर्कट वन नाम का एक जंगल था । कर्कट वन कंटीले पेड़ों और झाड़ियों से भरा रहता था । जहाँ देखो बबलू, नागफनी, बेल आदि । इसकी एक वजह भी थी कि उस इलाके में पानी कम बरसता था । कर्कट वन शायद राजस्थान के किसी इलाके में पड़ता होगा । तो उस वन में पानी की कमी के कारण कंटीले पेड़ पौधे इफरात में पाये जाते थे । कर्कट वन के आस-पास कोई नदी नहीं बहती थी और पानी के स्रोत भी इक्का-दुक्का थे । उसी कर्कट वन में एक ऋषी-मुनी का भी आश्रम था जो कि उस वन के एकमात्र पानी के स्रोत, एक बड़े तालाब के किनारे स्थित था । वह तालाब कर्कट वन के सभी पशु पक्षियों की प्यास बुझाता था । यहाँ तक कि सूखे के मौसम में वन के आस पास के गॉवों के लोग भी इस तालाब से अपनी जरूरतभर पानी ले जाया करते थे । हॉ तो, उन ऋषी की जिनकी लंबी सी सफेद रंग की जटा और दाढ़ी थी,सभी लोग आदर और सम्मान से उनको बकबकिया बाबा पुकारते थे । गॉव के गंवार लोग, साधु की बड़ी बड़ी बात समझ नहीं पाते नहीं थे । लेकिन बकबकिया ऋषी भी पहुंचे हुए ज्ञानी थे । उनका आस पड़ौस के राजाओं में बड़ा प्रभाव था । सभी राजा लोग उनके ज्ञान का सम्मान करते थे और अपने-अपने नालायक लौंडों को उनके आश्रम में पठन पाठन के लिए भेजा करते थे, जिससे कि कम से कम कुछ समय के लिए तो प्रजा चैन की सांस ले सके और राजाओं के हरम में आयीं युवा राजकुमारियों को भी नये-नये ऑप्शन न अवलेबल हो सकें, जो भी बात रही हो, खैर ।

 

तो कर्कट वन में बकबकिया मुनि की अच्छी ऐश कटती थी । राजाओं के एक नंबर के आवारा लौंडों के लिए वो सरकारी पैसों से बोर्डिंग स्कूल चलाते थे । आश्रम का काम करने के लिए फ्री में शाही नौकर एवलेबल रहते थे । सुबह दातून के लिए नीम की लकड़ियाँ तोड़ने से लेकर रात में पैर दबाने और पीठ कचरने तक के लिए लंठ राजकुमारों की फौज तैयार रहती थी । कर्कट वन के आस पास रहने वाले लोग जब तालाब पर पानी लेने के लिए आया करते तो बकबकिया ऋषी के लिए दान में अन्न वगैरह ले आया करते थे । राजा लोग भी जब तब आकर उनको अन्न, दुधारू गायें, हीरे-जवाहरात आदि भेंट में चढ़ा जाया करते थे । कुल मिलाकर बकबकिया ऋषी को किसी चीज की कमी नहीं थी ।

 

हाँ, गाँव के लोग उनको बकबकिया साधु इस लिए कहते थे क्योंकि बकबकिया महाराज संस्कृत के सुभाषितों के बड़े भारी ज्ञाता थे । मार सुभाषित रट डाले रहिन । जब देखो तब सुभाषित ही उनके मुखारविंद से टपकता रहता । जैसे सचिन तेंदुलकर खाते, पीते, सोते, जागते, उठते, बैठते सिर्फ क्रिकेट ही सोचते हैं, वैसे ही बकबकिया महाराज भी हर वक्त सुभषियाते रहते थे । किसी राजकुमार को डांटना हुआ तो सुभाषित, किसी को समझाना हुआ तो सुभाषित, किसी से काम करवाना हुआ तो सुभाषित, किसी को काम से हटाना हुआ तो सुभाषित । राजा महाराजा भी उनके सुभाषित ज्ञान से हड़के रहते थे । तो मित्रों, बकबकिया महाराज की असली पूंजी उनके सुभाषित थे । सो एक दिन रात को हचक कर देशी घी की पूरियाँ कोहड़े की सब्जी से हुरने के बाद डेढ लीटर काजू बदाम की खीर सरपोटने के पश्चात वो कौड़िहार राज्य के राजकुमारों से अपने हाथ पैर मींजवा रहे थे । नीम के तिनके से अपने बुध्दि दांत में फंसे हुए बादाम के टुकड़े को निकाल कर उन्होंने एक लंबी जम्हाई ली, फिर अपनी सफेद दढी पर हाथ फैरते हुए अपने आप से कहा –पृथ्वी पर तीन रत्न हैं जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को ही रत्न कहते रहते हैं ।

तो मित्रों सैंकड़ों-हजारों साल पहले बकबकिया महाराज का काम जल, अन्न और सुभाषित से ही चल जाया करता था । इसीलिए उन्होंने रत्नों को पत्थर का टुकड़ा कह कर दुत्कारा था । लेकिन आज आपको तो पता ही है कि ”नक्षत्र” डायमंड शो रूम में डायमंड के क्या भाव चल रहे हैं । एक पांच रत्ती का पीला पुखराज या नीलम या माणिक या पन्ना लेने जाईये तो भाव सुन कर पर्सनल लोन लेने का मन करने लगता है । अब बकबकिया महाराज तो ठहरे ब्रह्मचारी । जोरू जात का कोई चक्कर नहीं । आज के जामाने में अगर ”तनिष्क” के शो रूम में चढे होते तो सोने का भाव देख कर कमण्डल भर भर के पानी पीते और पानी पी-पी कर इस मंहगाई को गरियाते ।

रत्नों को छोड़िये आज तो पत्थर भी रत्नों को मुंह चिढाते हैं । अगर आज आपके पास 5 बीघे जमीन किसी पहाड़ी पर है तो एक क्रेशर लगा लीजिए और सारी गिट्ठी सरकार को रोड बनाने के लिए सप्लाई कर दीजिए । दिन भर में 10 ट्रक गिट्ठी भी निकली तो भी आप साल भर में पांच दस करोड़ तो कमा ही लेंगें ।

तो मित्रों वक्त के साथ सूक्तियों के भी अर्थ बदल जाते हैं, जेई लिए कहता हँू कि छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी ।

हाफिज़ सईद रिहा हो कर फिर लहराएंगे जिहाद की तलवार

  =>जज साहब,   कृपया मुकद्दमे की बारीकियों पर  नज़र डालें.  मोहतरमा की टांगों से ज्यादा संगीन मुलजिम के अपराध हैं.

दृश्य : लाहौर की एक क्रिमिनल कोर्ट ।

जमादार : मुलजिम हाफिज सईद हाज़िर हों sssss ।

हाफिज सईद : मादर…, नाबीने की औलाद । दीदे फूट गये हैं तेरे । सामने ही तो खड़ा हँ, क्यूं हलक फाड़ कर चिल्ला रहा है । जिस दिन ए.के. -47 की नाल हलक में घुसेड़ दूंगा उस दिन सुनूंगा तेरी आवाज़ ।

जमादार : माई बाप, मुआफ करें, नौकरी है, सो चिल्लाना पड़ता है । फिर आपको कौन नहीं जानता । हिन्दुस्तान से लेकर अमरीका तक बड़े हल्ले हैं आपके । तशरीफ लाइये । अदालत इंतज़ार कर रही है ।

हाफिज सईद : अबे साले, इंतजार तो हमारा मियां मुशर्रफ तक किया करते थे, ये दो टके की अदालत क्या चीज़ है । भैन….., एक तो मुल्क और इस्लाम के लिए ज़िहाद का नारा बुलंद करते फिरो, ऊपर से ये कोर्ट-कचहरी का चक्कर अलग से । अब कोर्ट में हाजिरी दें कि हिन्दुस्तान में दहशत गर्दी का नंगा खेल खेलें । जब से हरामखोरों ने नज़रबंद किया है ज़िंदगी दोज़ख हो गई है । दो महीने हो गये किसी कश्मीरी औरत के साथ जिना किये।

जज : अरे! आइये, आइये हाफिज साहब । आदाब । आज इधर कैसे आना हुआ आपका । सब खैरियत तो है ।

हाफिज सईद : खुदा खैर करे । जब मुल्क के सिपाही बंदूक छोड़ कर अदालतों के चक्कर लगायेंगे तब परवरदिगार ही इस मुल्क पर रहम खा सकता है ।

जज : ओ अच्छा, अच्छा । अब समझा । कहां तो सरकार को मुबंई हमले के लिए आपको निशाने- पाक से नवाज़ना चाहिए था और कहां काफिरों के ज़रा सा चिल्लाने पर आपको नज़रबंद कर दिया । मिट्टी पड़े मरदूदों के मुंह पर । आप आराम से तशरीफ रखिये । क्या लेंगे ? ठंडा गरम या फिर कुछ खाने को मंगाये ।

हाफिज सईद : अरे नहीं, नहीं । तकल्लुफ़ क्यूं करते हैं । अभी दो प्लेट कबाब घर से खा कर निकला हूं । आज नहीं, फिर कभी घर आकर मजे से चाय-नाश्ता कर जाउंगा । बच्चे कैसे हैं । बेगम का कौन सा महीना चल रहा है । कितने बच्चे हो गये आपके? सात हैं कि आठ ?

जज : आपकी याद्दाश्त भी अब कमज़ोर होने लगी है । नौ तो पहले से ही थे । अबकी जुलाई में कुल दस हो जायेंगे । बड़ा करम है अल्ला ताला का ।

हाफिज सईद : आप भी इस्लाम के सच्चे सिपाही हैं । जितने बच्चे होंगे उतना ही इस्लाम मजबूत होगा । सबको मेरे मदरसे में तालीम के लिए भेज देना । सबको तालिबानी बना दूंगा ।

जज : जी, जी, बहुत अच्छा, शुक्रिया आपका । हां, पेशकार मुकद्दमा शुरू किया जाये ।

सरकारी वकील आगे आता है ।

जज : आप सरकार की तरफ से वकील हैं । मुलजिम का वकील कहां है ।

सरकारी वकील : हुजूर, मैं सरकार और मुलजिम दोनों का ही वकील हूं । सरकार का वकील बन कर नौकरी बजा रहा हूं और हाफिज साहब का वकील बन कर इस्लाम की मदद कर रहा हूं ।

जज : अच्छा ठीक है । बहस शुरू करें ।

सरकारी वकील : हुजूर, मुलजिम पर इल्जाम है कि उसने भारत के शहर मुंबई पर आतंकी हमले के लिए दहशतगर्दों को ट्रेनिंग दी, हथियार और रूपये मुहैया कराये और हमले का पूरा  मंसूबा भी इन्होंने ही तैयार किया ।

जज : वकीले सफाई का क्या कहना है ।

वकील सफाई : हुजूर, ये इल्जाम सौ फीसदी सही हैं । लेकिन चूंकि मुलजिम ने ये सारी कार्यवाही इस्लाम और मुल्क के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए की है, इसलिए मुलजिम के जज्बातों का ख्याल रखते हुए इस नेक काम के लिए उसकी हौसलाअफजाई करनी चाहिए और बाइज्ज़त बरी किया जाना चाहिए । ज़िहाद के लिए मर मिटने वाले खुद्दार सैनिकों की जगह अदालतों और कैदखानों में नहीं  है । उन्हें तो काफिरों को उन्हीं की ज़मीन पर जिबह करने  और उनकी औरतों, बच्चियों के साथ जिना करने का पाक काम अजांम देना होता है ।

जज : ठीक कह रहे हैं आप । सरकारी वकील साहब, मुलजिम के खिलाफ आपके पास कोई सबूत या गवाह है या सिर्फ कोरी लफ्फाजी से ही आप काम चलायेंगे ।

सरकारी वकाल : हुजूर, भारत से कुछ रद्दी दस्तावेज़ भेजे गयें हैं, जिन्हें कि वो सबूत कह रहे हैं ।

वकीले सफाई : जज साहब, अब भला कागज़ के चंद टुकड़ों के बिना पर क्या हम मुल्क और इस्लाम के खैरख्वाह इस इंसान को कैद कर सकते है । अब ऐसे ही काफिरों की चिल्ल-पों पर कान देने लगेंगे तो हो चुका ज़िहाद और बन चुका पाकिस्तान मुस्लिम देशों का सरदार । अब देखिए इतने सबूत थे डा0 अब्दुल कादिर खां साहब के खिलाफ, अमरीका पीछा पड़ा हुआ था कि उन्होंने ही लीबिया, ईरान जैसे मुल्कों को परमाणु तकनीकि मुहैया करायी थी, तो क्या हम हमारे मुल्क के महान साइंसदान को तिल तिल कर मरने के लिए सी. आई. ए. को सुपुर्द कर देते । फिर हुजूर क्या कोई मुल्क अपने बहादुर सिपाहियों पर इसलिए मुकद्दमा चलाता है कि उसने दुश्मनों को हलाक किया था । भारत के लिए हाफिज साहब भले ही अपराधी हो लेकिन हमारे लिए तो वो इस्लाम का परचम लहराने वाले एक बहादुर सिपाही हैं और पूरे मुल्क को उन पर नाज़ है । मुल्क की भलाई के लिए और ज़िहाद के झंडे को ऊंचा बनाये रखने के लिए मैं इस अदालत से दरख्वास्त करता हूं कि इस महान शख्सियत और सिपाही को इस अदालत से बाइज्ज़त बरी किया जाये ।

जज: सरकारी वकील को और कुछ कहना है ।

सरकारी वकील : नहीं हुजूर । आप जैसा मुनासिब समझें फैसला सुनाएं ।

तभी अदालत का एक कर्मचारी आकर जज के कान में कुछ कहता है ।

कर्मचारी : हुजूर, बलुचिस्तान से मुल्ला उमर और लादेन साहब का तार आया है कि हाफिज साहब को ज़िहाद का परचम लहराने के लिए जल्द से जल्द रिहा किया जाये ।

जज : अच्छा, अच्छा ।

जज : दानों तरफ की दलीलों को सुनने के बाद और पेश किये गये चंद रद्दी सबूतों को देखने के बाद ये अदालत इस फैसल पर पहुंची है कि मुलजिम हाफिज सईद कतई गुनेहगार नहीं हैं और चूंकि भारत  के कानून पाकिस्तान में लागू नहीं होते हैं और कोई भी मुल्क अपने  सिपाहियों को बहादुरी के एवज में उन्हें इनामों से नवाज़ता है नाकि उनको सजा सुनाता है इसलिए ये अदालत इस्लाम और मुल्क के आला सिपाही हाफिज सईद साहब को बाइज्ज़त बरी करती है ।

भीड़ : मुबारक हो, मुबारक हो ।

पत्रकार : हाफिज साहब अब आप आज़ाद हैं । सबसे पहला काम अब आप कौन सा करेंगे ।

हाफिज सईद : बहुत दिन हो गये किसी काफिर का कत्ल किये हुए और कमसिन कश्मीरी सेब दांतो से काटे हुए । कुछ दिन मुज्ज़फराबाद में रह कर पहले शरीर की थकान उतारूंगा उसके बाद कश्मीर की आज़ादी के लिए फिर से ज़िहाद शुरू करूंगा । अच्छा खुदा हाफिज ।

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

कारगिल युद्ध भाग : 1

मई के महीने में दो सिरीज एक साथ शुरू हुयी । एक क्रिकेट वर्ल्डकप सीरिज दूसरी कारगिल सिरीज । इंडियन क्रिकेट टीम को शुभकामनायें मल्टीनेशनल मिलीं । होंडा वालों ने बलायें लीं, इधर अफ्रीका ने बोहनी बुरी कर दी । एल. जी. वालों की दुआयें लगी जिम्बाब्वे ने धो दिया । विल्स का आशीर्वाद मिला आस्ट्रेलिया ने पटरा कर दिया । वर्ल्डकप जीतने के लिये पेप्सी नहीं लस्सी पीनी चाहिये । आ हा ।

इधर कारगिल सिरीज में कोई मल्टीनेशनल स्पॉन्सर नहीं था । भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों की मिट्टी पलीद कर दी । ऐसे मामलों में सिर्फ हम भारतीयों की दुआयें ही बहुत हैं । स्वदेशी का जमाना है । नवाज भाई अपने घर का कचड़ा इधर मत डाला करो । कश्मीर कोई हज करने की जगह नहीं है कि भई गंगा नहाने गये थे वहीं मर गये तो स्वर्ग पक्का । तुम्हारे यहाँ जनसंख्या ज्यादा हो गई हो तो सल्फास पर सब्सिडी दे दो । उँही खाये खाये मरा करें । फालतू में हमारी गोलियों का क्यों नुकसान करवाते हो । अटल जी की बस यात्रा के बस में नहीं है कि तुमको समझा सकें । तुमको समझाने के लिये तो सुखोई, मिराज ले कर आना पड़ेगा । लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं ।

इमरान खान भी बुध्दिमानी की बात कर लेते हैं । बबुआ कहत रहा कश्मीर समस्या सरहद पर नहीं पिच पर सुलझानी चाहिये । मैनचेस्टर में भारतीय टीम ने अकरम पहलवान का नाड़ा ढ़ीला कर दिया । इमरान म्याँ अब कश्मीर कश्मीर मति चिल्लइयो ।

हमारे अमन पसंद पड़ोसी पाकिस्तानियों का इतिहास कुछ कमजोर है । गरीब देश है, वहाँ कि कौम पढ़-लिख नहीं पाती है । कह रहे थे नियंत्रण रेखा ठीक से निर्धारित नहीं है । जो कि शिमला समझौते में बकायदा बतायी गयी है । कोई बात नहीं । 71 के बाद से कोई क्लास नहीं ली है न । अब की जायेंगे तो नियंत्रण रेखा ईरान के बार्डर से नाप आयेंगे । अटल जी गलत कहते हैं कि पड़ोसी बदले नहीं जाते हैं । हमारा नया पड़ोसी ईरान होगा और इस्लामाबाद पर तिरंगा लहरायेगा ।

हमारे जासूसों ने पाकिस्तान के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मुहम्म्द अजीज और सेनाध्यक्ष मुशर्रफ के बीच टेलीफोन पर हुयी बातचीत टेप कर ली थी । उसके बाद हमारे जासूसों ने नवाज शरीफ और सरताज अजीज की भी टेलीफोन पर हुयी एक महत्वपूर्ण बातचीत को टेप कर लियाद्व पर उस बातचीत को गुप्त रखा गया । वह महत्वपूर्ण बातचीत यहाँ पर दी जा रही है ।

शरीफ : हेलो, सरताज अजीज । मैं शरीफ बोल रहा हँ । पैकिंग हो गई ।
अजीज : क्या शरीफ मियां, मैं ही मिला था भारत भेजने को । जब से सुना है दस्त शुरू हो गये हैं । आप तो मेरा मेडिकल सर्टिफिकेट ले लो । मैं कहीं नहीं जाऊंगा ।
शरीफ : क्या बकवास कर रहे हो । अमेरिका से चार बार फोन आ चुका है । अन्तर्राष्ट्रीय दबाव पड़ रहा है बातचीत के लिये । तुम्हारा नाम पक्का हो चुका है । तुम्ही जा रहे हो ।
अजीज : मैं नहीं जाऊंगा । नहीं जाऊंगा । मैं इस्तीफा देता हूँ । मेरे बड़े बड़े बच्चे हैं । मुझे कुछ हो गया तो वो बेचारे तो भूखों मर जायेंगे और क्या जरूरत थी मुझसे पहले वो छ: सैनिकों की लाशें भेजने की । अगर उन्होंने मेरे नाक कान उखाड़ लिये तो मैं सुनूंगा कैसे और सांस कैसे लूंगा ।
शरीफ : वो लाश मैने नहीं भिजवाईं थीं । वो तो कम्बख्त जनरल के बच्चे ने भेज दी । चला जा मेरे सर के ताज । चला जा यार, तेरे हाथ जोड़ रहा हँ । चला जा भाई वरना ये जनरलवा मुझ को ही ठेल देगा ।
अजीज : मैं किसी कीमत पर नहीं जाऊंगा ।
शरीफ : नहीं जाओगे तो तुमको भारत में पाकिस्तान का राजदूत बना दूंगा । अजीज : अच्छा धमकी देते हो तो चला जाता हँ पर सुबह जाऊंगा और शाम को वापस भाग आउंगा । रूकुंगा एक दिन भी नहीं ।
शरीफ : अरे यार तू जा तो, तेरे को रिटर्न टिकट फ्री दे रहा हँ ।
अजीज : जा तो रहा हँ पर बात क्या करूंगा ?
शरीफ : बात वात कुछ नहीं करनी है । तुम जाना और सुबह 2-3 घंटे गुसलखाने में ही लगा देना । बैठक में देरी से पहुँचना । फिर जब बातचीत शुरू हो तो मौसम की बात करना । जसवंत का हाल चाल पूछना । अगर वह घुसपैठ की बात करे तो कहना कश्मीर में आज कल मौसम बहुत सुहावना है इसलिये कुछ लोग बिना पासपोर्ट के घूमने चले गये होंगे । टूरिस्ट वगैरह हैं । घूम टहल कर वापस आ जायेंगे ।
अजीज : अगर वह नियंत्रण रेखा के बारे में पूछे तो क्या जवाब दूंगा ।
शरीफ : कह देना शिमला समझौते वाली फाइल कहीं खो गई है, जिसमें नियंत्रण रेखा की स्थिति बताई गई है । इसलिये हम अपनी टीमें भेज कर पुरानी नियंत्रण रेखा को ढूंढ़ रहे हैं ।
अजीज : वो जसवंत बोलेगा कि वो भी अपनी सेना लगा कर हमारी मदद कर रहा है । तब ? और उन छ: सैनिकों की लाश के बारे में पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा ।
शरीफ : अमां तुम बोलते बहुत हो । अगर वो ये सब पूछने लगे तो तुम दस्त का बहाना कर के बैठक जल्दी खत्म कर देना ।

पाकिस्तान सरकार को दस्त आने शुरू हो गये होंगे क्योंकि उसके बॉस अमेरिका और चीन भी हाथ झटक कर खड़े हो गये हैं इधर हमारे जवान उसके सिर पर चढ़ते जा रहे हैं । पाकिस्तान तो उधार की रोटी खाता है । सीमा पर पटाखे छोड़ने के लिये शरीफ और पाकिस्तानी सेना को पूरा पाकिस्तान गिरवी रखना पड़ेगा । ऐसी दिवाली उनका दिवाला जल्दी ही निकाल देगी । भगवान न करे कि पाकिस्तान चौथा युध्द घोषित कर दे । पर अगर अबकि युध्द हुआ तो या तो बंग्लादेश की पूरी एक श्रंखला बना देंगे या फिर बावन साल पहले नेहरू द्वारा की हुयी गलती को ही सुधार देंगे । कम्बख्त पाकिस्तान भारत का अभिन्न अंग है । और अंत में सलाम है उन सब शहीदों की वीरता को जिनका आज प्रत्येक भारतीय ऋणी है ।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों को यही आखिरी निशां होगा ।

 

ऋण लेकर घी पियो और मर जाओ

 

 

 

 

=> हे भगवान सारा खाया पिया गायब हो गया. बस हड्डियां ही बची हैं.


मित्रों, चारवाक मुनि अब इतने भी बेवकूफ नहीं थे कि खाने पीने की चीजों को देख कर मुंह फेर लें । एक दम स्वस्थ, रामदेवजी के माफिक । लेकिन चारवाक मुनि को इस बात का ज्ञान हो गया था कि भारत देश में ऐसा भी समय आयेगा जब इंसान वनस्पति घी और रिफाइंड तेल पी कर सचमुच ही इस बेवजह के संसार से तड़ी हो जायेगा इसी लिए उन्होंने कहा था यावत जीवेत, सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा, घृतं पीवेत । भाई साहब, मरने का मजा तो तब है जब मिट्टी पर रोने वाले के आंसुओं से बाढ आ जाये । जी, जी, वही । परपीड़न प्रवृत्ति । तो घर वाले, सगे संबन्धी तो रोते ही हैं, मगर और लोग नहीं रोये तो क्या फायदा अपनी जान देने का । तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को रूलाना है तो अधिक से अधिक लोगों से कर्ज उठाईये । अब मिट्टी पर साला कर्ज देने वाला भी रोयेगा । हाय जोखू सिंह, इत्ती भी क्या जल्दी थी मरने की ।

तो मित्रों, भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय भी चारवाक दर्शन से अभिभूत है । अब यूपीए सरकार ने तो साढे चार साल में देश की जितनी तरक्की करनी थी, कर दी, लेकिन देश हे कम्बख्त ससुरा अभी भी विकासशील का विकासशील ही बना हुआ है । तो फिर ये दिमाग लड़ाया गया कि अगर हर नागरिक को अमीरों वाली बीमारी हो जाये तब सभी अमीर हो जायेंगे और देश भी विकसित देशों की कतार में आ जायेगा । तो मित्रों, दिल की बीमारी बड़े लोगों की बीमारी होती है । इस बीमारी को जन जन तक पंहुचाने के लिए सरकार ने बहुत पहले ही कमर कस ली थी लेकिन इसका खुलासा अब जाकर हुआ है । स्वास्थ मंत्री रामदास ने अभी यह स्वीकार किया है कि देश में बिकने वाले 98 प्रतिशत वनस्पति घी और रिफाइंड तेल में ट्रांस फैट का अनुपात डब्लयू. एच. ओ. के मानकों से 15 से 20 गुना ज्यादा है । ट्रांस फैट हार्ट अटैक की सबसे बड़ी वजह माना जाता है क्यूंकि यह हमारे शरीर की धमनियों में जम जाता है । और मित्रों, इस जानकारी के साथ ही स्वास्थ मंत्री ने इस पर रोक लगाने से इंकार भी कर दिया है । वो कहते हैं कि एकाएक इस पर रोक लगा देने से देश में अव्यवस्था फैल जायेगी ।

मित्रों, हमारे देश में जिस तरह से पेट्रोल, डीजल का आयात किया जाता है उसी तरह से इस कृषी प्रधान देश मे बड़ी भारी मात्रा में खाद्य तेल का भी आयात किया जाता है जिसे हम पाम ऑयल के नाम से जानते हैं । हम अपने खाने लायक खाद्य तेल का उत्पादन इस लिए नहीं कर पाते हैं क्यूंकि हमारे कृषी मंत्री का सारा दिमाग बी. सी. सी. आई. का चैयरमेन कैसे बनें इसकी जुगत में लगा रहता है । इस पाम ऑयल से ही सभी वनस्पति घी और रिफाइंड तेलों का निमार्ण किया जाता है । वनस्पति घी और रिफाइंड ऑयल के धंधे में सिर्फ दो अमेरिकी कम्पनियों की मोनोपॉली चलती है – हिन्दुस्तान लीवर और इंडियन टुबैको कं. । देश में इनका बनाया हुआ वनस्पति घी और रिफाइंड ऑयल जिसमें भारी मात्रा में ट्रांस फैट मौजूद रहता है,बिकता रहे और स्वास्थ्य मंत्रालय सोता रहे, इसके लिए कितने प्रतिशत पर सौदा तय हुआ होगा ये विपक्षी पार्टियों के लिए शोध का विषय है । पाम आयल को पचाने के लिए हमारे शरीर का तापमान 45 डिग्री सेंटिग्रेट होना चाहिए जबकि शरीर का तापमान 35, 36 डिग्री सेंटिग्रेट से अधिक नहीं होता है जिसके कारण ये पाम ऑयल हमारे शरीर में जमा होता रहता है और एक दिन जब हम ऑफिस की सीढी चढते चढते हांफने लगते है तब डाक्टर बताता है कि आपके शरीर में केलस्ट्राल की मात्रा बढ गई है, हार्ट अटैक का खतरा मंडरा रहा है, घी खाना छोड दीजिए और रिफाइंड का प्रयोग कीजिए । लेकिन साहब, वो रिफाइंड तेल भी तो उसी पाम ऑयल से ही बनता है जिससे वनस्पती घी बनता है । इसी के साथ ही स्वास्थ मंत्री ने ये भी स्वीकार किया कि देशी घी और अमूल मक्खन में ट्रांस फैट का मात्र 3 प्रतिशत होता है ।

अब सवाल ये है कि भारतवासी वनस्पति घी, बाज़ार में बिकने वाले मिलावटी देशी घी और रिफाइंड तेल का सेवन न करें तब फिर क्या करें । घर में बने हुए देशी घी में ट्रांस फैट नहीं के बराबर होता है । इसी तरह से सरसों का तेल, सूरजमुखी का तेल, तिल का तेल इनमें भी ट्रांस फैट नहीं होता है लेकिन सोयाबीन के तेल में ट्रांस फैट की मात्रा ज्यादा होती है । तो मित्रों, हमारे स्वस्थ स्वास्थ्य मंत्री ने तो अपने दोनों हाथ और दोनों पैर भी खड़े कर दिये हैं कि हम एकाएक पाम ऑयल पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं लेकिन अगर आप अपने दिल को अगले वैलेंटाइन डे तक संभाल कर रखना चाहते हैं तो तुरंत ही वनस्पति घी, रिफाइंड तेल और बाजारू देशी घी से तौबा कर लीजिए । इसके अलावा एक सीधी और सरल बात ये भी है कि रेस्टोरेन्ट्स,होटलों, ढाबे वालों और चाट वालों ने भी आपका कोई कर्जा नहीं खाया है कि वो आपके हृदय का ख्याल रखते हुए वो घर का बना देशी घी प्रयोग करेंगे । उनको जो भी सस्ता तेल या घी मिलेगा, वो उसी से अपना काम चलायेंगे । इसके साथ ही शादी बरात और दूसरी पार्टियों में भी इसी पाम ऑयल से बने घी और रिफाइंड तेल का इस्तेमाल होता है । अब अगर आप वाकई चारवाक मुनि के दर्शन को मानने वाले हैं तब शौक से वनस्पति घी और रिफाइंड तेल पीजिए और मर जाइये । और हाँ, कर्जा लेना मत भूलियेगा ।

रविवार, 19 नवंबर 2017

एक दिन कुकरपंती के नाम


 

 

=>ही ही ही ही हू । फस्र्ट प्राईज तो मैं ही जीतूंगा ।

 

मित्रों, अंग्रेजी में एक कहावत है ”एवरी डॉग हैज़ इट्स डे” । मतलब हर कुत्ते का साल में कम से कम एक दिन अच्छा गुज़रता है और यदि बहुत से कुत्तों का दिन आ जाये तो समझिये कि कुत्ता पर्व मनाया जा रहा है । यानि कि शहर भर के कुत्ते, स्मार्ट से दिखने वाले कुत्ते अपने अपने मालिकानों के साथ किसी स्थान पर एकत्रित होकर ‘डॉग शो’ मनाते हैं । उस दिन शहर भर के कुकुर पालने वाले सर्वसम्मति से एक दिन कुकुरपंती के नाम कर देते हैं । कुकुर रक्षा पर्व मनाते हैं जच्चा-बच्चा रक्षा पर्व की तर्ज पर । उस दिन सारे कुत्ते घरों से निकल पड़ते हैं, पता नहीं लगता है कि मालिक कुत्ता लाया है या कुत्ता मालिक को लाया है । कुत्तों के भी क्या ठाठ होते हैं । पट्टे एयर कंडीश्न्ड कार में बैठ कर आते हैं । मालिक लोग हर दस मिनट पर उन्हे मंहगे मंहगे बिस्किट खिलाते हैं । लोग बाग पानी की बोतल कंधे पर टांगे कुत्ते को पुचकारते इधर उधर फिरते हैं । इस दिन आदमी कुत्तों के पीछे पूँछ हिलाता घूमता है ।

मैं यह लेख लिख रहा हँ तो यह मत समझियेगा कि मेरे अंदर कुत्तों को ले कर कोई हीन भावना है । कुत्ता मैं भी पाल सकता था । मैंने अपने जन्म से लेकर आज तक कई असफल प्रयास भी कियें हैं और अगर सफल हो जाता तो मैं भी ‘कुत्ता पर्व’ बड़े शान से मनाता । परन्तु कुछ तो पारिवारिक कारणों से और कुछ कुत्ते के कारण मैं कुत्ता नहीं पाल सका । हमारी राजमाता कुत्तों से हार्दिक घृणा करती हैं । और मूझको भी घिन आती थी जब वह सुबह जरा सी देर हो जाने पर घर पर ही नित्य क्रिया से निवृत्त हो लेता था । साफ-सफाई में उलटी आती थी ।

मित्रों सही बताऊं तो कुत्ते मुझे काफी पसंद हैं और कुत्ते भी मुझे काफी पसंद करते हैं क्योंकि मैं उनकी काफी इज्ज़त करता हूँ । कुत्तों को और क्या चाहिये दो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार । बचपन में मैंने कई प्रयास किये कुत्ता पालने के । मैं जब भी कोई सुंदर सा कुत्ता पकड़ कर लाता और कुछ दिनों तक बड़ी लगन से उसका लालन पालन करता तभी कोई कुत्ता विशेषज्ञ पहुंच कर ऐलान कर देता कि ये कुत्ता नहीं ये तो कुतिया है । मैं हैरान, परेशान । मैं कुत्ता पालना चाहता था क्योंकि कुतिया परिवार में वृध्दि करती है । फिर उसके नन्हे मुन्नों को भी पालना पड़ता । यहाँ एक कुत्ता पालने में माता जी से युध्द करना पड़ता है उसके आधा दर्जन बच्चों को कौन खिलाता पिलाता । भविष्य की चिंता मुझे परेशान कर देती । मैं फिर उस कुतिया को वापस उसके श्रध्देय माता-पिता के पास छोड़ आता । अफसोस इस बात का है कि मुझे आज तक कुत्ते और कुतिया में फर्क करना नहीं आया । एक बार एक कुत्ता हमारे घर काफी दिन तक पल गया था । उसका नाम मैंने बड़े चाव से रॉबिन रखा था । रॉबिन भाई से हमारी बड़ी गहरी छनती थी । वो हमारे साथ ही खाते । हमारे बिस्तर के बगल में सोते । धीरे धीरे उनका जीवन स्तर इतना ऊंचा उठ गया कि वे सिर्फ घी से चुपड़ी रोटी ही खाया करते थे और रात में उन्होंने अपनी बोरी पर सोना बंद कर दिया था । उनके लिये स्पेशल एक गद्दे का इंतजाम करना पड़ा था । उनकी यह रईसी माता जी से देखी नहीं गई । एक दिन जब मैं स्कूल गया था तब उन्होंने उस नवाबी नस्ल के कुत्ते का सींकड़ सहित कुकुरदान कर दिया । फिर मैने कोई कुत्ता नहीं पाला ।

आज रविवार की सुहानी सुबह थी । मैं टी.वी. पर अपने मनपसंद कार्यक्रम के इंतजार में बैठा था । तभी हमारे दूधवाले के गाय कि तबीयत खराब हो गई । मुझे ग्वाले को लेकर डाक्टर के पास जाना पड़ा । डाक्टर साहब का नाम लेकर उनका एडवरटीज़मेंट नहीं करूंगा वे गाय कम कुत्ते ज्यादा देखते हैं (पिराफिट ज्यादा है) । अपनी डिस्पेंसरी में वे मिले नहीं, कंपनी बाग में ‘डॉग शो’ देखने गये थे । हमने कहा चलो लगे हाथ हम भी कुकुर शो देख लें । उस दिन ‘फ्लावर शो’ भी चल रहा था । अच्छे-अच्छे व सुन्दर, सुशील, कोमल फूल रखे गये थे । उन्हें देखकर मेरे मन में एक कुत्सित विचार आया कि कहीं से दो दर्जन गाय घुस आतीं तो आनंद आ जाता । उन फूलों को चरने के बाद गाय जो दूध देंती वह कितना खुशबू देता । खैर छोड़ो ।

शहर भर के कुकुर प्रमी एकत्रित थे । भीड़ में तीन प्रकार के लोग थे । पहले आर्गनाइजर और पुलीस वाले । दूसरे कुत्ताप्रेमी और तीसरे कुत्ताप्रेमियों के प्रेमीजन । यहाँ पर यह बताना चाहूँगा कि कुत्ताप्रेमियों में रईस युवतियाँ भी थीं अत: प्रेम पुजारियाँ का भी तांता लगा हुआ था । मैं अपने 5.5 क़े चश्में से सबको देख रहा था । तमाम बिल्लीनुमा कुत्तों को सयानी बच्चीयाँ गोद में उठाये दुलार कर रहीं थी । सहला रही थीं । और कितनी ऑंखे उन कुत्तों के नसीब को घूर रहीं थीं । कितनी ज़बान उन कुत्तों के नसीब पर मातम कर रहीं थीं । कितने हाथ ऊपर उठे दुआ माँग रहे थे ( हे अल्लाताल ! अगले जनम में कुत्ता ही बनाना ) । भौतिक सुखों कि प्राप्ति के लिये कुत्ता योनि में जन्म लेना चाहिये । वैसे इंसान इसी जन्म में ही कुत्ता बन जाये तो मजे ही मजे हैं । ऐसे लोग जीवन में सफल माने जाते हैं ।

अचानक दूध वाले को एक भैंस का (पड़वा) पेड़ से बंधा दिखाई दिया । मैं भी चकित था कि डॉग शो में दुधारू नस्ल कहाँ से आ गई ? इसमें हम दोनो का दोष नहीं था । क्योंकि एक तो मेरी ऑंख चश्में के बावजूद भी कमज़ोर है और दूधवाला भी गाय भैंसों के बीच ही रहता है इसलिये उसको उनके अलावा कुछ सूझता भी नहीं है । वो एक विदेशी नस्ल का काला कुत्ता था ‘ग्रेट डेन’ । लंबाई चौड़ाई, ऊंचाई एक पड़वा के बराबर थी । दूधवाला जानना चाहता था कि वह कितना चारा, भूसा खाता है ? उसका मालिक शान से उसके दिन भर की डाइट बता रहा था । जितना दूधवाला के चार ग्राहक मिल कर दूध खरीदते हैं उतना वह कुकुर दी ग्रेट एक दिन में पी जाता था । जितनी रोटियाँ मुझ गरीब आदमी के घर में बनतीं हैं उतनी वह अकेला डकार जाता था । महीने भर में 5-6 बकरों का मांस चबा जाता था । मतलब सीधा था कि हम जिस प्राणी का अवलोकन कर रहे थे शुक्र है कि उसके दर्शन के लिये टिकट नहीं लेनी पड़ी ।

फिर भी ज्यादातर कुत्ता मालिकों को एक दुख होता है कि वो अपना कुत्ता किसी पर छोड़ नहीं सकते । अगर वह राह चलते लोगों को खदेड़-खदेड़ कर काटे तो उनकी मेहनत और रकम सार्थक हो । परन्तु ज्यादातर कुत्तों को बंगले के गेट से भूँकना पड़ता है और मालिकों को उसी से संतोष करना पड़ता है । एक बात के लिये तो मैं शर्त लगा सकता हूं कि जितना पैसा श्वानप्रेमी एक विदेशी कुत्ता खरीदने में और पालने में खर्च देते हैं उसका आधा भी अगर एक देशी कुत्ते के लालन पालन पर खर्च कर दें तो वह एक डाबरमैन और अल्शेसियन से ज्यादा ताकतवर और खतरनाक निकलेगा । यह मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है । आपका फिरंगी कुत्ता अगर एक बार सड़क पर अकेला टहल जाये तो गली के कुत्ते काट खायें । यह सिर्फ बंगलों के अंदर भौंकते अच्छे लगते हैं ।

गॉव में भी लोग कुत्ता पालते हैं मगर सुबह-शाम टहलाते नहीं हैं पर उनको वक्त पर खाना जरूर देते हैं । वह कुत्ते घर, खेत, बाग सभी जगह रखवाली करते हैं । ताकत में भी वह फिरंगी कुत्तों से बीस होते हैं । भाई कुत्तों को रखवाली करने का मौका दो । उनकी रखवाली करोगे तो वे मेहरा जायेंगे और तब एक बिल्ली भी भगाना मुश्किल हो जायेगा ।

कुकुर पालना आज स्टेटस सिंबल है जो जितना खुंखार कुत्ता पालेगा वह उतने ही सम्मान की निगाह से देखा जायेगा । आज विदेशी कुत्ता और विदेशी जूता इज्जत को चार चाँद लगाते हैं । हालांकि किसी को कुत्ता बोल दो या जूता मार दो तो उसकी आबरू का जनाजा निकल जाये । फिलहाल आदमी आज जूतों और कुत्तों का मोहताज है । मैं न तो विदेशी जूता खरीद सकता हूं और न ही डॉबरमैन को दो जून की रोटी दे सकता हूँ तो फिलहाल मुझ जैसे आम आदमी का कोई स्टेटेस नहीं है ।

=>किस किस को जानिये, किस किस को देखिये । आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोईये । वऊsssss।

सिठौरा एक पौष्टिक आहार



आज आप किसी भी राह चलते आदमी से पूछिये कि भाई साहब आज भारत की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? वह कहेगा ‘बढ़ती हुई आबादी ।’ फिर आप उससे एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछिये ‘आपके कितने बच्चे हैं ? तो वह कहेगा ‘हम 6 भाइयों में 22 बच्चे हैं ।  भारत पर एहसान किया । 1962 में चीन ने हमको धोया था । उसी का गम खाये जा रहा है । पहले चीन से ज्यादा आबादी करेंगे फिर उससे निपटेंगे । चीन से निपटने के पहले इतनी आबादी खुद अपने 0आप को ही धो देगी । न रहने को जमीन होगी । न खाने को अन्न ।

मित्रों, बढ़ती हुई आबादी के क्या कारण हो सकते हैं ? अशिक्षा, भगवान की देन, जितने बच्चे होंगे उतना अधिक कमायेंगे, चाहे परवरिश के आभाव में एक तिहाई ही बचें । गरीबी, जो कि शिक्षित होने में बाधा है । धर्म जैसी कि इस्लाम में मन्याता है नियोजन के बारे में । इतने कारण तो आप गिना सकते हैं पर एक कारण मैं और गिनाना चाहूंॅगा । सिठौरा ।

खाया है आपने कभी ? बड़ा माल पड़ता है इसमें । सूपर टाॅनिक है । जचगी के बाद महिलाओं को खिलाया जाता है । हेल्थ का स्तर ऊपर उठाने के लिये । ये लेख में दो साल पहले लिखना चाहता था । क्योंकि तब विमला को चैथा बच्चा हुआ था । परसों छठा भी अवतरित हो गया । विमला मेरी महरिन का नाम है । माता श्री की बेस्ट फेंड हैं । मोहल्ले की सारी खबर ‘विमला टाईम्स’ और ‘विमला सांध्य समाचार’ दोनो वक्त अपनी बहुमूल्य राय के साथ प्रसारित करती है । इसके लिये उन्हें महीने में कभी भी और कितना भी एडवांस दिया जाता है ।

पिछले चार साल से देख रहा हूॅं कि विमला हर साल डेढ़ महीने की मेट्रीनिटी लीव  लेकर ही रहती है । कारण बताने से पहले एक खबर बता दूॅं जो कि पांच-छः महीने पहले अखबार में पढ़ी थी । इटावा से करीब 40-50 किलोमीटर दूर बीहड़ में एक गांव की महिला ने अकेले अपने दम पर 22 बच्चे पैदा किये हैं । पति का हार्दिक सश्रम सहयोेग तो था ही । उसके पति से पत्रकार ने अगली कार्यवाई के लिये पूछा तो अपनी अर्धंागिनी के स्वास्थय को लक्षित करते हुये उन्होंने आगे 2-3 बच्चों की उम्मीद और बताई । महिला से परिवार नियोजन आदि के बारे में पूछा गया तो उसने पहले तो इस चिड़िया के विषय में पूछा कि क्या ये एक बार में 22 अंडे दे सकती है । बाद मे विस्तार से बताने पर उन्होंने सरकार पर रोष प्रकट किया कि पहले बताया होता तो इतने न पैदा हुये होते । कोई सरकारी आदमी इस गांव तक नहीं पहुंॅचा है क्योंकि सड़क यहाॅं से पांच किलोमीटर पहले ही खत्म हो जाती है ।

मेरा सरकार को सुझाव है कि पहले बारहवीं या पंद्रहवी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत सड़कें सभी गांवो तक पहुंचाई जाये और फिर परिवार नियोजन के सरकारी अधिकारी जीप समेत गांवों तक पहुंॅचेगें और गांववासियों को बढ़ती हुई आबादी के खतरे से सावधान करेंगें । लाल तिकोन जिंदाबाद ।

तो मैं  सिठौरा और विमला का रिश्ता बता रहा था । जैसा कि विदित है माता जी विमला जी से अत्यंत स्नेह करती हैं । स्नेह करने का कारण है । पिछले  8 साल में विमला 32 घर छोड़ चुकी होगी पर हमारे यहां बरकरार है । वजह दोनोे में अच्छी ट्यूनिंग है । खूब पटती है । पारिवारिक से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं तक जिनमें मोहल्ले की समस्यायें भी शामिल होती हैं सब पर बारी बारी से गहन विचार विमर्श किया  जाता है । इस बीच विमला जी बर्तन मांजने का पार्टटाईम जाॅब करती हैं और मम्मी विमला के लिये चाय और उसके बच्चों को रात का बचा खाना देती हैं । ऐसे संबंध है जैसे भारत और रूस के बीच प्रगाढ़ मित्रता है । दोनो टेम दोनो में खूब छनती  है ।

विमला को जब भी उम्मीद टाईप कुछ लगता है बस परम कृपालु माता श्री उसको 2 किलो सिठौरा बाॅंध कर पहुॅंचा देती है । सिठौरा अंदर और विमला टनाटन । दस दिन में सेहत पर आ जाती हैं । मेट्रीनिटी लीव के दौरान विमला की बड़ी लड़की एक टाईम बर्तन मांज जाती है । वो भी सिर्फ हमारे यहाॅं । सिठौरा का ख्याल रखा जाता है । विमला पति जब विमला को टनाटन देखते होंगे तो सोचते होंगे अभी भी दम है इस में । इसी दम पर दुनिया कायम है । दोनो अपना अपना दम परखते हैं और सिठौरा विमला को दमदार बनाता रहता है । अफसोस भारत का मिलेनियम बेबी अगस्त में पैदा हुआ ।

मेरा सरकार को एक अमूल्य सुझाव है और सरकार को अगर अमूल्य शब्द पर आपत्ति हो तो वो मुझको घोटालों की कुछ रकम दे सकती है, कि इस कंबख्त सिठौरे पर प्रतिबंध लगा दिया जाये । आबादी का कारण न  तो अशिक्षा है और न ही भगवान । कारण है सिठौरा ।    इतनी ज्यादा पौष्टिक चीजें भारतवासी खायेंगे तो इस ऊर्जा का उपयोग अंत में मियां बीवी एक दूसरे का दम परखने में करेंगे और आफत बाद में बेचारे चीन की आयेगी । आज भारत माॅं के एक अरब लाल और लल्ली हैं । कल डेढ़ अरब होंगे । कहाॅं रहेंगे ? हिंद महासागर में ?   क्या खायेंगे?    मिट्टी ? क्या पहनेंगे ? हवा ?

जेई लिये भारत सरकार से कहता हॅंू , लाल तिकोन के पोस्टर लगा कर देख लिया। कुछ नहीं हुआ । बस अब सिठौरा पर प्रतिबंध लगा दो । भारतवासियों से टी.वी. पर, रेडियो पर, अखबारों से अपील करो सिठौरा मत खाओ । मत सेहत बनाओ । नहीं तो भुगतो । युवतियांॅ जबरदस्त डाईटिंग करें कि दम ही न रहे और सारा जोश ठंडा हो जाये । आई हेट सिठौरा । से नो टू ड्रग्स, से नो टू सिठौरा ।

( अगस्त 2002 में विमला की बड़ी बेटी टाइफाईड से खत्म हो गई । उसके एक साल बाद विमला भी लंबी बिमारी के बाद खत्म हो गई । तीन साल हुये वह दूर दूसरे मोहल्ले में रहने लगी थी । )

कल रात मेरे पति से भूल हो गई !

 

 

 

=>सुनिये जी ! कल रात फिर आपसे भूल हो गई है । इतनी जल्दबाजी में क्यूं रहते हैं ?

वैधानिक चेतावनी: 18 साल से कम उम्र के व्यस्क इस व्यंग्य लेख को माँ-बाप से छिप कर पढें (क्यूं कि पढे बिना तो मानोगे नहीं) ।

इधर कुछ महीनों से सवेरे-सवेरे अनुलोम-विलोम, कपालभाति आदि निबटा कर जब चाय के साथ दुनिया जहान की खबरें पढने बैठता हँू तो एक पता नहीं कौन सी भाभी जी हैं, आजकल हर दूसरे-तीसरे फ्रंट पेज पर अपना मुखड़ा सहित दुखड़ा लेकर चली आती हैं । क्या कहूँ, ”कल रात मेरे पति से फिर भूल हो गई” । भाई साहब इधर शेयर मार्केट में आग लगी है, गठबन्धन सरकार की गाँठे खुल रही है, ट्रेनें बहक-बहक कर पटरियों को तलाक दे रही है,मेडिकल इक्ज़ाम के पेपर आउट हो रहे हैं, सालियाँ प्रेममयी जीजाओं को ठेंगा दिखा यारों संग चम्पत हो रहीं हैं, मतलब की और भी बहुत से गम हैं अखबार में इसके सिवाय कि इधर इनके पति से सोमवार रात भूल हुई थी इधर शुक्कर की रात साला फिर भूल भलैया में फंस गया ।

घोर विपदा में पड़ी इन भाभी जी के बारे में मैं विचार करने लगा कि इनके पति को कौन सी बीमारी हो सकती है । अल्जाईमर्स का मर्ज हो सकता है क्यूंकि इस बीमारी में मरीज की याद्दाश्त जाती रहती है । या फिर भाईसाहब ने शादी ही प्रोढ़ावस्था के बाद की होगी । उम्र के साथ साथ याद्दाश्त पर भी असर पड़ने लगता है । लेकिन ऐसी क्या बात है कि भाई साहब सप्ताह में दो-तीन बार ऐसी जरूरी बात मिस कर जाते हैं और दूसरे दिन भाभी जी इस हादसे की खबर शहर के हर अखबार के पहले पन्ने पर प्रकाशित करवा देती हैं । मेरे नौ वर्षीय भतीजे से जब नहीं रहा गया तब वह जिज्ञासू पूछ ही बैठा”ताऊजी ये आंटीजी के अंकल जी हर रात ऐसी क्या चीज भूल जाते हैं कि आंटी जी बार बार अखबार में इनकी शिकायत करती रहती हैं ?” मैं क्या जवाब देता । मैं खुद इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा था ।

अब भाभी जी भी कम भुलक्कड़ नहीं हैं । हर दूसरे तीसरे ये खबर छपवा देती हैं कि कल रात मेरे पति से भूल हो गई, पर अपने घर का पता या मोबाईल नं0 छपवाना भूल जाती हैं । भई कुछ अता पता दो, हम लोग घर पहुंच कर मामले की गंभीरता को समझें और गहराई से इस पहेली की पड़ताल करें की साला ममला कहाँ से शुरू होता है और कहाँ जाकर खत्म होता है । ये रोज रोज एक अबला का दर्द हम लोगों से अखबार में नहीं पढा और सहा जायेगा । बात क्या है । अगर भाई साहब इतने ही बड़े भारी भुलक्कड़ हैं तो दुनिया में भाई साहेब लोगों का अकाल नहीं पड़ा है । आप इन भुलक्कड़ भाई साहब से अपना पल्लु झटक कर किसी दूसरे दिमागदार और याद्दाश्त के धनी भाई साहब से गठबंधन कर सकती हैं । पूज्य भाई साहेब जी अगर कोई बहुत जरूरी जीच हर दूसरी-तीसरी रात भूल ही जाते हैं तो भाभी जी  हमें बतायें । हम लोग उनकी इस भूल को दुरस्त करने का भरसक प्रयास करेंगे ।

तो मित्रों, सवेरे सवेरे एक सांवली सलोनी, हष्ट पुष्ट (क्यूंकि भाभी जी ये खबर मय फोटो के छपवाती हैं), मातम मनाती सुदंर स्त्री का विलाप पढते-पढते जब दिल और दिमाग दोनो जवाब दे गये तब जाकर पता चला कि भाई साहब रात में टोपी पहनना भूल जाते हैं और भाभी जी इस भरी जवानी में पैर भारी होने की टेंशन से पीड़ित हो कर सवेरे- सवेरे अपने नादान पति की कारगुजारी अखबार में छपवा देती हैं । अब आप सोच रहे होंगे कि ये अखबार वाले भी न, एक नं0 के शैतान होते हैं । इसी बहाने एक सुंदर महिला रोज-रोज इनके दफ्तर अपने पति की नादानियाँ सुनाने पहुँच जाती है और ये लोग भी अपना सारा काम-धाम छोड़कर, खूब चटकारे लेकर उनके पतिदेव की नादानियाँ सुनने में लग जाते होंगे । नहीं मित्रों, ऐसी कोई बात नहीं है । न तो उन हसीन भाभीजी के पतिदेव रोज-रोज कोई भूल करते हैं और न ही वो अप्सरा अपना दुखड़ा लेकर रोज-रोज अखबार के दफ्तर पहुँची रहती हैं । बात ये है कि एक दवा की कम्पनी है जिसकी एक दवा 72 घंटे के अंदर ऐसी किसी भी हसीन भूल-चूक, लेनी-देनी के कारण हुई टेंशन का निवारण करती है । सारा कसूर साली इस कम्पनी का था और हम बेवजह इन हसीन भाभी जी के पेटपिरावन कष्ट को याद कर कर के पिलपिला रहे थे । एक तो कम्बख्त आजकल ये भी पता नहीं चलता है कि अखबार में कौन सी चीज खबर है और कौन सी चीज विज्ञापन ।

वैसे इस प्रकार की दवा कम्पनियाँ भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय पर उपकार ही कर रही हैं । ये एक हसीन सी जिस्मानी भूल-चूक, लेनी-देनी को माफ और साफ कर देती हैं और इसकी वजह से बाद में बेवजह के गर्भपात से भी छुटकारा मिल जाता है । लेकिन इस दवा के कारण अब प्रेमी प्रेमिकाओं, स्कूली छात्र-छात्राओं, अपने धर्मपति से नाउम्मीद धर्मपत्नियों को या अपनी धर्मपत्नी से नाउम्मीद धर्मपतियों को, शादी का वादा करके एडवांस में सुहागरात मनाने वाले गंधर्व पुरूषों को एक सहूलियत मिल गई है । इस व्यभिचार को बढावा देने के लिए भारत की पुरातन संस्कृति सदैव इन समाज सेवी दवा कम्पनियों की ऋणी रहेंगी ।

तो ये कहानी थी मित्रों, हसीन दुखियारी भाभी जी की । इसके अलावा कुछ विज्ञापन और भी छपते हैं हष्ट-पुष्ट, स्वस्थ नारियों के फोटो सहित, जिसमें उनके जिस्म के उभारों को नारी सौंदर्य का प्रतीक बताया जाता है और इन उभारो के प्राकृतिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व को दर्शाया जाता है और साथ ही बताया जाता है कि इस प्राकृतिक नारी सौंदर्य के बिना आप अधूरी हैं । आपके इस अधूरेपन को पूरा करने का ठेका भी इनकी चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल प्राईज विनर दवाओं ने ले रखा है । इसलिए अगर आप ठीक तरह से अपने प्रेमियों और पतियों को प्रेमरस से परिपूर्ण जिस्मानी सर्विस नहीं दे पा रहीं है तो आपकी इस दुविधा को दूर करने के लिए हमें एक बार सर्विस का मौका दें और एक बार हमारे बॉडी टोनर का प्रयोग कर के देखें ।

मित्रों, अब इन विज्ञापनों को पढ कर 80 प्रतिशत महिलाओं के मन में हीन भावना आ जायेगी कि मेरा शरीर मेरे पार्टनर को संतुष्ट करने लायक नहीं है और दूसरी तरफ मर्दजात के मन में एक ख्वाईश पैदा हो जायेगी कि पार्टनर हो तो ऐसा हो, नहीं तो न हो । अब यह मेडिकल के छात्रों के लिए शोध का विषय है कि इस प्रकार के बॉडी टोनर से क्या वाकई में सभी महिलाओं के उभार पामेला एंडर्सन जैसी ऊंचाईयाँ प्राप्त कर लेंगे ।   खुदा जाने । मेरी जानकारी में तो भगवान ने आपको जैसा शरीर दिया है उसमें बिना कॉस्मेटिक सर्जरी की मदद के कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता है । लेकिन सवेरे-सवेरे इन हसीन भाभीयों का दुख पढ कर दिल भर आता है और फिर ये लगता है कि काश मैं इनकी कोई मदद   कर पाता ।

भारतीय संस्कृति में हास्य व्यंग्य की जड़ें

लेखक – श्री नरेश मिश्र
हास्य व्यंग्य का मूल स्रोत हमारी हजारों बरस पुरानी संस्कृति, सभ्यता और जीवन दर्शन में देखा जा सकता है । भारतीय संस्कृति में मृत्यु, भय और दु:ख का कोई खास वजूद नहीं है । हमारे दार्शनिकों ने जिस ब्रह्म की अवधारणा को समाज के सामने रखा वह सत् चित् के साथ ही आनंद का स्वरूप है । ब्रह्म आनंद के रूप में सभी प्राणियों में निवास करता है । उस आनंद की अनुभूति जीवन का परम लक्ष्य माना जाता है । इसी से ब्रह्मानंद शब्द की रचना हुयी है । वह रस, माधुर्य, लास्य का स्वरूप है । इसीलिये ब्रह्म जब माया के संपर्क से मूर्तरूप लेता है तो उसकी लीलाओं में आनंद को ही प्रमुखता दी गयी है । हमारे कृष्ण रास रचाते हैं, छल करते हैं, लीलायें दीखाते हैं । वे वृंदावन की कुंज गलियों में आनंद की रसधार बहा देते हैं । मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम भी होली में रंग, गुलाल उड़ाते हैं और सावन में झूला झूलते हैं । उनकी मर्यादा मे भी भक्त आनंद का अनुभव करते हैं ।

हमारी संस्कृति में मृत्यु और दु:ख को ज्यादा अहमियत नहीं दी गयी है । मृत्यु एक परिवर्तन का प्रतीक है । हम नहीं मानते कि शरीर के साथ आत्मा मर सकती है । वह तो एक पहनावा बदल कर दूसर पहन लेती है । हमारे देश में प्रचलित ऐसे मत, पंथ भी हैं जिनमें शरीर का समय पूरा होने पर खुशी मनाई जाती है । नाच-गाने के साथ, बड़े उमंग और उत्साह से पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार यह मानकर किया जाता है कि जीवात्मा अब अपने स्वामी ब्रह्म से मिलने जा रही है । मिलन की इस पावन बेला मे दु:ख, दर्द और शोक की जरूरत नहीं है ।

हमारे नटराज भोले भण्डारी सामाधि के साथ ही आनंद के भी प्रतीक हैं । वे नृत्य, गायन, व्याकरण, भाषा और ऐसी तमाम गतिविधियों के केन्द्र हैं जिनसे प्राणी के मन में आनंद का सागर हिलोरें लेने लगता है । हमारे अवतारों की तिथियाँ बड़े उत्साह और पूरी श्रध्दा के साथ मनाई जाती हैं । इन अवतारों की निधन तिथियों को कोई भूल कर भी याद नहीं करना चाहता है । वजह साफ है । हम मानते हैं कि अवतार ने प्रकट होने का उद्देश्य पूरा कर लिया अब उसे मूल तत्व यानि ब्रह्म में लीन हो जाना चाहिये ।

हास्य व्यंग्य की यह धारा वेदों के जमाने से लगातार हमारे देश मे बह रही है । इसी सांस्कृतिक अवधारणा ने हमें वह अमृत पिलाया है जिसके सबब हमारी सभ्यता आज भी सनातन कही जाती है । भारतीय संस्कृति में ईश्वर की अवधारणा इस तरह रची बुनी गयी है कि हम उससे डरते नहीं हैं । वह कोयी ऐसी शक्ति नहीं है जिससे डरना जरूरी हो । वह प्राणियों में भय का संचार नहीं करता । वह हमारा आदि स्रोत है । हम उसी के अंग हैं । वह जड़ चेतन में व्याप्त है । हम उसके के साथ कोई भी रिश्ता बनाने के लिये स्वतंत्रत हैं । इसीलिये संत कबीर ने कहा था –

हम बहनोई, राम मोर सार । हमहिं बाप, हरिपुत्र हमारा ।
कोई उपासक अपने उपास्य से इमने आत्मविश्वास के साथ ऐसा रिश्ता जोड़ने का साहस नहीं कर सकता । यह हमारी संस्कृति की खास देन है । हम अपने उपास्य से अनेक रूपों में प्रेम कर सकते हैं । हम उसके दास, सखा, सेवक यहां तक कि शत्रु और स्वामी भी बन सकते हैं । हमारी इसी वैचारिक स्वतंत्रता ने समाज को हास्य व्यंग्य का उपहार दिया है ।

हम मानते हैं कि ब्रह्म के अलावा सभी जीव गुण और दोष के पुतले हैं । गुण और दोष का मिश्रण ही मनुष्य की खास पहचान है । हम आनंद की अनुभूति के लिये पैदा हुये हैं । रोने-धोने, बिसूरने और निषेधात्मक भयादोहन करने वाली चिंताओं में बैचेन रह कर जिंदगी गुजारना हमारे जीवन का मकसद कतई नहीं है । समाज में विषमताएं हैं, गरीबी है, आर्थिक द्वंद हैं, दुरूह समस्याएं हैं इसके बावजूद हर हाल मे हंसते रहना और चुनौतियों का डट कर मुकबला करना हमारी संस्कृति का मूल संदेश है । इसलिये हम आये दिन त्यौहार मनाते हैं और सारे गमों को भुलाकर आनंद की नदी में डुबकी लगाते हैं । हम बूढ़े नहीं होते । हमारा शरीर बूढ़ा होता है । बुढ़ापे में भी फागुन आता है तो होली के हुड़दंग में जवान महिलाओं को बुढ़ऊ बाबा से देवर का रिश्ता जोड़ने में कोई हिचक नहीं होती । वे मगन हो कर गाने लगते हैं –

फागुन में बाबा देवर लागे ।
यह बंधनों से मुक्त समाज का प्रतीक है । हम अपने आराध्य देवताओं के साथ भी हंसी मजाक करने से बाज नहीं आते हैं । कुछ नमूने देखिये । भगवान जगन्नाथ के मंदिर में उनका दर्शन कर एक भक्त कवि के मन में सवाल उठता है कि भगवान काठ क्यों हो गये । कठुआ जाना लोक बोली का एक मुहावरा है । भक्त अपनी कल्पना की उड़ान से संस्कृत में जो छंद रचता है उसका हिन्दी रूपान्तर कुछ इस तरह किया जा सकता है –

भगवान की एक पत्नी आदतन वाचाल हैं (सरस्वती) दूसरी पत्नी (लक्ष्मी) स्वाभाव से चंचल हैं । वह एक जगह टिक कर रहना नहीं चाहतीं । उनका एक बेटा कामदेव मन को मथने वाला है । वह अपने पिता पर भी हुकूमत कायम करता है (कामदेव) । उनका वाहन गरूड़ है । विश्राम करने के लिये उन्हें समुद्र में जगह मिली है । सोने के लिये शेषनाग की शैय्या है । भगवान विष्णु को अपने घर का यह हाल देख कर काठ मार गया है ।
कवि भक्त है । उसके मन मे अपार श्रध्दा है । वह आराध्य का अपमान नहीं करना चाहता लेकिन उनके साथ हंसी मजाक करने से बाज नहीं आता ।

दूसरा भक्त कवि आशुतोष शंकर का दर्शन कर सोचता है कि इस भोले भण्डारी, जटाधारी, बाघम्बर वस्त्र पहनने वाले के पास खेती-बारी नहीं है । रोजी का कोई साधन नहीं है तो इनका गुजारा कैसे होते है ।

भक्त संस्कृत में छंद कहता है –

उनके पास पांच मुंह हैं । उनके एक बेटे (कार्तिकेय) के छह मुंह हैं । दूसरे बेटे गजानन का पेट तो हाथी का है । यह दिगबंर कैसे गुजारा करता अगर अन्नपूर्णा पत्नी के रूप में उसके घर नहीं आतीं ।

तीसरा भक्त कवि कहता है कि भगवान शंकर बर्फीले केलाश पर्वत पर रहते हैं । भगवान विष्णु का निवास समुद्र में है । इसकी वजह क्या है ? निश्चित ही दोनों भगवान मच्छरों से डरते हैं इसलिये उन्होंने ने अपना ऐसा निवास स्थान चुना है ।

मृच्छकटिक नाटक के रचयिता राजा शूद्रक हैं । वह ब्राह्मणों की खास पहचान यज्ञोपवीत की उपयोगिता के बारे में ऐसा व्यंग्य करते हैं जिसे सुन कर हंसी आती है । वह कहता है कि यज्ञोपवीत कसम खाने के काम आता है । अगर चोरी करना हो तो उसके सहारे दीवार लांघी जा सकती है ।

संस्कृत, पालि, अपभ्रंश साहित्य में हास्य व्यंग्य के हजारों उदाहरण मिल सकते हैं । कहीं ये उक्तियाँ गहरे उतर कर चोट करती हैं । कहीं सिर्फ गुदगुदा कर पाठकों और दार्शकों को हंसने पर मजबूर कर देती हैं ।

संस्कृत की यह धारा लोकजीवन में इस कदर रच बस गयी है कि आज भी हमारे लोकगीतों में देवताओं के साथ छेड़-छाड़, हंसी मजाक करने में लोक गायकों को कोई संकोच नहीं होता है । हरिमोहन झा ने अपनी हास्य व्यंग्य पर आधारित पुस्तक ”खट्टर काका” में देवी-देवताओं और अवतारों के साथ खूब जम कर ठिठोली की है । अगर भूल से यह पुस्तक किसी नास्तिक के हाथ लग जाये तो वह इस हंसी मजाक को गंभीरता से ले लेगा और उसकी नास्तिकता और प्रगाढ़ हो जायेगी जबकि यह देवी दवताओं के साथ किया गया मात्र हंसी मजाक है ।

हिन्दी और उर्दू साहित्य के विकास के साथ ही हास्य व्यंग्य विधा परवान चढ़ने लगी । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और अकबर इलाहाबादी जैसे कवियों ने इसे कलेवर दिया । बाबू बालमुकुंद गुप्त अपने अन्योक्तिपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये व्यंग्य साहित्य में एक नया मानक बनाने मे सफल हुये । उर्दू शायरों ने तो ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजियत पर ऐसे तीखे प्रहार किये कि अंग्रेज उसे समझ भी नहीं पाते थे और हिन्दुस्तानी उसका जायका लेते थे ।

अकबर साहब फरमाते हैं –

बाल में देखा मिसों के साथ उनको कूदते ।
डार्विन साहब की थ्योरी का खुलासा हो गया ।
जनाब अकबर इलाहाबादी ब्रिटिश अदालत में मुंसिफ थे लेकिन वे अपने व्यंग के तीरों से ऐसा गहरा घाव करते थे कि पढ़नेवाला एक बार उसे पढ़कर हजारों बार उस पर सोचने को मजबूर हो जाता था । लार्ड मैकाले की शिक्षा पध्दति का पोस्टमार्टम जिस बेबाकी से अकबर साहब ने किया उसकी गहराई तक आज के व्यंगकार सोच भी नहीं सकते हैं –

तोप खिसकी प्रोफेसर पहुंचे । बसूला हटा तो रंदा है ।
प्लासी की लड़ाई में सिराज्जुदौला को शिकस्त देकर तमाम देसी रियासतों को जंग में मात देकर अंग्रेजों ने तोप पीछे हटा ली और अंग्रेजी पढ़ाने वाले प्रोफेसरों को आगे कर दिया । तोप के बसूले ने समाज को छील दिया और प्रोफेसर के रंदे ने उसे अंग्रेजों के मनमाफिक कर दिया । तोप और प्रोफसर का यह तालमेल ब्रिटिश शिक्षापध्दति पर बेजोड़ और बेरहम हमला है ।

पं0 मदनमोहन मालवीय और सर सैयद अहमद खाँ जिन दिनों हिन्दू यूनिवर्सिटी और मुस्लिम यनिवर्सिटी की स्थापना के लिये प्रयास कर रहे थे उन्हीं दिनों अकबर साहब ने एक शेर कहा था –
शैख ने गो लाख दाढ़ी बढ़ाई सन की सी । मगर वह बात कहाँ मालवी मदन की सी ।
यहाँ ”सन की” शब्द पर गौर कीजिये । दोनों शब्दों को मिला देने पर जो अर्थ निकलता है वह शायर के हुनर की मिसाल है । अकबर साहब पं0 मदनमोहन मालवीय कि मित्र थे । उन्हें सर सैयद अहमद खाँ की अंग्रेज परस्ती फूटी ऑंखों नहीं भाती थी । वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में कोताही नहीं करते थे ।

इक्कीसवीं सदी में हास्य व्यंग्य की विधा का नया कलेवर नई दिशा की ओर संकेत कर रहा है । वह समाज की विसंगतियों का आईना है । जनभावनाओं की हसरत नापने के लिये थर्मामीटर का काम करता है । हमारे तथाकथित लोकतंत्र में जितने पाखंड विद्रूप हैं, जितनी विसंगतियाँ हैं, सियासत में छल-प्रपंच का पासा खेला जा रहा है उसका चित्रण करने के लिये गंभीर गाढ़े शब्दों में रचे गये साहित्य की जरूरत नहीं है । बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, जाति विद्वेष, धार्मिक उन्मांद के दम घोंटू वातावरण में हास्य व्यंग समाज को ऑक्सीजन देने का काम करता है । इस बहाने समाज का तनाव कम होता है और उसे राहत मिलती है ।

ज़रा आंख में भर लो पानी (विजय दिवस पर विशेष) कारगिल युध्द . भाग -2


71 के बाद 99 (28 साल का अंतर) एक पूरी पीढ़ी के उग आने का समय । एक पूरी पीढ़ी पैदा होकर जवान हो गई, पाकिस्तान में भी, हिंदुस्तान में भी । युध्द पढ़ा था किताबों में, सुना था बुजुर्गों से, और देखा था टी.वी. पर युध्द आधारित कार्यक्रमों में । कारगिल: हमारी ताज़ी दोस्ती का प्रतीक (लाहौर यात्रा), 28 साल के लम्बे अन्तराल के बाद तूफान का प्रतीक, 50 साल से सुलगती राख में एक चिंगारी का प्रतीक । यह चिंगारी अचानक हवा पाकर शोला हुई, भभकी और हमारे 400 जवानों के खून से अपनी प्यास बुझा कर ठंडी हो गई । कारगिल नई पीढ़ी के लिये एक नया अनुभव था ।

इन दो महीनों में देश में राष्ट्रप्रेम का भीषण ज्वार आया । वीर सैनिकों को रक्तदान के लिये इतनी भीड़ जुटी की इतना खून कैसे, कहाँ सुरक्षित रखें एक प्रश्न था । ज़ज्बा सिर्फ एक कि हमारा लहू उस लहू से मिल जाये जो हिमालय पर काम आया । अरबों रूपये शहीदों के परिवारों के लिये दान दे दिये गये । सहारा परिवार ने 300 सैनिकों के परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली । सारा देश आज सैनिकों के साथ है ।

सरहद के उस पार से गलतफहमियों और सरकारी अफवाहों ने कारगिल पचड़ा शुरू किया । पाकिस्तान और उसकी सेना को यह गलतफहमी है कि किराये के बम और मिसाइलों से वह भारत को फतह कर लेगा । 28 साल में वहां के बूढ़ों की याद्दाश्त कमज़ोर पड़ गई और उनके बच्चों ने गलतफहमियां पाल ली कि अब तो इंडिया गया समझो । नादान पड़ोसी । हिंदुस्तान कोई अफ्गानिस्तान नहीं है । एक अरब में से 1 प्रतिशत भारतीय भी खड़ा हो गया तो पाकिस्तान नक्शे में ढ़ूढ़ते रह जाओगे । ”अरे यहीं कहीं तो था इंडिया और इरान के बीच में । कहाँ गया ?”

उनको पड़ी है कि एक युध्द में कश्मीर झपट लेंगे । हम राह देख रहे हैं कि बंग्लादेश हो गया, अब पाकिस्तान भी निपटा दें । कारगिल को युध्द नहीं कहा जा सकता है । लगभग 100 किमी. के अखाड़े में डंड बैठक हो गई । पाकिस्तान को अक्ल आ गई कि अपनी औकात पंजा लड़ाने की भी नहीं है अगर कुश्ती हुयी तो एक भी हड्डी साबूत नहीं बचेगी । अमेरिका से चंदा मांगकर जैसे तैसे रोटी चलती है । इंडिया ने ठोंक दिया तो अस्पताल का बिल भी वल्ड बैंक खाते में जोड़ लेगा । ( या फिर कफ़न का खर्चा ) ।

नवाज शरीफ चीन गये । चीन ने कहा ‘अच्छे बच्चे लड़ाई नहीं करते । चलो इंडिया को सॉरी बोलो और कारगिल खाली करो ।’ नवाज नहीं माने । अमेरिका गये । क्लिंटन ने समझाया ‘शांति से रहना सीखो, नहीं तो पॉकिटमनी भी बंद कर दूँगा ।’ बिचारे शरीफ सोचे इंग्लैंड से भी बात कर ली जाये । उसने भी कह दिया ‘ 50 साल के बच्चे अब तो बड़े बन जाओ । ये लड़ना झगड़ना कब छोड़ोगे ? बच्चों कि लड़ाई में बड़े नहीं पड़ते । चलो कारगिल वापस करो ।’ शरीफ शराफत से पाकिस्तान लौट आये । डर भी लग रहा था कि कहीं सरहद पर हिंदुस्तान की तरफ मुँह की हुई तोपें अगर इस्लामाबाद की ओर मुड़ गईं तो उनकी खटिया खड़ी और तख्ता पलट जायेगा ।

शरीफ ने घुसपैठियों से अपील की ”मुज़ाहिद भाइयों, अब वापस आ जाओ । इंडिया डर गया है । इस्लाम कहता है कि डरे हुये को सताना गलत है । वापस आ जाओ (अगर जिंदा हो तो, लाशें हमारे किसी काम की नहीं) क्योंकि हमारा मकसद पूरा हो गया है (लात खाये बहुत साल हो गये थे, बल भर खा लिया है ) वापस आ जाओ क्योंकि अब तुमको देने के लिये राशन और गोलियां खत्म हो गई हैं और हमारी जेब भी खाली हो गई है । हमको मालूम है कि तुम बहुत बहादुरी से लड़ रहे हो पर किसी गरीब मजलूम पर जुल्म नहीं ढ़ाना चाहिये । इंडिया को सबक मिल गया है । कश्मीर मुद्दे का अन्तर्राष्ट्रीय करण हो गया है (कोई भी देश पाकिस्तान के साथ नहीं है । कश्मीर इंडिया के ही पास रहेगा ) वापस चले आओ नहीं तो इंडियन आर्मी पाकिस्तान में घुस आयेगी और हम लोगों को इरान, अफ्गानिस्तान में शरणार्थी बन कर रहना पड़ेगा

कारगिल से घुसपैठियों ने जवाब दिया । ”कमीने शरीफ, तुमने हमको धोखा दिया । हमारे पास खाने को कुछ नहीं है । गोली और गोले खा कर हमारे काफी साथी मारे गये । तुमने कहा था भारतीय कमजोर होते हैं पर वो तो हमारे बाप निकले । एक बार यहाँ से निकल भागें तो तुमको भी देख लेंगें ।” तभी वहाँ एक गोला गिरा ”बड़ाम” । ”अब क्या देखेंगे, खेल ही खत्म हो गया । आह…… मरा….रे.. ।”

युध्द खत्म हो चुका है और अब उनकी बारी है जो युध्द कभी नहीं लड़ सकते पर काठ की तलवारें लहराने में माहिर हैं । ये हैं हमारे आदरणीय नेतागण और बुध्दजीवी का लेबल चिपकाये हुये तमाम बुध्दिजीवी । कारगिल को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जायेगा पर हम देखेंगे कि कारगिल का बारूद तेरहवीं लोकसभा में काम आयेगा । पिछली 18 जुलाई रविवार को रात्रि मे एक कार्यक्रम मुंबई के फिल्मी कलाकारों ने शहीद जवानों को समर्पित किया ‘ऐ वतन तेरे लिये’ । शहीदों की आत्माओं की शांति के लिये तथा उनके दु:खी परिवारों को ढ़ाँढ़स बंधाने के लिये ‘प्यार तो होना ही था’, ‘लवेरिया हुआ’, ‘पहला नशा पहला खुमार’ आदि गाने सुनाये जा रहे थे । बीच बीच में बालीवुड के कलाकार आकर श्रध्दांजलियां दे रहे थे ।

राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित जावेद अख्तर और उनकी पत्नी शबाना आज़मी ने अपने विशाल ज्ञान का परिचय दिया और जोश में भारत की आबादी को ‘साढ़े नौ सौ करोड़’ बताया । कारगिल के शहीद आपका आरकेस्ट्रा सुनने के लिये शहीद नहीं हुये हैं । माना शहादत पर आंसू नहीं बहाये जाते पर मुजरा भी नहीं किया जाता है ।

(ये व्यंग्य अगस्त 1999 में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था ।)

खाना खजाना – 2

 =>चना जोर गरम बाबू मैं लाया  मज़ेदार, चना जोर गरम ।

कुरकुरे, चटपटे, मसालेदार लईया-चने ।

रेसिपी उर्फ बनाने का तरीका:-

जी, पहले तो आपके घर में एक लोहे की कड़ाही होनी चाहिए जिसमें कि आप चना और लाई भुनेंगे । चाहें तो स्वाद बढ़ाने के लिए 50-100 ग्राम मूंगफली भी भून सकते हैं । अब जब इतना टिटिम्मा कर ही रहे हैं तो दो-चार चीजें और भी भून सकते हैं । खैर । तो पहले तो एक लोहे की कड़ाही का इंतजाम कर लीजिए । उसके बाद एक किलो बालू जिसमें कि पाव भर पिसा नमक पड़ा हो उस कड़ाही में डाल कर गर्म कर लें । अब बारी बारी से लाई-चना उसमें डाल कर भून लीजिए । पहले लाई भुनेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि इस को आंच कम चाहिए होती है । उसके बाद चने और मूंगफली को कड़ाही में डाल कर भून डालिये । ठीक । अब एक दूसरे बड़े बर्तन में चने और मूंगफली को डाल कर किसी भारी चीज से दर लीजिए, जिससे कि उनके छिलके निकल जायें । ठीक है । छिलके निकालना इस लिए जरूरी होता है क्योंकि इससे पेट में अपान वायु बनने लगती है और अगल बगल वालों से ये बात छिपी नहीं रहती कि आज शाम आपने किस चीज का नाश्ता किया था । इसके अलावा चने के छिलकों से कुष्ठ रोगी के कुष्ठ में आशातीत वृद्धि हो सकती है । तो चने के छिलके दर कर निकाल लें । छिलके निकालने के लिए आपको एक सूप की भी जरूरत पड़ेगी और सूप पछोरना भी आना चाहिए । फिर इन सब कामों में तो घर की महिलाएं बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं । अच्छा अब आपके भुने हुए लाई, चने और मूंगफली का नाश्ता तैयार है । इसमें 8-10 बूंद कड़ुवा तेल और एक प्याज बारीक कतर कर मिला लीजिए । इसको अब आप एक प्लेट में नमक, हरी मिर्च और हरे धनिये की चटनी के साथ सर्व कीजिए । खाने वाले वो चटकारे ले-ले कर खायेंगे कि आप भी क्या याद करेंगे ।

यदि घर में लोहे की कड़ाही और बालू वगैरह नहीं है और आप ये सब कसरत भी नहीं करना चाहते हैं तो फौरन बाज़ार की तरफ कूच कर जाईये और किसी भड़भूंजे से पाव भर भुने हुए लइया,चने, मूंगफली 10-15 रू0 में खरीद कर जल्द से जल्द घर वापस आ जाईये, ताकि गर्मागर्म लइया चना ठंडा न हो जाये और आपकी तमाम कोशिशों पर पानी न फिर जाये । काहे कि गर्मागर्म लइया, चने की बात ही कुछ और होती है । अब आराम से ड्रांइग रूम में सोफे पर पसर कर, टी.वी. पर मैच देखते हुए या कोई बकवास फिल्म देखते हुए या न्यूज़ चैनल पर कोई फर्जी न्यूज देखते हुए गर्मा गर्म कुरकुरे मसालेदार लइया, चने नोश फरमायें ।

और हां ! बूढे-बुजुर्गों को हिदायत दीजियेगा कि थोड़ा आराम से खायें क्योंकि कुछ कुछ चने साले वाकई में दुष्ट प्रकृति के होते हैं और अकेले ही भाड़ फोड़ने की फिराक में लगे रहते हैं । ऐसे में बुजुर्गों का अति उत्साह उनके हिल रहे दांतों पर भारी पड़ सकता है, जिसका अंजाम बाद में डेन्टिस्ट को तगड़ी फीस देकर और उस मरियल दांत से हाथ धोकर (मुंह धोकर) भुगतना पड़ सकता है ।

तो ये था आजका ज्ञानवर्धक खाना खजाना । मिलते हैं अगले भाग में, लेकर एक और नई लज़्जतदार, शानदार रेसिपी के साथ । तब तक के लिए नमस्कार ।

खूबसूरत कामवालियां

वैधानिक चेतावनी : ये चित्र सिर्फ बालिगों के लिये हैं । नाबालिग लोग बालिग लोगों से व्यंग्य चित्र के मौखिक विश्लेषण सुन सकते हैं ।

मंदी की वजह से हसीन फिल्मी नायिकाओं को काम की दिक्कत आ पड़ी है और अब वे घर के छोटे मोटे काम के लिये नौकरियां तलाश रही हैं । प्रस्तुत है चित्र सहित उनकी विशेषता ।

<=>इन मोहतरमा का नाम है याना गुप्ता । बहुत पहले ये भैंस पर सवार हो कर बिजलियां गिराया करती थीं । आज कल खाली हैं । खाना अच्छा बना लेती हैं । चाहे मुगलई हो, चाइनीज़ हो, देसी हो, या फिर कॉन्टीनेन्टल । कुछ भी बनवा लीजिये । हां खुद बहुत कम खाती हैं ।

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=>इस हसीना का नाम है प्रीती जिंटा । फिल्में अब कम ही मिलती हैं । कुछ समय पहले आई.पी.एल की पंजाब टीम को खरीदा था । टीम के साथ इनका भी बंटाधार हो गया । आजकल खाली हैं । काम की तलाश है । फास्ट फूड परोसने में इनकी सानी नहीं है । जब आप थक हार कर घर पहुंचोगे तो ठंडा पिलाकर आपको ठंडा कर देंगी ।

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=>ये नाज़नीं भी आजकल खाली बैठी हैं । नामीगिरामी परिवार से हैं । नाम है करीना । खाली समय में कुछ समय तो छोटे नवाब सैफ अली के साथ चोंच लड़ाती है बाकी समय के लिए काम ढूंढ रही हैं । वैसे सैफ के यहां झाड़ू पोछा करते करते अब इनको इस काम में महारत हासिल हो गयी है, इसलिये ये झाड़ू पोछा की पार्ट टाइम नौकरी करना चाहती हैं । सिर्फ दिन में एक टाइम सुबह ही आया करेंगी क्योंकि दोपहर तक सैफ नींद से जाग जाते हैं और शाम का समय चोंच लड़ाने के लिये फिक्स किया हुआ है ।

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=>इस फिल्म तारिका का नाम आयशा टाकिया है । आजकल किसी भी टाकीज़ में इनकी कोई भी फिल्म नहीं चल रही है। मसरूफ होने के लिये इन्होंने हाल ही में शादी कर ली । सुबह सवेरे हस्बैण्ड को डरा धमका कर काम पर भेज देती हैं । खाली समय घर पर बोर होती रहती हैं । डराने धमकाने में इनको महारत हासिल है । अगर आप के बच्चे आपसे डरते नहीं हैं तो आप इनको काम पर रख लीजिये । ये बच्चे क्या उनके बाप तक को डरा सकती हैं । यकीन न हो तो फोटो पर गौर करिये ।

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=>ये हैं प्रख्यात नायिका तनुश्री दत्ता । जब से इन्होंने नाना पाटेकर से पंगा लिया है तब से इनको फिल्में मिलना कम हो गयी हैं क्योंकि म.न.से. प्रमुख राज ठाकरे ने इसे महाराष्ट्र की शान के खिलाफ समझा और सभी फिल्म निर्माताओं को धमकी भरा एस.एम.एस. भेज कर समझा दिया कि तनुश्री को अब एक्टे्रस क्या एक्सट्रा के रोल के लिये भी लिया तो उनसे बुरा हालांकि पूरे भारत में अभी तक कोई नहीं है बाद में इंडिया में भी कोई नहीं होगा । सो अब तनुश्रीदत्ता को भी काम की तलाश है । जब से नाना पाटेकर से पंगा लिया है और म.न.से. ने इनको बैन किया है तब से राज ठाकरे से दो दो हाथ करने के लिये कुश्ती के दांव पेच सीख रही हैं । राज ठाकरे तो अब इनके हाथ आने से रहे, फिल्में भी अब मिलती नहीं दिख रही हैं, इसलिये अब इन्होंने पार्टटाइम काम शुरू किया है लोगों को सेल्फडिफेंस की शिक्षा देने का । कुछ दांव पेंच अगर आप भी सीखना चाहते हों तो तनुश्री से मेल मिलाप कर सकते हैं ।

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=>ये हैं पूर्व मिस वल्ड प्रियंका चोपड़ा । इधर इनकी भी काफी फिल्में लोटपोट हो गयी हैं । नये काम की तलाश इनको भी है । इनकी खासियत ये है कि मैल से इनको एलर्जी है । थोड़ी सी भी गंदगी ये कपड़ों पर बर्दाश्त नहीं कर पाती । कोई भी जगह हो, तुरंत अपने कपड़े उतारती है और धो डालती हैं । अगर आप पटाखा धोबिन रखना चाहते हों तो इनका फोन ट्राई कर सकते हैं ।

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=>ये हैं मरहूम फिरोज खान की खोज सेलिना जेटली । इनको अब फिल्मों में हिरोइन छोड़िये नाच गाने का भी रोल कोई नहीं दे रहा है । गाना बजाना तो फिरोज खान ने इनको तबीयत से सिखाया था । वहीं एक हुनर आता है इनको । अगर आप संगीत की और खास तौर पर वायलेन की शिक्षा लेना चाहते हैं तो आप इनको गुरू बना सकते हैं । गुरू दक्षिणा ये ज्यादा कुछ नहीं लेंगी । हां कोर्स ज़रूर लंबा खिंच सकता है ।
इसके अलावा ये खाली वक्त में बच्चों के लिये क्रेच भी चलाती हैं, जहां रोते बच्चों को चुप कराने के लिये कभी कभी ये घोड़ा भी बनती हैं । ये सुविधा देखकर कुछ बच्चों के नालायक बापों ने भी रोना शुरू कर दिया लेकिन सेलिना ने उनके लिये घोड़ा बनना मंजूर नहीं किया । =>

ये थी कुछ हसीनाएं जिनको काम की तलाश है । ये घरेलु कामकाज में पूरी तरह से दक्ष हैं । घर फोड़ने में भी इनको पूरी कुशलता हासिल है । अपनी जरूरत और जेब देखते हुये आप इनको हायर कर सकते हैं और हां पत्नी की सलाह जरूर ले लीजियेगा क्योंकि काम तो उनको ही कराना है लेकिन आपका भी मन लगा रहेगा

गरीबी का मारा अमीर रिक्शेवाला

=> बीस रूपये से एक पैसा कम नहीं लूंगा । दस रूपये में आप रिक्शा चलाइये, मैं रिक्शे पर बैठता हॅंू ।

जनता एक्सप्रेस ने अपने वादा निभाया था । भोलाराम और तमाम दूसरे यात्रियों को उसने इलाहाबाद पहुँचा कर ही दम लिया । ये और बात है कि ट्रेन अपने निर्धारित समय से मात्र चार घंटे ही लेट थी । एहसान ही था भारतीय रेल का सभी यात्रियों पर क्योंकि कल यही ट्रेन पौने आठ घंटे लेट आई थी । समय का क्या है, इफरात में पड़ा रहता है । कम से कम भारत में तो समय की कोई कीमत नहीं होती है । घर तो पहँच ना ही है । चाहे आज पहुँचे, चाहे कल । तत्काल की सुविधा सिर्फ टिकट खरीदने तक ही सीमित है । एक्सप्रेस सरचार्ज किस-किस ट्रेन पर लगाया गया है इसकी जानकारी सिर्फ रेल विभाग के सुपर कम्प्यूटर को ही दी गई है । इंजन चालक से लेकर तमाम दूसरे कर्मचारीगण इस प्रकार की किसी भी जानकारी से अनभिज्ञ हैं । हाँ, यात्रियों की जेब में मुद्रा संकुचन की स्थिति जरूर पैदा हो जाती है । अब देखिये अर्थ और मुद्रा से सम्बन्धित दिक्कतों के लिए हमें वित्त मंत्रालय के सामने जाकर ऑंसू बहाने चाहिए । ये क्या कम है कि किसी रेल दुर्घटना में अगर आपके दोनों हाथ या पांव कट जायें तो रेल मंत्री आपको पचास हजार का चेक सप्रेम पकड़ा देते हैं । अब अगर वो चेक बाउंस कर जाता है तब इसमें रेल विभाग की क्या गलती । अब आप रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के सामने जाकर अपने कटे हुए हाथ-पांव फैलाकर भीख मांगने का गौरव अर्जित कर सकते हैं । भीख मांगना राष्ट्रीय कर्म है । विश्व बैंक और आई. एम. एफ. के सामने जैसे हमारी सरकार कटोरा लिया खड़ी रहती है । कटोरा हमारा राष्ट्रीय बर्तन है ।

देर तो हो ही चुकी थी, घर पहँचने की कोई जल्दी भी नहीं थी इसलिए भोलाराम ने टैम्पों की जगह रिक्शे को तरजीह दी । कंजूस भोलारामजी हर जगह मोलभाव करने से बाज नहीं आते । बड़ी चिक-चिक के बाद आखिर एक हट्टा-कट्टा जवान रिक्शेवाला बीस रूपये पर राजी हुआ । गरीब आदमी से उसके घर का, खेत-खलिहान का हाल चाल पूछिये तो वो जल्दी ही पिघल जाता है । घर जाकर कर थोड़ा सा गुड़ और एक लोटा पानी पिला दीजिए तो कभी-कभी पांच रूपये की बचत भी हो जाती है । समय काटने के लिए और उसकी गरीबी पर हमदर्दी जताने के लिए भोलाराम ने उससे बात करनी शुरू की ।

क्यॅंू  भाई क्या नाम है तुम्हारा?

”सीताराम नाम है बाबूजी ।” उसने थोड़ी देर बाद जवाब दिया ।

”तो सीतारामजी कहाँ के रहने वाले हो ?”

”साहब रीवाँ जिले के सौहागी पहाड़ पर छोटा सा गाँव है हमारा ।”

”यार बोल-चाल से तो तुम कुछ पढे लिखे मालूम देते हो !”

”हाँ बाबूजी, दर्शनशास्त्र से एम. ए किया है मैंने रीवा युनिवर्सिटी से ।”

जान कर भोलाराम को आश्चर्य हुआ और थोड़ा दुख भी हुआ कि एम.ए. पास युवक रिक्शा चला रहा है । भोलाराम ने सीताराम का इंटरव्यू जारी रखा ।

”यार तब तुम कहीं कोई नौकरी क्यूं नहीं कर लेते हो, बेवजह रिक्शा चला रहे हो ।” भोलाराम ने उसको फ्री फंड का काम चलाऊ सुझाव दिया ।

”साहब जी इसी नौकरी के चक्कर में ही तो रिक्शा खींच रहे हैं ।” उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया ।

एका एक भोलाराम की हैरानी बढ गई । ”वो कैसे, क्या किसी मंत्री संत्री को घूस देने के लिए पैसा का जुगाड़ कर रहे हो ?”

”नहीं बाबूजी बात आपने उल्टी कही है । रेवेन्यू डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी के लिए दादा-परदादा की जमीन बेच कर तीन लाख रूपये एक छुटभैया नेता जी को थमाये थे । क्लर्की तो मिली नहीं खेत भी हाथ से निकल गया ।” सीताराम की बातों में दर्द छलछला आया था । भोलाराम को भी उसकी कहानी सुन कर दु:ख हुआ ।

बात बदलने के लिए भोलाराम ने आगामी अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव का जिक्र छेड़ दिया । ”तो भाई सीताराम इस बार वोट किस पार्टी को देने जा रहे हो ।”

”क्या बाबूजी अपने भी किन हरामियों की याद दिला दी । सब साले एक जैसे हैं । किसी एक को भी वोट देना अपने वोट के साथ बलात्कार करने जैसा है ।” सीताराम का मुँह कडुवा हो गया था, उसने सड़क पर खखार कर बलगम थूक दिया ।

”क्यूँ भई, आज देश इतना तरक्की कर चुका है, चाँद पर जा रहा है, न्यूक्लियर रियेक्टर लगा रहा है, गरीबी पहले से कितनी कम हुई है, गाँव-गाँव कितना विकास हुआ है । देश ने साठ साल में इत्ती तरक्की की है और तुम हो कि नेताओं को कोई श्रेय ही देना नहीं चाहते हो ।” भोलाराम ने दलील दी ।

”क्या साहब आप भी पढे लिखे हो कर सरकार के चरके में आ गये । सरकारी आंकड़े नेताओं की ही तरह फर्जी होते हैं । थोड़ी सी अक्ल लगायेंगे तो वास्तविकता सामने आजायेगी ।”

भोलाराम इस पढे-लिखे रिक्श वाले की बौध्दिक बाते सुन कर हैरान हो रहा था । ”तुम सरकारी आंकड़ों को फर्जी कैसे कह सकते हो ?” भोलाराम ने प्रतिवाद किया ।

”क्या साहब, आप जैसे पढे लिखे लोगों को पढाना सरकार के बांये हाथ का खेल होता है । क्या आपने कभी संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव विकास सूचकांक को देखा है । हर साल प्रकाशित होता है । उस सूचकांक में भारत देश का नम्बर 128 वाँ है । मतलब इस दुनिया में 127 देशों में गरीबी हमारे देश से कम है ।

भोलाराम आश्चर्यचकित हो गये । लेकिन सीताराम ने आंकड़े देना जारी रखा ।

”सर जी सरकार कहती है कि भारत में 25 फीसदी लोग ही गरीब हैं लेकिन यू. एन. ओ. के अनुसार भारत में 84 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कि हर रोज 20 रूपये भी नहीं कमा पाते हैं । यही आंकड़ा हमारे अर्थशास्त्री डा0 मनमोहन सिंह जी के वर्तमान आर्थिक सलाहकर प्रो अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 की रिपोर्ट में भी प्रकाशित हुआ है । सरकार भी इसे सच मानती है ।”

”फिर 25 फीसदी का आंकड़ा कहां से आया है ? भोलाराम ने जिज्ञासा प्रकट की ।

”सरजी सन 1971-72 से सरकार ने कैलोरी आधारित गरीबी का नया पैमाना शुरू किया है जनता को धोखे में रखने के लिए । सरकार का कहना है कि गाँव में हर रोज अगर आपको 2400 कैलोरी और शहर में हर रोज अगर आपको 2900 कैलोरी का भोजन मिल रहा है तब आप गरीबी की रेखा से ऊपर हैं । यानि की गाँव में रहना वाला व्यक्ति अगर प्रतिदिन 12 रूपये कमा रहा है और शहर में रहने वाला व्यक्ति अगर प्रतिदिन 18 रूपये कमा रहा है तब वह गरीब नहीं है । गरीबी का यह सरकरी पैमाना कैलोरी पर आधारित है, प्रति व्यक्ति आय पर नहीं ।”

”लेकिन नेता तो कहते हैं कि गरीबी का कारण जनसंख्या वृध्दि है ।” भोलाराम ने सीताराम से और आंकड़े निकलवाने चाहे ।

क्या सॉब आप पढे लिखे लोगों को सरकारें भी खूब उल्लू बनाती हैं । आपको नहीं मालूम है तो चलिए मैं ही आप का ज्ञानवर्धन किये देता हँ । जब देश 15 अगस्त सन 1947 में आजाद हुआ था तब हमारी आबादी थी 32 करोड़, जिसमें गरीब थे मात्र 2 करोड़ लोग । ये भारत सरकार का आंकड़ा हैं जिसे सरदार पटेल के करीबी हिम्मत भाई पटेल ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था । आज सन 2009 में भारत की आबादी है 120 करोड़ और गरीब हैं 84 करोड़, ये मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार प्रो0 अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 में प्रकाशित हुई रिपोर्ट कहती है । यानि की सन 47 से आबादी बढी है चार गुना लेकिन गरीबी बढी है 20 गुना । कुछ समझे आप । यानि की गरीबी का जनसंख्या वृध्दि से कोई लेना देना नहीं है । इसी तरह से सन 47 में पूर्णरूप से बेरोजगारों की संख्या थी 2 करोड़ आज है 20 करोड़ यानि की 10 गुना बेरोजगारी भी बढ गई है ।”

”फिर इतनी विशाल गरीबी के क्या कारण हैं ?” भोलाराम ने जानना चाहा ।

”इस गरीबी का सीधा कारण है नेता और भ्रष्टाचार । हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी कहते थे कि अगर किसी योजना के तहत एक रूपये दिल्ली से भेजा जाता है तो आम आदमी को सिर्फ दस पैसे ही मिलते हैं । इस गरीबी को मिटाने के लिए कई पंचवर्षीय योजनाएं चलाई गईं, इससे नेताओं की गरीबी तो मिट गई लेकिन जनता और गरीब होती चली गई । इस गरीबी का सबसे बड़ा श्रेय तो उसी हाथ को जाता है जिसने 50 साल देश पर शासन किया और अब कहती है कि उसने देश की गरीबी तकरीबन मिटा दी है । साहब अगर स्विस बैंक में जमा भारतीय पैसों का हिसाब लगाया जाये तो 80 प्रतिशत पैसा इसी पंजे का जमा किया हुआ निकलेगा । देश का बंटवारा इनके कार्यकाल में हुआ, दो तिहाई जम्मू कश्मीर इन्होंने ने ही गंवाया, अरूणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलो मीटर जमीन चीन ने इनकी कायरता के कारण छीन ली, पिछले पांच सालों में देश में जितनी आंतकवादी घटनाएं घटी उतनी तो इराक और अफ्गानिस्तान में भी नहीं घटीं । फर्जी आंकड़ेबाजी तो इतनी है कि 6 महीने में मंहगाई दर 12.5 प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत पर पहँच गई जबकि मंहगाई उतनी ही है । क्या चीज सस्ती हुई है इसकी कोई खबर नहीं है । इन्होंने देश को मात्र पांच साल के अंदर कृषी निर्यातक से कृषी आयतक देश बन दिया । कितना कुछ इन्होंने देश को बर्बाद करने में किया लेकिन फिर भी बेर्शमों की तरह फिर सरकार बनाने का ख्वाब देख रहे हैं । क्या करिएगा, इस खूनी पंजे का धंधा ही यही है ।”

इतना लंबा भाषण सुनने के बाद भोलाराम से रहा नहीं गया मित्रों और एका एक उनका मुँह खुला और आग सी निकली :

”अबे साले! पहले ये बता कि तू भाजपाई है या सपाई है या कामरेडी है । बड़ा आया है भाषण देने वाला । यहीं पर रिक्शा रोक । मैं यहाँ से पैदल चला जाऊंगा । एक पैसा नहीं मिलेगा तुमको । साले! रिक्शावाला बनकर गांघी जी की पार्टी के खिलाफ कनवेसिंग करता है । चल भाग यहाँ से । देश की तरक्की से जलने वाले संघी हो तुम लोग ।”

भोलाराम की ये बातें सुन कर रिक्शावाला खड़े खड़े मुस्कुराने लगा । बोला ”साहब आप का मुहल्ला आ गया है, घर भी आपका अगल-बगल ही होगा । पैसा नहीं देना है तो मत दीजिए, आपके 20 रूपयों से मेरी गरीबी में कोई अन्तर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन अगर आप लोग ऐसी ही सरकारें चुनते रहे तब वो दिन दूर नहीं जब आप भी गरीबी की रेखा के नीचे पहँच जायेंगे ।” इतना कह कर सीताराम वापस अपना रिक्शा लेकर चला गया ।

भोलाराम जी ने अपना ब्रीफकेस उठाया और खुशी खुशी अपने घर की ओर चल दिये, खुश होते भी क्यों न आखिर उनके 20 रूपये जो बच गये थे ।

कल की बात पुरानी : भाग -1

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं – जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं । – संस्कृत सुभाषित   ब...