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शनिवार, 18 नवंबर 2017

मेरे दरवाजे़ पर इंटरपोल पुलिस

=>अबे ओये! तेरे से ही कह रहा हूं व्यंग्यकार की दुम । ब्लॉग पर कुछ भी छापने से पहले थाने जाकर हमसे जंचवा लिया करो । बाद में कुछ ऐसा वैसा हो गया तो फिर मत कहना कि बताया नहीं था ।

 

मित्रों, कल अख़बार में एक तालिबानी ख़बर थी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब जरदारी साहब का नाम लेकर कोई व्यंग्य लिखूं कि ना लिखूं । मामला इतना संगीन और इंटर कॉन्टिनेन्टल ब्लास्टिक मिसाइल की खूबियां लिये हुए है कि निशाने पर मैं भी आ सकता हूं और उसके बाद व्यंग्य छोड़िये फिर किसी काम के लायक नहीं रहूंगा ।

खबर ये थी कि अब पाकिस्तान में राष्ट्रपति जरदारी साहब के ऊपर किसी तरह का भी व्यंग्य नहीं किया जा सकेगा । आजकल उनको निशाना बनाकर हजारों एस.एम.एस. लिखे जा रहे हैं और सर्कुलेट किये जा रहे हैं । इन सबसे तंग आकर संगदिल सरकार ने ये तालिबानी फरमान जारी किया है कि अब अगर कोई आदमी जरदारी साहब पर तंज कसता नजर आयेगा तो साइबर क्राइम एक्ट के तहत उसको 14 साल के लिए जेल की हवा खानी पड़ेगी और अगर परहेज न हो तो वो शख्स जेल की दाल रोटी भी नोश फरमा सकता है । पाकिस्तानी जांच एजेंसी अब आतंकियों को ढूंढने के बजाय मेरे जैसे उन खुराफातियों पर नजर रखेगी जो जरदारी साहब पर बेहूदे मज़ाक किया करते हैं और उसे एस.एम.एस के जरिये या इंटरनेट के जरिये प्रसारित करते हैं । अगर ये बेहूदा और गंदा काम कोई शख्स विदेश से कर रहा है तब उसको दुरूस्त करने के लिए इंटरपोल पुलिस की भी मदद ली जा सकती है ।

मेरे यार ने लगता है मज़ाक को दिल पर ले लिया । ले भी लेना चाहिए । सेन्टी हो गया अपना जर्रू । जरदारी कोई सरदार या पठान थोड़े ही हैं कि हर तरह का मज़ाक सहन कर लें । पहले वो सिर्फ बेनजीर के हस्बैण्ड थे, ये कोई कम मज़ाक था । अब वो पूरे पाकिस्तान के हस्बैण्ड हैं, यानि राष्ट्रपति हैं । इत्ता बड़ा कलेजा तो हमारे मनमोहन सिंह का ही हो सकता है । जब से प्रधानमंत्री बने है क्या कम मज़ाक उड़ाया गया है उनका । सरदार हैं । सरदार का कलेजा है । सब सहन कर लिया । भारत का दो-दो बार प्रधानमंत्री बनना कोई छोटा-मोटा मज़ाक है । वो भी तब जब सिर पर एक सुपर प्रधानमंत्री और एक कुंवारे युवराज भी सवार हों । बहुत मज़ाक उड़ाया गया है मन्नू का टी.वी. पर हंसोड़े सीरियलों में । खैर ।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत में सब चल जाता है लेकिन पाकिस्तान तो पाकिस्तान ही रहेगा । वहां सिर्फ एक स्वतंत्रता है – आतंक की स्वतंत्रता । चाहे सरकारी आतंक हो या तालिबानी । भाई तुम्हारा देश है । चाहे फूलों का गुलदस्ता बनाओ चाहे भाड़ में झोंको, तुम्हारी मर्जी । जब मानवाधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय झंडाबरदारों को मासूम पाकिस्तानियों के नैसर्गिक अधिकारों की फिक्र नहीं है तो हमारे फिक्र करने से वहां कौन सा बदलाव आ जायेगा । मुझको तो अपनी फिक्र है । अब तुम कानून बना कर इंटरपोल का डंडा दिखा रहे हो । मैं उन घबराये वकीलों में से हूं जो कानून को तोड़ने- मरोड़ने के बजाये उसकी इज्ज़त किया करते हैं और पुलिसवालों से भी निहायत तमीज़ से पेश आते हैं। जब से ये खबर पढी है हलक सूख रहा है । बुरे बुरे विचार मन में आ रहे हैं । बार बार माफी मांगने को दिल कर रहा है । जब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जरदारी से माफी मांग सकते हैं तो मैं भला पीछे क्यों रहूं । रूस में हुए जी-आठ सम्मेलन में मनमोहन सिंह ने जरदारी को खरी-खरी सुना दी । बाद में उनको इस कानून के बारे में पता चला तो मिस्स्र में माफी मांग ली । इंटरपोल का क्या है, क्वात्रोची को छोड़ सकती है तो मनमोहन को पकड़ भी सकती है, फिर मैं क्या चीज हूं ।

एक पाकिस्तानी व्यंग्यकार ‘इब्ने इंशा’ ने अपनी किताब ‘उर्दू की आखिरी किताब’ में लिखा है – “शाह जमजाह (इरान का बदाशाह) के ज़माने में हर तरफ आजादी का दौर-दौरा था । लोग आजाद थे और अख़बार आज़ाद थे । कि जो चाहें कहें, जो चाहें लिखें । बशर्ते कि वह बादशाह की तारीफ में हो, खिलाफ न हो ।” बाद में इस किताब को पाकिस्तान में बैन कर दिया गया । सआदत हसन मंटो बेचारा पाकिस्तानी जेल और पागलखाने दोनों की सैर कर आया हकीकत बयां करते करते । वह कई बार जेल गया, कई मुकद्दमे झेले । उसकी बहुत सी रचनाओं को पाकिस्तान में बैन कर दिया गया । अंत में थक हार कर मंटो 35 साल की उम्र में खुदा को प्यारा हो गया । क्योंकि उसे सिर्फ खुदा ही प्यार करता था ।

पाकिस्तान में तालिबान संगीत, फिल्म, क्रिकेट सब पर प्रतिबंध लगा सकता है तो जरदारी क्या मज़ाक पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते । लगा दो यार, शौक से लगा दो । बस ये इंटरपोल वाला हिस्सा छोड़ दो । मुझको डर लगता है । अभी कुछ दिन पहले राजू श्रीवास्तव को धमकी मिली थी कि दाउद इब्राहिम पर मज़ाक करना बंद कर दे । अब तुमने कानून बना दिया कि देश क्या विदेश से भी कोई तुम पर मज़ाक न करे । दाउद की संगत का असर दिख रहा है तुम पर । जरदारी मियां, मार्शल लॉ का अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण ले आये प्यारे । मुबारकबाद कुबूल करो दोस्त । तरक्की पर हो । जल्दी ही देश की नइय्या पार लगाओगे ।

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