गुरुवार, 16 नवंबर 2017
हास्य नाटक – काले घोड़े की नाल की अंगूठी
घर के पूजाघर में जीतलाल ऊन के आसन पर बैठा “ॐ शनिश्चारय नमः” जाप कर रहा है ।
पुष्पा हाथ में चाय का कप लिये मुस्कुराती हुयी स्टेज पर आती है । पुष्पा को मुस्कुराते आता देख कर जीतलाल कहता है ।
जीतलाल : सब जानता हूँ कि क्या पढ़ते हो । गुलशन नंदा के उपन्यासों की एक लंबी कतार तुम्हारे सिरहाने रखी है । मुझे चराने की कोशिश मत करो । बड़ा भाई हूँ तुम्हारा । आधे से ज्यादा उपन्यास मेरी ही अलमारी से निकाले हैं तुमने ।
जीतलाल: अरे चंपकलालजी, जो सुख आपके हाथ से पानी पीने में है वो खुद ले कर पीने में कहॉं ?
चंपकलाल : अरे कलाकार आदमी हैं । थोड़ी वाह वाह कर देंगी तो साहित्य कल्याण हो जायेगा ।
पुष्पा : तुम नहीं सुधर सकते । मैं ही पत्थर से सर टकरा रही हूँ…..
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