काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

हास्य नाटक – काले घोड़े की नाल की अंगूठी

बाजार का सीन

        
गुब्बारे वाला, चुरमुरे वाला, हींग,इलाइची, लौंग, हल्दी, धनिया, गरम मसाले वाला, सड़क पर कपड़े बेचने वाला, फलवाला, सब्जीवाला इत्यादि ।
तरह तरह की आवाजें

हाथरस की हींग ले लो … हाथरस की हींग ।
भुसावल के मलाईवाले केले !
ठंडे कुल्फी फालूदा का लुत्फ लीजिये !
बैंगन… बीस के सवा किलो !


जीतलाल कस्बे के मुख्य बाजार से गुजर रहा था । वह सब्जी लेने आया था । सब्जीवाले से मोलभाव कर रहा था ।


जीतलाल: राम राम चाचा, आज टमाटर क्या भाव हैं ! लाल तो इतने हैं जैसे अभी अभी ब्यूटीपार्लर से चले आ रहे हों ।

सब्जीवाला: अरे कइसन मजाक करत हो बेटवा । ब्यूटीपार्लर त कभउं हमरी मेहरारू तक नाहि गयी । ई ससुर टमाटर कहॉं से चले जइहें । सीधा किसान के खेत से लई के आवत हई । तोहरे बरे बस 30 रूपिया किलो बा । वैसे त रेट 40 हौ ।

जीतलाल: लाओ तब तीन पाव दइ दो जल्दी से । सोना चाहे सस्ता हो न हो पर अगर टमाटर का रेट कम होता है तब तो इसे खरीदना ही पड़ता है । और यह लंबी वाली लउआ कैसे दिये काका, कल रात एके भैंसिया वाला टीका लगाये दिये रहे का जउन ई शिल्पा शेट्टी जैसी लंबी होय गयी है ।

सब्जीवाला: राम का नाम लो बेटा । ई लौकी शुद्ध गउमाता की खाद का प्रसाद है । ऐ में कउनो आक्सीटोसीन थोड़य लगी है । आप शौक से खाओ । पेट के लिये बहुत मुफीद चीज होत है ।

जीतलाल: सही कह्यो काका । लो पकड़ो अपना पैसा । जय सियाराम !


तभी जीतलाल के कानों में एक ऐसी पुकार पड़ी की उसके पैर अपने आप ही रूक गये । और वह आवाज की तरफ खिंचा चला गया ।……………वह आवाज एक छोटे से लाउडस्पीकर से आ रही थी जो की एक रिक्शे पर बैठे आदमी के बगल में रखा था । जीतलाल चकित हो कर रिक्शे पर बैठे उस आदमी की बातें सुनने लगा । वह आदमी रिक्शे पर बैठ कर काले घोड़े की नाल की अंगूठी बेच रहा था ।

”इम्तिहान में बच्चा पास न होता हो । बच्चे को स्कूल में कुछ समझ में न आता हो । बच्चा बड़ा होने पर भी बिस्तर गीला कर देता हो । बच्चे के दांत समय से न निकल रहे हों । धंदा मंदा चलता हो, बिजनेस व्यौपार में हमेशा घाटा होता हो । ग्राहक उधारी माल ले जाये और बाद में आपको पहचानना बंद कर दे । आफिस में बॉस हमेशा बांस ले कर खड़ा मिले । पत्नी से कलह हर दिन का पंचाग बन जाये । घर में पढ़ा लिखा लड़का बेरोजगार बैठा हो । मनपसंद लड़की आपको पसंद न करे और प्रेमिका आपको पहचानने से इंकार कर दे । घर में जवान बेटी के हाथ पीले करने की चिंता में आप खुद पीले पड़ते जा रहे हों । पड़ोसी से हर दिन झगड़ा फसाद मचा रहे । कोर्ट में मुकद्दमा खत्म होने का नाम न ले और इधर आपकी सारी पूंजी मय मकान, खेत, जेवर सब बिकती जाये । पुलिसवाले रोज थाने में हाजिरी लगवाते हो । अस्पताल के खर्च से आपका दीवाला निकल रहा हो या फिर आपके हाजमें का इलाज किसी भी वैद, हकीम, लुकमान के पास न मिलता हो । खाना खाते ही खट्टी डकारों का आना । तेज दस्त लगना या फिर लाखों इलाज के बाद भी भूख न लगना । खूनी बवासीर हो या फिर बादी भगंदर…… आपके हर रोग और परेशानी का हल है हमारे पास । हजारों परेशानियों की बस एक दवा………..एक दवा………एक दवा……………..शनी की साढ़े साती का 100 प्रतिशत गारंटी के साथ इलाज करने वाली “काले घोड़े के नाल की अगूंठी”……………… “काले घोड़े के नाल की अगूंठी” ……………कीमत मात्र दस रूपया, दस रूपया, दस रूपया, दस रूपया ।Black_horse_2

 

जीतलाल चकित हो कर रिक्शे पर बैठे उस आदमी का भाषण सुन रहा था । उसके जीवन में इक्का दुक्का छोड़ कर वह सभी समस्यायें थी जिनकी लिस्ट अभी उसने सुनी, वह मन ही मन बड़बड़ाया ।


जीतलाल: हे ईश्वर ! ये आदमी सी आई डी का जासूस तो नहीं । इसे मेरे घर का सब हाल कैसे पता है । फिर हर दिक्कत का एक ही हल कैसे हो सकता है । चल कर इस आदमी से पता करना चाहिये ।

जीतलाल रिक्शे की तरफ सब्जी का थैला उठाये बढ़ जाता है ।


जीतलाल: क्यों भईया, बीच बाजार क्यों मजाक करते हो । भला एक अंगूठी से इतनी सारी दिक्कतें कैसे दूर की जा सकती है ।

 

रिक्शे पर बैठा आदमी जीतलाल को देख कर ऐसे मुस्कुराया जैसे बहेलिया जाल की तरफ आते कबूतर को देख कर खुश होता है ।


अंगूठी वाला: अरे बाबूजी आपने सनीचर महाराज का नाम नहीं सुना क्या पहले कभी ।
जीतलाल: ये क्या कोई नये बाबा आये हैं टीवी पर, जो हर दिक्कत का हल जानते हैं ?
अंगूठी वाला: अरे आप भी बड़े भोले मानुस हैं । सनीचर महाराज मतलब शनी ग्रह । नवग्रहों में एक देवता शनी भी हैं न । आपने शनी की साढ़ेसाती सुनी होगी । शनी की ढय्या सुनी होगी । जिस पर इनकी नजर टेढ़ी हो जाये वो तो समझिये गया काम से ।
जीतलाल: ओहो ! तो इतनी सारी दिक्कतें शनी देवता के कारण जीवन में आती हैं । ऐसा कैसे हो सकता है । माना की शनी जी एक बुरे स्वभाव के ग्रह हैं पर इंसानों को बेमतलब उन्हें परेशान नहीं करना चाहिये । यह तो गलत बात है ।


अंगूठी वाला: अरे नहीं, आप गलत समझे । शनी जी को पापग्रह माना जाता है लेकिन वह बुरे नहीं होते हैं । शनी महाराज तो न्याय और धर्म के देवता माने जाते हैं इसीलिये तो आप देखेंगे की वकील और अदालत की वर्दी काली होती है । शनी जी का कलर । शनी जी तो जो गलत करता है उसको दंड देते हैं और जो सत्य के रास्ते पर होता है उसको इनाम देते हैं । लेकिन आजकल सत्य के रास्ते पर चलना कौन चाहता है । रोज हम लोगों से कोई न कोई पाप हो ही जाता है । और फिर शनी महाराज अपना हंटर निकालकर लग जाते हैं ………….सड़ा-सड़, सड़ा-सड़ ।


जीतलाल: भाई लगता है कि तुम बड़े भारी ज्योतिषी हो । और मेरे तो पाप का घड़ा लगता है भरने वाला है क्योंकि जितनी परेशानियॉं तुमने गिनाई हैं उसमें से 80प्रतिषत तो मेरे सिर पर हमेशा सवार रहती हैं ।


अंगूठी वाला: अरे हम ज्योतिषी नहीं हैं । यह तो हमारे परमपूज्य गुरूजी का प्रताप है, जो वह हिमालय में बर्फ की कंदरा में बैठ कर बरसों से समाधि लगाये हुये हैं पर नीचे रहने वाले मनुष्यों का दुख दर्द उनसे वहॉं भी नहीं देखा जाता । एक दिन मुझे सपने में दर्शन दिये । कहने लगे मनसुख कब तक तू औरतों को चूड़ियॉं पहनायेगा और अंडरगारमेंट बेचेगा । धन का लालच छोड़ और अगर मेरा सच्च चेला है तो सीधे मेरे पास आ । मैं मानसरोवर की एक गुफा में समाधि लगा कर बैठा हूँ ।


जीतलाल: तो मनसुख जी आप फिर अपने गुरूजी के पास हिमालय गये ।
अंगूठी वाला: और नहीं तो क्या । गुरू जी ने कान में मंतर दिया था । जाता कैसे नहीं।


जीतलाल: फिर !


अंगूठी वाला: फिर क्या । खोजते खोजते पहुंचे गुरूजी की गुफा में । बरसों से तपस्या करते करते गुरूजी की जटा और दाढ़ी बढ कर सब एक हो गयी थी। सरीर से इतनी जोत निकल रही थी मानो गुफा में कोई फिलिप्स का सी एफ एल लगा हो । फिर हम गुरू जी को दंडौत किये । काफी देर बाद गुरूजी तपस्या से उठे । कमंडल से पानी पीये । फिर हमें देख कर मुसकिआये ।


जीतलाल: फिर ।


अंगूठी वाला: फिर हमारी और हमारी घरवाली की और बिट्टू और लाजो की कुशल पूछी । हमें कुछ रेवड़ी, खाजा वगैरह दिया खाने को । फिर कहने लगे “मनसुख ! कब तक पइसे के पीछे भागता रहेगा। कुछ सेवा कर, परमारथ का भी कारज कर ।

जीतलाल: फिर गुरूजी क्या कहे ।


अंगूठी वाला: वही तो बता रहे हैं । आप भी बहुत धर्मात्मा पुरूस हैं । धरम करम में अपकी भी बहुत श्रद्धा लगती है ।


जीतलाल हंसता है ।


जीतलाल: हे हे हे । नहीं ऐसा नहीं है । आपकी कहानी में बड़ी रोचकता है । आजकल कहॉं ऐसे ग्यानी ध्यानी गुरू मिलते हैं और कहॉं ऐसे सेवक शिष्य ।


अंगूठी वाला: वो तो है । तब फिर गुरू जी कहे की पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ गया है । मानुस त्राहि त्राहि कर रहा है । सब तरफ आग लगी है । सब दुखी हैं । हर तरफ दुखी आत्मा चित्कार कर रही है । ऐसे में दुखीजन की पीर हरने के लिये मन व्याकुल हो जाता है , पर मूरख मन यह नहीं विचारता कि इसी जनम में यह पाप की गठरी उतार कर उड़ जाना है ।

जीतलाल: बहुत पहुंचे हुये महात्मा लगते हैं आपके गुरू जी ।


अंगूठी वाला: वो तो हैं ही । फिर वो कहे कि मैं तो हिमालय छोड़ कर नहीं जा सकता पर तुझे मेरा यह काम करना होगा। तू तुरंत नीचे जा और ढेर सारी काले घोड़े के नाल की अंगूठी लेकर आ ।……………. मैं कुछ समझा नहीं पर गुरू जी ने डाट लगा दी । फिर में सरपट भागा हरिद्वार । अंगूठी तो वहीं मिलनी थी ।

 

जीतलाल: अच्छा तो सारा कच्चामाल हरिद्वार से सप्लाई होता है ।


अंगूठी वाला: आप भी ताड़ ही गये । जी हरिद्वार से ही अधिक्तर कच्चामाल आता है । सारी माला फाला । रूद्राक्ष, स्फटिक की माला । तमाम चीजें । असल मे पहाड़ी ऐरिया में ही अधिक्तर ये सारा माल मिलता है ।

जीतलाल: अच्छा । और वो अंगूठी के लिये लाल पीले पत्थर भी वहीं से आते हैं ?

 

अंगूठी वाला आंखें बड़ी करके और हाथ घुमा घुमा कर समझाने लगा ।


अंगूठी वाला: आप तो लगता है धंधे की सारी पोलपट्टी आज ही ले लेंगे । पत्थर का सारा काम जयपुर से होता है । अब आगे मत पूछियेगा क्योंकि आगे का काम साधारण मनुस्य का नहीं होता है । आगे फिर सिद्ध बाबा लोग अपने जागृत मंत्रों से उस अंगूठी को सिद्ध करते हैं, उसमें ग्रह देवता को आमंत्रित किया जाता है, फिर हवन वगैरह करके अंगूठी किसी उचित इंसान को दी जाती है जिसकी देवताओं, ग्रहों पर आस्था बिसवास हो………………नहीं तो फिर अंगूठी काम नहीं करेगी । आस्था, बिसवास में बहुत जोर की ताकत होती है । …………………

जीतलाल: हॉं भाई……..आसान काम नहीं लग रहा है । महात्माओं के ही बस की बात है ।

अंगूठी वाला: आप कह रहे थे कि आपके घरमें बहुत सी मुसीबतें हैं । तो क्यों नहीं आप 5 -7 ठो अंगूठी ले जायें अपने घर । मानसरोवर वाले बाबा के मंतर में बहुत जोर है । सारी दिक्कतें हवा कर देंगे आपकी ।

जीतलाल: हॉं प्राब्लम तो है । और वह भी एक नहीं दर्जन भर । सोचता हूँ कि पांच अंगूठी ले ही लूं । एक का क्या दाम बताया आपने ।

अंगूठी वाला: एक मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित घोडे़ के नाल की अंगूठी की कीमत है मात्र दस रूपये । मानसरोवर वाले गरूजी ने कसम दिलाई थी की समाज कल्याण के लिये इसका दाम दस रूपये से अधिक मत रखना वर्ना जितनी एक एक अंगूठी पर लागत आयी है, एक अंगूठी 251 रूपये से कम में न बेचते हम । ………………..आप से कुछ जान पहचान हो गयी है इसलिये आप 5 अंगूठी का 45 रूपये ही दे दीजिये ।

 

जीतलाल: अब 5 रूपये आजकल फुटकर कहॉं मिलते हैं । आप चालीस में पांच दे दीजिये । काम हुआ तो पूरे मोहल्ले को पहनवा दूंगा । मैं भी जुबान का पक्का आदमी हूँ ।

थोड़ी देर मोल भाव करने के बाद ।


जीतलाल: अच्छा ये लीजिये 40 रूपये । अब इसे पहनने का तरीका भी बता दीजिये । क्या कोई साईत-सगुन देख कर इसे पहनना होगा ।


अंगूठी वाला: आप बहुत समझदार और संस्कारी आदमी हैं । कोयी दूसरा होता तो यह सवाल नहीं करता । देखिये……………….ये अंगूठी है सनीचर महाराज की । इसलिये इसे धारण करने का दिन भी सनीवार है । कृष्ण पक्ष में किसी सनीचर के दिन रात्रि में इसे गंगा जल से धो कर, इग्यारह बार ॐ सनीचर देवता का जाप करके इसे बीच वाली अंगुली में धारण कर लीजियेगा । कृष्ण पक्ष की अमावस हो तो सर्वोत्तम होगा । अब जाईये आप का कल्याण होगा ।


इसीके साथ अंगूठी वाले ने हाथ उठाकर जीतलाल को आशीर्वाद भी दे दिया । जीतलाल ने अंगूठी वाले का आशीर्वाद ग्रहण किया और प्रसन्नमन अंगूठी की पुड़िया कमीज की जेब में रखी और घर की तरफ झोला कंधे पर लटकाये चल दिया ।

दृश्य : 2

घर के पूजाघर में जीतलाल ऊन के आसन पर बैठा “ॐ शनिश्चारय नमः” जाप कर रहा है ।
करीब 11 बार जाप करने के बाद । जीतलाल खुद से ही कहता है । 
जीतलाल : मनसुख भाई ने जैसा कहा था कि कृष्णपक्ष की अमावस वाले शनिवार की रात्रि को इन अंगूठियों को गंगाजल से धो कर 108 बार “ॐ शनिश्चारय नमः” का जाप करना । वह सारे कर्मकाण्ड तो मैंने आज कर डाले । अब समय आ गया है इन चमत्कारी अंगूठियों का सफल प्रयोग करके देखने का ।

कुछ देर तक वह सोचता रहता है । और फिर अपने दायें हाथ की मध्यमा उंगली में वह एक अंगूठी पहन लेता है ।

जीतलाल : मनसुख भाई ने अंगूठी के बहुत से चमत्कार बताये थे । एक प्रयोग तो मैं अपने वैवाहिक रिश्ते को प्यार से भरपूर करने के लिये कर डालता हूँ । पुष्पा तो शादी के 15 साल बाद पूरी केक्टस के फूल जैसी हो गयी है । पता नहीं कहॉं गये वो प्यार और रोमांस के दिन । ……………… पुष्पा……… पुष्पा डियर……….. पुष्पा डार्लिंग जरा इधर आना ।

पुष्पा हाथ में चाय का कप लिये मुस्कुराती हुयी स्टेज पर आती है । पुष्पा को मुस्कुराते आता देख कर जीतलाल कहता है ।
जीतलाल : अरे वाह ! यह अंगूठी तो बड़ा तेज काम करती है । वाह, वाह मनसुख भाई, वाह । यह सब आपके दिशा निर्देश के अनुसार अंगूठी सिद्ध करने का ही नतीजा है । पहनते ही बीवी मुस्कुरा कर चाय ला रही है । मैं तो भावविभोर हुआ जा रहा हॅू । (वह अंगूठी चूम लेता है)

पुष्पा: (कर्कश आवाज में डांटते हुये) ल्यो गर्मागर्म चाय पियो और ये क्या डार्लिंग डार्लिंग लगा रखा है । बच्चे बड़े हो गये हैं । उनके सामने तो थोड़ा शर्म लिहाज किया करो ।

डांट सुन कर जीतलाल का मुंह उतर जाता है । और वह गुमसुम सा पुष्पा का मुंह देखने लगता है ।

जीतलाल: तुम मुस्कुराते हुये क्यों आ रही थी ?

पुष्पा : अब इस घर में मेरा मुस्कुराना भी मुश्किल हो गया है । मेरी जरा सी खुशी भी तुम से देखी नहीं जाती है । मायके से मम्मी का फोन आया था । उनसे बात कर रही थी । उन्होंने मेरे लिये नई साड़ी खरीदी है और मुझे मिलने के लिये बुला रही हैं । मुझे मायके जाना है कल ही ।

जीतलाल : (उदासी भरे स्वर में) अच्छा कल बच्चों को स्कूल भेज कर चली जाना । बगल में मायका होने के यही तो फायदे हैं ।

पुष्पा : अच्छा मुझे कल सवेरे 5 हजार रूपये दे देना । मम्मी के घर के बगल में एक नया शापिंगमॉल खुला है । मुझे वहॉं शॉपिंग करनी है । तुम अभी ए टी एम से पैसे ले आओ । सवेरे तुम्हें वक्त कहॉं मिलेगा । मैं चलूँ किचन में मेरी सब्जी जल रही है ।

इतना कह कर पुष्पा अंदर चली जाती है ।

जीतलाल : बीवी ने प्यार से तो कोई बात नहीं की उलटा पांच हजार का चूना और लग गया । क्या अंगूठी सिद्ध करने में कहीं कोयी त्रुटि हो गयी है ? अरे! याद आया । मनसुख जी ने कहा था कि अंगूठी को पूरी तरह काम करने में हफ्ते भर तो लग ही जाता है । खैर, अगले 7 दिन तक वाच करता हूँ । …………….अंगूठी अगर 7 दिन के बाद काम करती है तो कम से कम जिनके लिये अंगूठी ली है उन्हें तो पहना दूंगा ही । फिर 7 दिनों के बाद उनके काम भी बनने लगेंगे । शुरूआत छोटे भाई नंदलाल से करता हूँ । दिन भर आवारागर्दी करता फिरता है । पढ़ाई लिखाई तो जो बाप दादा ने कर ली तो अब ये इन सब झंझटों से आजाद हो गये हैं । ………नंदू……ओ नंदू ।

बैक स्टेज से नंदू की आवाज आती है ।

नंदू : आया भईया । (इसके साथ ही नंदू भी स्टेज आ जाता है) हॉं भईया क्या बात है ? मसाला, तेल, साबुन और ब्रेड वगैरह मैं बाजार से ले आया हूँ और छुट्टे पैसे भाभी को वापस लौटा भी दिये हैं । पढ़़ने जा रहा था कि आपने बुला लिया ।

जीतलाल : सब जानता हूँ कि क्या पढ़ते हो । गुलशन नंदा के उपन्यासों की एक लंबी कतार तुम्हारे सिरहाने रखी है । मुझे चराने की कोशिश मत करो । बड़ा भाई हूँ तुम्हारा । आधे से ज्यादा उपन्यास मेरी ही अलमारी से निकाले हैं तुमने । 
नंदू : भईया, क्या कलेक्शन है आपका । मैं तो आप का और गुलशन जी दोनों को फैन हो गया । 
जीतलाल : बस बस । मैं तो बी ए पास भी हो गया लेकिन तुम्हारा तो इंटर में थर्ड इयर है इस साल । अच्छा एक काम करो, ये अंगूठी पहन लो । एक सिद्ध बाबा ने दी है । इसको पहनने के बाद तुम्हारा पढ़ाई में अधिक मन लगने लगेगा और शनीदेव की कृपा हुयी तो इस साल तुम इंटर पास हो जाओगे । ग्यार बार “ॐ शनिश्चारय नमः” कह कर यह अंगूठी इस उंगली में पहन लो ।

नंदू : अरे वाह भईया ! आपने भी यह अंगूठी पहन रखी है । क्या आपको भी इंटर का एक्जाम देना है ?

जीतलाल : ज्यादा बक बक मत कर । जैसा कहता हूँ वैस करो जा कर ।

जीतलाल इतना कह कर स्टेज से चला जाता है ।

नंदू : अरे यह अंगूठी तो कुछ कुछ भाभी वाली मैगजीन “रूपशोभा” में छपे “घोड़े के नाल की अंगूठी” के विज्ञापन जैसी लग रही है । जिसके बारे में लिखा रहता है कि पढ़ाई,…. नौकरी,…. प्रेम,…. संतान,…. मुकद्दमा,… सौत,…भूत प्रेत, नौकरी में तरक्की, व्यापार में मुनाफा आदि सभी कामों में यह सफलता देती है । यानी की अगर में इसे पहन लेता हूँ तब मेरी क्लास में पढ़ने वाली कलावती हो सकता है मेरे प्यार में दीवानी हो जाये, जैसे मैं उसके प्यार में हो गया हूँ । तब तो मजा ही आजायेगा । (सीने पर हाथ रख कर) हाय कल्लो ! देखता हूँ की तू कब तक मुझे एवॉयड करेगी । कल ही गुलाब के फूल के साथ तुझे प्रपोज करता हूँ । पट गयी तो सत्यनारायण की कथा पड़ौस में जरूर सुनूंगा । और प्रसाद की पंजीरी दो प्लेट खाऊंगा ।

नंदलाल खुशी में अंगूठी चूमता स्टेज से बाहर चला जाता है । और पर्दा गिर जाता है ।

दृश्य: 3


ऑफिस का सीन । कुर्सी मेज पर 2 कर्मचारी काम कर रहे हैं । स्टेनो कम्प्यूटर पर काम कर रही है । चपरासी स्टूल पर बैठा सुर्ती चूना मिला कर हाथ में रगड़ रहा है ।

कर्मचारी 1: अरे चंपकलालजी सवेरे से काम करते करते गला सूख गया इस गर्मी में । जरा एक गिलास घड़े का ठंडा पानी पिला दीजिये ।

चंपकलाल चपरासी : सवेरे से फाईलें इस कमरे से उस कमरे में कर रहा हूँ । साहब के साले साहब आये हैं । कभी उनके लिये जलेबी लाओ, कभी खस्ता दमालू लाओ । जरा देर सुस्ताने की भी फुरसत नहीं है इस ऑफिस में । अरे बाबू साहब इत्ती देर से कुर्सी पर बैठे हैं, शरीर अकड़ गया होगा । उठ कर पानी पी लेंगे तो खून का दौड़ा भी शरीर में सही हो जायेगा ।

जीतलाल: अरे चंपकलालजी, जो सुख आपके हाथ से पानी पीने में है वो खुद ले कर पीने में कहॉं ?
चंपकलाल: क्या जीतलाल बाबू ! अभी आप कल कह रहे थे की सुनयना जी के हाथ के लड्डूओं का जवाब नहीं ।

इसपर सुनयना जी चंपकलाल और जीतलाल दोनो को घूर कर देखने लगती हैं और जीतलाल सकपका कर इधर उधर देखने लगते हैं ।

सुनयनाजी: जीतलाल जी वो हनुमानजी के प्रसाद के लड्डू थे । और आप ये कैसी बातें करते रहते हैं मेरे पीठ पीछे । शादीशुदा मर्द होकर आपको शर्म नहीं आती ऐसे कमेंट करते ।

कर्मचारी 2: सुनयना जी शादीशुदा होने पर तो हर आदमी शर्मिंदा है आज के जमाने में ।

सुनयना: मैं आपसे बात नहीं कर रही हूँ जितेन्दप्रसाद जी ।

चंपकलाल एक गिलास पानी घड़े से निकाल कर सुनयनाजी को देता है ।

चंपकलाल: मैडम आप इनकी बातों का बुरा न मानिये, लीजिये ठंडा पानी पीजिये और साहब के केबिन में जाकर कुछ देर ठंडी हो लीजिये एसी में । यहॉं बहुत गर्मी है ।

सुनयना : चंपक भईया केबिन में चली तो जाऊं पर वो साहब के साले जोगिन्दरनाथ वहॉं 8 दिन से डेरा जमाये हुये हैं । मुझे देखकर तो जो शायरी शुरू करदेते हैं कि ………सहन नहीं होता ।

चंपकलाल : अरे कलाकार आदमी हैं । थोड़ी वाह वाह कर देंगी तो साहित्य कल्याण हो जायेगा ।
सुनयना : पर वह जो हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा कर शायरी करने लगते हैं तब क्या किया जाये ।

जीतलाल: मेरी मानिये तो आप हफ्ते भर की केजुएल एप्लाई कर दीजिये ।

सुनयना: और मेरा काम आप कर देंगे जैसे । बड़े आये हैं । अपने काम से काम रखिये जीतलाल जी ।

कर्मचारी 1: जीतलाल जी जब सुनयनाजी आपको लिफ्ट नहीं देती तो क्यों आप उनसे लिफ्ट मांगते हैं ।

इतने में साहब जीवनलाल कोटटाई में स्टेज पर एंट्री लेते हैं । सभी उठ कर खड़े हो जाते हैं ।

साहब : सुनयना आपने कल जो डिक्टेशन ली थी वो तैयार हो गयी हो तो लेकर केबिन में आओ । जीतलाल… जी खन्ना एण्ड खन्ना फर्म की फाईल तैयार हो गयी की नहीं । आज किसी भी हालत में वह फाईल तैयार हो जानी चाहिये । चाहे रात के आठ बजे या नौ । सुनयना तुम केबिन में आओ । जोगिन्दर ने तुम्हारे लिये 9 पेज की गज़ल तैयार की है । जरा बैठ कर सुन लो । तुम्हें तो कविताओं की अच्छी समझ है ।

At_workजीतलाल: (धीरे से अपने आप से कहता है) मर गये । आज तो रात के 10 बज जायेंगे ऑफिस में ही । फाईल तो मिल ही नहीं रही है, पता नहीं कहॉं रख दी ससुरी । जब से अंगूठी पहनी है षनी महाराज कुछ ज्यादा ही इंसाफ की तलवार भांज रहे हैं ।

पर्दा गिरता है ।

दृश्य : 4 ……गली या पार्क का सीन (जैसी सुविधा हो स्टेज सजाने की)

नंदलाल स्टेज के किनारे पर खड़ा है ।

नंदू : कलावती रोज कोचिंग के बाद इसी सड़क से गुजरती है । आज में काले घोड़े की नाल की अंगूठी का जलवा चेक करके रहूंगा । या तो कलावती मुझसे दोस्ती करेगी या अंगूठी लुडिस होगी ।

नंदू एक कोरा कागज लेता है और उसको तह करके जेब में रख लेता है ।

नंदू : आज यह कोरा कागज मेरे प्रेम का परवाना बनेगा । इस कागज में कुछ नहीं लिखा है पर इसके जरिये मैं यह आजमा लूंगा कि कलावती मुझे पसंद करती है या नहीं । इस कागज की गेंद बना कर मैं उसके सामने फेक दूंगा, अगर वह गेंद उठा लेगी तो मतलब मामला सेट है और अगर नहीं उठायी तब कोयी दूसरी ट्रिक आजमानी पड़ेगी । समय हो गया है, बस वह आने ही वाली होगी । (सीटी बजाकर इधर उधर टहलने लगता है)

एक मिनट बाद कलावती कंधे पर बैग लटकाये स्टेज पर एंट्री लेती है और नंदलाल की तरफ बढ़ती है । तभी नंदलाल तह किया हुआ कागज निकाल कर कलावती के रास्ते में उसे दिखाते हुये फेंक देता है ।

नंदू : फूल तुम्हे भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है, प्रीतम मेरे मुझको लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है ….(गा रहा है)

कलावती रास्ते में पड़े कागज को उठा कर बैग में रख लेती है और नंदू की तरफ बिना देखे आगे बढ़ जाती है और स्टेज के कोने में खड़े हो कर बैग से चिट्ठी निकाल कर देखने लगती है । कागज आगे पीछे पलट कर देखती है । कोरे कागज को देख कर लाल पीली होने लगती है, पैर पटकने लगती है ।

कलावती : अच्छा बच्चू……लड़की को फंसाने के लिये लेटर का झांसा देते हो । डरपोक इतने की लेटर भी बिल्कुल कोरा, तुम्हारे जिगर की तरह । अभी मजा चखाती हूँ ।


नंदू : (गा रहा है) कि मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर , कि तुम नाराज न होना, कि तुम मेरी जिंदगी हो, कि तुम मेरी जिंदगी हो ।………..लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में, हजारों रंग के नजारे बन गये, । सवेरा जब हुआ, तो फूल बन गये, जब रात आयी तो, सितारे बन गये । …………..कोरा कागज था ये मन मेरा, लिख दिया नाम उस पर तेरा, तेरा, तेरा ।

कलावती पीछे से आ कर नंदलाल के पास खड़ी हो जाती है । और मुस्कुराते हुये मीठी आवाज में कहती है ।

कलावती : आपका नाम नंदलाल है ?

नंदू : (चकित हो कर) अरे आप वापस आ गयीं । अभी तो आप उधर जा रही थीं ।

कलावती : किसी का संदेश मिला तो अपने आप को रोक नहीं पायी ।

नंदू : कैसा संदेश ?

कलावती : यह कोरे कागज पर आपने जो सलाम लिखा था । कैसे न आती खत पढ़ कर ।

नंदू : लेकिन खत तो बिल्कुल कोरा था। उस पर कुछ लिखा तो था ही नहीं ।

कलावती : लेकिन उस कोरे कागज पर आपके प्रेम की स्याही से मेरा नाम लिखा हुआ था । वह भी बड़े बड़े अक्षरों में । कलावती (हल्के से और प्यार से)

नंदू : किसी ने क्या खूब कहा है कि प्रेम की कोयी भाषा नहीं होती । प्रेम तो हवाओं में, चिड़ियों की चहचहाट में, हर पल धड़कते दिल की धड़कनों में बयॉं होता रहता है ।

कलावती : लेकिन मुझे तो इस प्रेम के दर्शन आज ही हुये । आप पहले क्यों न मिले मुझे । मेरी सूनी जिंदगी में कितना कोलाहल था । कितनी प्यास थी इस पथरीले जीवन में ।

नंदू : डरता था मैं कलावती । इस बेदर्द जमाने से । डर लगता था कि कहीं तुम मुझे रूसवा न करदो । कहीं मेरा मासूम प्यार किसी मगरूर भाई के पैर की धूल न बन जाये । तुम्हारा कोयी बड़ा भाई तो नहीं । फिल्मों में मैंने देखा है , हिरोइन के एक दो पहलवान भाई जरूर होते हैं जो हीरो की धुलाई के लिये हरदम तैयार रहते हैं ।

कलावती : अरे नहीं मैं तो अपने मॉं बाप की इकलौती लड़की हूँ ।

नंदू : चलो ये बड़ी कृपा की अंकल आंटी ने । फिर दामाद भी तो बेटा ही होता है ।

कलावती : तुम कब से क्लास में पढ़ाई छोड़ कर मेरे प्यार में मजनूं बने हो ।

नंदू : बस इसी साल से । मैं तो पिछले 2 साल से इस क्लास में पढ़ रहा हॅं । या ये कहो की तुम्हारे इंतजार में पड़ा हूँ । असल में मैं तुमसे दो साल सीनियर था ।

कलावती : ओह प्रेम में आदमी सब कुछ भुला देता है ….ये सिर्फ फिल्मों में ही देखा था आज जीवन में भी देख लिया । आज मुझे मेरा सच्चा प्यार मिला है । सत्यनारायण कथा के प्रसाद की तरह तुम मेरे जीवन में आये हो । मैं तुम्हे ऐसे न जाने दूंगी । तुम्हे पंजीरी बना कर ही दम लूंगी ।

नंदू : पंजीरी क्यों ? क्या तुम्हें पंजीरी बहुत अच्छी लगती है । हे प्रिये मैं तुम्हारे लिये हर हफ्ते सत्यनारायण की कथा सुनूंगा और पंजीरी का भोग चढ़ाऊंगा ।

कलावती : पंजीरी मीठी होती है न । और फिर भगवान का प्रसाद तो सदैव मंगलकारी होता है । तुम से एक बात पूछूं ?

नंदू : पूछो न प्रिये ।

कलावती : तुमने कोरा कागज क्यों फेंका मेरा रास्ते में ।

नंदू : बताया न प्रिये , मैं रूसवाइयों से डरता था और उससे भी ज्यादा पिटाई से ।

कलावती : मेरा एक सपना पूरा कर दोगे । मेरी जिंदगी का यह पहला प्रेमपत्र है और वह भी कोरा । मुझे क्या मालूम की मेरे नंदलालजी ने मुझसे क्या मीठी मीठी बात कही है । प्लीज तुम इस कोरे कागज पर मुझे प्रेम में डूबा हुआ पत्र लिख कर दो न । अभी लिख दो न। क्या मुझे इतना भी हक नहीं है कि मुझे अपने प्रियतम का प्रेमपत्र भी न नसीब हो ।

नंदू : सेंटी न करो प्रिये । लाओ अभी लिख देता हॅं । प्रेमपत्र लिखने का तो मैंने पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर रखा है इंटरमीडियेट में। लो अभी लिख देता हूँ । ………..

नंदू : प्राणों से प्यारी कलावतीजी ! वेरी गुड आफ्टरनून जी । आप मुझे नहीं जानती पर लगता है कि मैं आपको कई युगों से जानता हूँ । न जाने कितने जन्मों का नाता है आपसे । समाजशास्त्र की क्लास में जब आपको पहली बार देखा था तब से मैं इन नशीली आंखों में डूबा जाता हूँ । डूबने से अगर बचा हूँ तो वो आपकी लहराती जुल्फों के कारण, इस घनी केशराषि ने मुझे उलझाये रखा है । वह सनीचर का दिन था जब आप नीले अनारकली सूट में कोचिंग आयी थीं । मैं उसी पल सलीम की तरह एक लम्हें में अपना दिल हार गया था । दारोगा ए जिंदाल की तरह प्रोफेसर ने घूर कर मुझे चाक फेंक कर मारी थी पर उसके पहले ही तुम मेरे दिल की गहराईयों में उतर चुकी थी । फिर न जाने कितने पीरियेड मौसमों की तरह गुजर गये और मैं ठीक तुम्हारे पीछे वाली बेंच पर बैठा चकोर की तरह तुम्हारी पीठ ताकता रहा । मुझे सिलेबस की तरह तुम्हारी हर ड्रेस याद होगयी । किस दिन तुम पीले रंग का दुपट्टा पहन कर आती हो और किस दिन तुम्हारे सेंडिल का रंग बैंगनी होता है यह शायद तुम्हें न पता होगा पर मुझे जुबानी याद है ।

कलावती : बस बस, तुम तो बड़े पहुंचे हुये आशिक मालूम पड़ते हो भाई । इतना लंबा प्रेमपत्र मत लिख देना कि पढ़ते पढ़ते तुम्हारे ख्यालों में खो जाऊं और पापा पीछे से आकर सारा माजरा भांप लें । तुम एक काम करो की नीचे अपना नाम लिख कर पत्र पैकअप करो ।

नंदू : लो अपना नाम, पता, फोन नंबर सब लिख देता हूँ । यह लो लिख दिया । अब कुछ अपने बारे मे भी बताओ । तुम्हारा मोबाइल नंबर क्या है ।

कलावती : (मीठी आवाज में) नंदू…. तुम मेरे लिये क्या कर सकते हो ।

नंदू : मैं तुम्हारे लिये यूनिवर्सिटी का पेपर आउट करा सकता हूँ । तुम्हारे लिये ऋतिक की फिल्म का फस्ट डे फस्ट शो का टिकट ला सकता हूँ । रोज सवेरे तुम्हारे घर पर भैंस का ताजा दुहा दूध ला सकता हूँ । तुम्हारे कुत्ते को सवेरे शाम टहला सकता हूँ और पड़ौस की कुतिया से उसकी सेटिंग करवा सकता हूँ । तुम्हारे पापा की हर दूसरे दिन शेव बना सकता हूँ । तुम्हारी मम्मी की किट्टी पार्टी में सबके लिये खाना बना सकता हूँ ।

कलावती : बस कर भाई, रूलायेगा क्या । मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया था, आप ने तो पूरा बायोडेटा ही दे डाला । मैं तो प्रेमी की कूवत देखना चाह रही थी आपने तो पति का सीवी अप्लाई कर दिया ।

तभी एक हवलादार स्टेज पर एंट्री लेता है । दोनों हाथ से सुर्ती बनाते हुये और डंडा बगल में दबाये वह आगे बढता है । और उन दोनों के करीब पहुंच जाता है । हवलदार को देख कर नंदलाल की हवा खराब होने लगती है ।

हवलदार : कलावती बिटिया क्या बात है, आज घर नहीं गयी कोचिंग से और यह लड़का कौन है?

कलावती : अरे प्रभू अंकल आप । कोई खास बात नहीं है । ये नंदलाल जी हैं । कोचिंग में साथ पढ़ते हैं । बहुत दिनों से ये मुझे मन ही मन चाह रहे थे । आज इन्होंने मुझे यह लवलेटर दिया है । इनके बारे में विस्तार से पूछताछ कर रही थी कि आप आ गये । चलिये कोयी बात नहीं । ये रहा लेटर । बाकी फर्ज कानून पूरा कर लेगा …………राह चलती लड़की को परेशान करने और फब्तियॉं कसने का ।

हवलदार : बिटिया तुम जाओ । इन्हें मैं थाने ले जाकर जमा करता हॅूं । (नंदू के पिछवाड़े पर एक डंडा जमाते हुये) आईये साहब ।

नंदू : अरे कलावती इन्हें बताओ की हमारी जान पहचान बहुत पुरानी है ।

कलावती : कई युगों से आप मुझे जानते हैं, पर अभी तक आप सुधरे नहीं । थाने जाईये वहॉं पिताजी आपकी पूरी जन्मकुण्डली निकाल देंगे । वो उसी थाने में थानेदार हैं ।

नंदू : मर गया। साला ससुरालवाले सहीये में ससुराल पहुंचा देंगे ।………मेरे महबूब कयामत होगी……आज रूसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी । ……(नंदू गाते हुये स्टेज से चला जाता है)

पर्दा गिरता है ।

दृश्य : 5 – घर का सीन

पुष्पा घर में परेशान, हाथ मलते हुये चहल कदमी कर रही है ।

पुष्पा : कहॉं रह गये आज ये दोनों भाई । रात के दस बज चुके हैं और इनका कोयी अता पता नहीं है । आने दो दोनों को खबर लेती हूँ इनकी । किसी यार दोस्त की बीवी मायके चली गयी होगी तो सब उसके घर में बैठे पार्टी कर रहे होंगे । और यह नंदू तो पक्का आवारा होता जा रहा है । पढ़ाई लिखाई से तो इसका दूर का भी नाता नहीं । घर में सामान खत्म हैं । बच्चे का दूध लाना था लेकिन दोनों को कोई फिक्र नहीं है । कितनी बार कहा कि मोबाईल में नयी बैटरी लगवा लो पर नहीं । इनका मोबाईल भी इन्हीं की तरह सुस्त है । पांच बजा नहीं की बैटरी लो ।

थोड़ी देर बाद जीतलाल और नंदलाल की स्टेज पर एंट्री होती है । जीतलाल थका हारा । बुस्शर्ट पेंट से बाहर । नंदलाल लंगड़ा कर चल रहा है, बाल बिखरे हुये । कमीज गंदी होगयी है । और थोड़ी थोड़ी देर में आह! की आवाज मुंह से आ रही है ।

पुष्पा : कहॉं से आ रही है राम श्याम की जोड़ी । शाम से मोबाइल ट्राई कर रही हूँ और श्रीमानजी जी को तो घर की कोयी फिक्र ही नहीं है । और छोट मियां, क्या हुआ आपको ? ये क्या हालत बना रखी है । साइकिल ले कर किसी नाले में गिर पड़े थे क्या ?

जीतलाल : कुछ न पूछो पुष्पा आज क्या हुआ । ऑफिस में ही आठ बज गये । बॉस ने एक अर्जेंट फाइल पकड़ा दी, उसी में सारा दिन निकल गया । किसी तरह उसे निपटा कर निकला तो चौराहे पर खड़े सब्जीवाले बसंतप्रसाद ने बताया कि आपके भाई को पुलिस पकड़ कर ले गयी है ।

पुष्पा : क्या बखेड़ा खड़ा कर दिया नंदलालजी ने ।

जीतलाल : साहब थानेदार की लड़की को प्रेमपत्र को दे रहे थे । लड़की ने अंदर करवा दिया ।

नंदू : भाभी उस लड़की ने मुझे धोखा दिया है या शायद वह जमाने के जुल्मों सितम से डर गयी । लेकिन मेरा प्यार सच्चा है । हाय! एक न एक दिन उसे मेरे सच्चे प्यार की कीमत पता चलेगी ।

जीतलाल : और उस दिन वह तुम्हें थाने में फिर धुलवायेगी ।

नंदू : आप नहीं समझेंगे भईया सच्चा प्यार क्या होता है । एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है ।

जीतलाल : अभी तुम्हें अकल नहीं आयी लगता है । जब तक सेंट्रल जेल की हवा नहीं खा लोगे दरिया की गहराई पता नहीं चलेगी । वह तो दीवान जी परिचित के निकल गये नही तो तुम्हारी जमानत कचहरी से ही होती । ……….एक तो जब से यह शनीदेव की अंगूठी पहनी है कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है । एक न एक झंझट लगी ही रहती है । कुछ चमत्कार फमत्कार नहीं होता है । जैसा आदमी करता है वैसा ही भरता है ।

नंदू : हॉं भईया सच कह रहे हैं आप । मैं भी इस अंगूठी की ताकत पर भरोसा कर के प्रेमपत्र दे रहा था । सोचा था बात बन जायेगी पर यहॉं तो उल्टे कलावती शनीचर की तरह सिर पर सवार हो गयी । धत्त तेरे की । अब किसी अंगूठी फंगूठी के चक्कर में नहीं पड़ूंगा ।

जीतलाल : नंदू बेटा इसमें इक तू ही कसूरवार नहीं है । सबसे बड़ा कसूरवार तो मैं हूँ जो ये अंगूठियॉं ले कर आया था । हम लोग अपने जीवन की खुशियॉं अंगूठी, तंत्रमंत्र, गंडे-ताबीज में खोजते खोजते जीवन का कितना वक्त जाया कर देते हैं, जबकि आज जो हमारे पास छोटी छोटी खुशियॉं हैं उन्हें हम देख ही नहीं पाते, नजरंदाज़ कर देते हैं.

पुष्पा : देखा ! आज जरा सा पुलिस स्टेशन क्या जाना पड़ा दोनो भाईयों को तो जीवन का फलसफा याद आ गया । रोज जो मैं परिवार के लिये दिन रात खटती हूँ तो क्या इसलिये की जीतू तुम मेरे लिये मंहगी मंहगी साड़ियॉं लाते रहो । नहीं जीतू नहीं, तुम अगर ऐसा सोचते हो तो गलत सोचते हो । मेरे भी तो कुछ अरमान हैं । इस करवाचौथ पर सिर्फ बनारसी साड़ी से काम नहीं चलेगा । अबकी मुझे हीरे की अंगूठी चाहिये, चाहे कुछ भी हो जाये । नहीं तो मैं करवाचौथ का व्रत तोड़ दूंगी हॉं ।

जीतलाल : अरे पुष्पी डियर ! ऐसा गजब मत करना । क्या तुम्हें नहीं मालूम की ऐसा करने से फिर तुम अगले साल करवाचौथ नहीं मना पाओगी । तुम्हें अपने सुहाग की कसम ऐसा मत करना । अच्छा करवाचौथ में अभी कई महीने हैं । तब तक तुम चाहो तो इस लोहे की अंगूठी से काम चला सकती हो । ये बड़ी करामाती अंगूठी है । यह तुम्हारे सारे सपने सच कर देगी । हीरे की अंगूठी छोड़ो ये तो तुम्हें हीरों का हार भी दिला देगी ।

पुष्पा : तुम नहीं सुधर सकते । मैं ही पत्थर से सर टकरा रही हूँ…..
यह कहते हुये पुष्पा अंदर चली जाती है और पर्दा गिर जाता है ।

 लेखक: के एम मिश्र


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