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शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

वर मरे चाहे कन्या, हमें दक्षिणा से मतलब

शहर में राज्य कार्मचारियों की तीन दिवसीय हड़ताल का खासा असर रहा । इससे अस्पताल भी अछूते नहीं रहे । सरकारी अस्पताल में मरीजों की चीख चिल्लाहट वार्ड में गूंजती रहीं लेकिन पैरा मेडिकल स्टाफ के नदारद होने से मरीजों और तीमारदारों की सुनवायी नहीं हो पायी। डाक्टर पेड़ों के नीचे कुर्सी डाल कर मुस्तेदी से झपकी लेते रहे ।

एक महिला मरीज अस्पताल में भर्ती अपने पति की जान बचाने के लिये दवा की पर्ची लेकर सड़क पर भटक रही थी । दवा की दुकानें बंद देखकर उस ग्रामीण महिला की आंखों में आंसू आ गये । उसने सामने से गुजर रही एक महिला को रोक कर कहा, ‘बहन जी मेरी मदद कीजिये । मेरे पति की तबीयत बहुत खराब है । अस्पताल में हड़ताल है । डाक्टर ने बाहर से दवा लाने के लिये पर्ची लिखी थी । यहॉं कोयी दुकान भी नहीं खुली है ।’

महिला ने पर्ची पर नजर डाली और कहा, ‘ये सारी दवायें अस्पताल में मौजूद हैं । डाक्टर चाहे तो दे सकतें है ।’

ग्रामीण महिला अचरज से से पूछ बैठी, ‘आप कैसे जानती हैं कि ये दवाएं अस्पताल में मौजूद हैं ?

महिला धीमी आवाज में बोली, ‘मैं इसी अस्पताल में नर्स हूॅं । हड़तालियों के डर से ड्यूटी नहीं कर रही हूँ । मैं तुम्हारे लिये दवा का इंतजाम कर देती हूँ , लेकिन हड़ताल ज्यादा दिन चले तो अपने पति को अस्पताल से निकाल कर किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में ले जाना । सरकारी अस्पताल में हड़ताली किसी मरीज की जान की कीमत नहीं समझते । उन्हें तो अपनी तनख्वाह बढ़ाने से मतलब है ।’


 animated-hospital-image-0021animated-hospital-image-0007=> कल इस पेशेंट का अपेंडिक्स का आपरेशन हुआ था और कल से ही डॉक्टर साहब की रोलेक्स की घडी नहीं मिल रही है. उसे ही ढूढने के लिए आज बेचारे का पेट फिर खोलना पड़ा.

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