शुक्रवार, 17 नवंबर 2017
राग दरबारी
राग दरबारी उपन्यास झांकी है आजादी के बाद के भारत के गाँव की. गांव का नाम है शिवपालगंज……..इस व्यंग्य उपन्यास के पात्र एक दम सजीव हैं प्रेमचंद की कहानी के पात्रों की तरह. वो हमें हमारे गाँव में भी मिल जायेंगे…राग दरबारी में हम देखते हैं की आजादी के बाद का भारत जो की गाँव में बसता है, वहां पर कैसे गुटबाजी बसती है. मिनी भ्रस्टाचार कैसे पाँव पसारता है…….आज हम देखते हैं की ग्राम प्रधान के चुनाव में कैसे पैसा और बंदूकों का बोल बाला है तो आज़ादी के बाद की ग्राम व्यवस्था में इस भ्रस्टाचार की शुरुआत हो गयी थी…शिक्षा आज बहुत बड़ा व्यवसाय है तो इसकी शुरुआत भी हमें तब की व्यवस्था में मिलने लगी थी….साहित्य समाज का दर्पण होता है तो ५० और ६० के दशक में भारत के गाँव में क्या हो रहा था इसकी हमें झलक इस उपन्यास से मिलती है……..फिर इसमें नया क्या है.क्यों यह उपन्यास मील का पत्थर है………वजह.
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