काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

सस्ते जहाज का सपना (हास्य नाटक)

 (घर की छत के ऊपर से हवाई जहाज के उड़ने की आवाज, अखबार पलटने की आवाज।)

 

गेंदा सिंह- अरे शकुंतला सुनती हो । जरा इधर आना ।

शकुंतला – क्या है? मैं किचन में बिज़ी हूँ  । वहीं से बता दीजिये ।

गेंदा सिंह- अरे दो मिनट के लिये इधर तो आ जाओ । एक बड़ी बढ़िया खबर छपी है ।

शकुंतला – देखिये अगर मैं सवेरे सवेरे अखबार पढ़ने लगूंगी तो षिव शंकर को स्कूल जाने में देर हो जायेगी और आप भी आफिस लंच के समय पहुंचोगे ।

गेंदा सिंह- अरे जरा इधर तो आ जाओ । अखबार में  ऐसी खबर छपी है कि अगर यह बात सच हो जाये तो तुम्हारा बचपन का सपना सच हो जाये ।

शकुंतला – (कमरे में आती है) देखिये, मेरे बचपन के सपनों की तो आप बात मत ही कीजिये । जब से ब्याह कर आयी हूँ एक भी सपना आपने सच नही किया, इसलिये अब न तो मैं सपने देखती हूँ और न ही पुराने सपनों को याद करती हूँ । हॉं एक सपना मैंने बहुत दिन तक देखा था कि मैं इंटर पास हो जाऊॅं । पर इस घर-गृहस्थी के चक्कर में  मेरा वह सपना भी टूट गया । अब तो मेरा यह सपना मेरा बेटा शिव शंकर ही पूरा करेगा । आप से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार है।  

गेंदा सिंह- अरे देवी जी धीरे बोलो । क्यों तुम पड़ोसियों को मेरा बायो-डेटा बताने पर तुली हो ? बड़ी मुश्किल से तो तीन बार में किसी तरह इंटर और पांच साल में बी.ए. पास की है । अब क्या तुम्हारे लिये मैं फिर इंटर की परीक्षा में बैठूं ।

शंकुतला – अब जल्दी से अपनी बात बोलिये क्यों गडे़ मुर्दे उखाड़ रहे हैं । दाल चढ़ा कर आयी हूँ । जल गयी तो शिवू बिना खाये ही चला जायेगा ।

गेंदा सिंह – देखो अखबार में लिखा है कि लातविया के वैज्ञानिक एक टू सीटर हवाई जहाज बना रहे हैं, जो हल्का और छोटा तो है ही, उसकी कीमत भी मात्र पांच लाख रू. है ।  

शकुंतला – कल से ये अखबार मंगाना बंद । पहली अप्रेल निकले दो महीने हो गये और ये लोग अप्रेल फूल आज मना रहे हैं । मेरी सब्जी जल रही है । दाल भी जल गई तो शिवू बिना खाना खाये ही चला जायेगा । आप फ्री  फंड में बैठे हैं तो आप ही पढ़िये । दस मिनट बाद जब नल चला जायेगा, तब बैठ कर खाली बाल्टी झांकियेगा । मैं चली । (बड़बड़ाते हुये) मुंआ न जाने कैसा इनका दफ्तर है जो ग्यारह बजे के पहले खुलता भी नहीं । अभी वो ज्ञानचंद भी आ जायेगा कचहरी जमाने के लिये ।

गेंदा सिंह – हुंह दसवीं पास । जब भी हवाई जहाज छत के ऊपर से गुजरता है तो आंगन में खड़ी हो जाती है । बचपन का सपना है कि हवाई जहाज में बैठेंगी । अब जब हवाई जहाज इतना सस्ता होने जा रहा है तो अखबार बंद कर दो ।

 

         (डोर बेल बजने की आवाज और शकुंतला की किचन से आवाज)

 

शकुंतला –  सुनिये, दरवाजा खोल दीजिये । ज्ञान भईया आये होंगें ।

 

                         (दरवाजा खुलने की आवाज)

 

गेंदा सिंह- आओ भाई ज्ञानचंद । बिटिया को स्कूल छोड़ आये ।

ज्ञानचंद-  हॉं । छोड़ आया । और क्या खबर है, अखबार में ? आज कहॉं ट्रेन  लड़ी या गटर का ढक्कन गायब होने से फिर कोयी देश  का भविष्य  नाले में डूब गया या किसी नेता की आशिकी  रंग लायी और उसके उजले दामन पर किसी महिला ने जबरदस्ती के दाग लगा दिये ।

गेंदा सिंह- अरे नहीं यार, आज यह सब अखबार में नहीं है लेकिन एक खबर ने सवेरे सवेरे   मुझे सपने देखने पर मजबूर कर दिया है ।

ज्ञानचंद –  लगता है कोयी लॉटरी वाली धमाकेदार खबर है । चलो वही सुनाओ ।

गेंदा सिंह- हॉं ज्ञानचंद, ये डेली धमाका अखबार रोज कोई न कोई धमाका करता रहता है । अब बताओ भला पांच लाख रूपये में कहीं हवाई जहाज भी मिल सकता है । बैठे बैठे ख्याली पुलाव पकाते हैं और हम लोगों को खिलाते हैं ।

ज्ञानचंद- क्या कह रहे हो गेंदा सिंह । पांच लाख में हवाई जहाज ? कौन बना रहा है ? कहॉं छपा है? दिखाइये हम भी तो देखें ।

गेंदा सिंह- लो तुम भी पढ़ लो । ये सबसे ऊपर छपा है । ‘अब पांच लाख में मिलेंगे हवाई जहाज’ ।                

 

                   ( अखबार के पन्ने पलटने की आवाज)

 

ज्ञानचंद- अमा क्या खाक पढूं  । चश्मा तो घर पर ही भूल के आ रहा हूँ । तुम ने खबर पढ़ी होगी, तुम ही बता दो क्या लिखा है अखबार में ।

गेंदा सिंह- तुम भी यार, भाभी को तो बिना चष्मे के भी एक किलोमीटर दूर से पहचान लेते हो और अखबार पढ़ने के लिये चश्मा लगाते हो ।

ज्ञानचंद- तुम से कितनी बार कहा है कि मेरी दुखती रग पर पांव मत रखा करो ।

गेंदा सिंह- दुखती रग पर हाथ रखा जाता है ज्ञान चंद, पैर नहीं । थोड़ा मुहावरों पर तो रहम किया करो ।

ज्ञानचंद- वही यार, एक ही बात है। चाहे पैर रखो या हाथ । दर्द तो दुखती रग को ही होना है न, फिर पैर रखना मुहावरे की सुपरलेटिव डिग्री है । तो मैं कह रहा था कि शिकारी शेर के शिकार के लिये जिस बकरी को चारे के लिये इस्तमाल करता है, उस बकरी को शेर की गंध दूर से ही पता चल जाती है । मैं भी अपनी बीबी के सामने बकरी हूँ । वो हर रोज मेरा शिकार करती है ।

गेंदा सिंह- चलो छोड़ो भी तुम तो खामखाह अच्छी भली भाभी को बदनाम करते फिरते हो । और फिर ताली एक हाथ से नहीं बजती है ।

ज्ञानचंद- छोड़ो ये सब बातें । तुम ठहरे भाभी के भक्त । उस की बुराई तुमसे कहॉं सुनी जायेगी । हॉं, वो हवाई जहाज की कहानी बताओ । इतना सस्ता जहाज बना कौन रहा है ।

गेंदा सिंह- हॉं तो सुनो, लातविया एक देश  है । वहॉं के वैज्ञानिक लोग लगे हैं एक सस्ता, हल्का, टिकाऊ और छोटा सा हवाई जहाज बनाने में । कीमत होगी मात्र नौ हजार डॅालर । यानि की पचास से गुणा करने पर भारतीय रूपये में होगा साढ़े चार लाख रूपये । पचास हजार तुम टेक्स वगैरह जोड़ लो । इस तरह से पांच लाख रूपये का इंतजाम करना पड़ेगा । बस ।

ज्ञानचंद- हूँ! बात तो तुम ठीक कह रहे हो पर विश्वास नही होता है गेंदा सिंह जी । इतना सस्ता हवाई जहाज ?

गेंदा सिंह- बात तो तुम्हारी भी ठीक है, पर ज्ञान चंद आज विज्ञान इतना तरक्की कर गया है कि आज सब कुछ संभव है । फिर हमें थोड़े ही बनाना है जहाज । यह तो लातविया वालों का सिर दर्द है । हमें तो बस पांच लाख रूपये इकट्ठे करने हैं और इंतजार करना है कि कब यह जहाज बन कर तैयार होगा और कब भारत में बिकने के लिये आयेगा । यार जब से पढ़ा है सब्र नहीं होता ।

ज्ञानचंद- गेंदा सिंह जी और भी तो कुछ छपा होगा अखबार में जहाज के बारे में ।

गेंदा सिंह- हॉं हॉं क्यों नहीं । ये जहाज बनेगा फाइबर और ड्यूरालोमिनियम से ।

ज्ञानंद- कौन से मिलेनियम से ?

 

गेंदासिंह- अमां यार मिलेनियम से नहीं ड्यूरालोमिनियम से । इस जहाज को उड़ने के लिये एक छोटी सी हवाई पट्टी की जरूरत पड़ेगी । सो इसके लिये अपनी छत से काम चल जायेगा । मकान मालिक माधो भईया थोड़ा बड़बड़ायेगें पर उनको एकाध बार जहाज में घुमा दिया जायेगा तो वो भी खुश हो जायेंगे । छत पर एक फूस की मड़ई है । अपना पुष्पक विमान रात में वही विश्राम करेगा । इस जहाज में वैसे तो दो इंजन होंगे पर वह उड़ेगा एक से ही । बस टेक ऑफ के समय दो इंजनों की जरूरत पड़ेगी ।

ज्ञानचंद- ये बढ़िया है । एक इंजन से उड़ेगा तो पेट्रोल की बचत भी होगी और पैसों की भी । कंबख्त पेट्रोल वैसे भी आज कल ७० रूपये लीटर चल रहा है । इसी बहाने हम लोग पेट्रोल पंप का मुंह भी देख लेंगे क्योंकि अपनी मर्सडीज में तो सिर्फ बरसात बाद ही ऑयलिंग ग्रीसिंग होती है ।

गेंदा सिंह- ज्ञान चंद चुप कर । मुझे पहले जहाज की खबर तो पूरी सुना लेने दे, फिर अपना ज्ञान बांचना । और साईकिल को मर्सडीज़ मत कहा कर । मर्सडीज़ वालों ने सुन लिया तो अपने सिर के बाल नोंच डालेंगे ।

ज्ञानचंद- देखिये गेंदा सिंह जी मेरे लिये तो वह टुटही साईकिल मर्सडीज़ से कम नहीं है । आप जहाज के बारे में आगे बताईये ।

गेंदा सिंह- इस जहाज में सुरक्षा के भी बेहतरीन इंतजाम होंगे । किसी भी दुर्घटना के समय इसकी सीट आपको पैराशूट के साथ बाहर फैंक देगी ।

ज्ञानचंद- जहाज का बीमा तो होगा ही इसलिये नुकसान की भी चिंता नहीं होगी । (खुशी से ताली बजाता है) क्या बात है! आर्थिक और शारीरिक दोनों ही नुकसान से बचाव हो जायेगा ।

                             (हवाई जहाज की आवाज)

 

गेंदा सिंह- अरे सक्कू आज तो जल्दी तैयार हो जाती । (बड़बड़ाता है) ये औरतें भी तैयार होने में इतना समय लगाती हैं कि इतने में चिड़िया खेत चुग कर अंडे भी दे देगी । (तेज आवाज में) अरे तुम्हारा मेकअप नीचे से दिखाई नहीं देगा । हम लोग शहर का एक चक्कर लगा कर लौट आयेंगे ।

शिव शंकर- पापा, पापा में तो तैयार हो गया ।

गेंदा सिंह- ओये खोटे, ये स्कूल का बस्ता क्यों पीठ पर लादे हुये है? तेरे स्कूल में इत्ती जगह नहीं की हमारा जहाज लैंड कर सके । आज तेरी छुट्टी है । जा कर अपनी माता जी को ले कर आ ।

शकुंतला- गला फाड़ कर क्यों चिल्लाते रहते हो । एक तो वैसे ही कौन सा घुमाने ले जाते हो । साल में एकाध बार घुमाने ले जाते हैं तो क्या ढंग के कपड़े भी न पहनूं । और सुनिये जरा सुशीला के घर भी होते चलियेगा, उसको पांचवा बच्चा हुआ है, उसका हाल चाल लेते चलेंगे । 

गेंदा सिंह- सक्कू डार्लिंग, रिश्तेदारों को जलाने के लिये फिर कभी चले चलेंगे । आज तो इस जहाज का फैमिली ट्रायल लिया जायेगा । शहर का एकाध चक्कर लगा कर घंटे भर में लौट आयेंगे ।

शकुंतला- मैंने तो पिक्चर का भी प्लान बनाया था । प्लाजा में संतोषी माता लगी है । शुक्रवार का दिन है देख लेते तो बड़ा पुण्य होता ।

गेंदा सिंह- सक्कू प्लाजा में कार पार्क करने की तो जगह है नहीं । लोग गली में खड़ी कर देते हैं । अपना जंबो जेट वहॉं कहॉं खड़ा होगा । छत भी उस पिक्चर हॉल की टीन की बनी है कि वहीं खड़ा कर देते । पिक्चर फिर दिखला दूंगा  ।

शकुंतला- बहाना मत बनाइये । जहाज ले कर ऑफिस चले जायेंगे और उस मुई सुलेखा को हर दिन घर छोड़ते हुये आयेंगे । सब जानती हूँ मैं ।

गेंदा सिंह- अरे उस बिचारी सुलेखा ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । मूड मत घराब करो मेरा, जल्दी से जहाज में बैठा जाओ । आज पहली बार जहाज उड़ाने जा रहा हूँ, फ्रेश मूड से जहाज उड़ाने दो मुझे।     

शकुंतला- हुंह ।

शिव शंकर- पापा मैं कहॉं बैठूं । यहॉं तो सिर्फ दो ही सीट है ।

गेंदा सिंह- बेटा तू मम्मी की गोद में बैठ जा । कल तेरे वास्ते एक छोटी सी सीट इसमें लोहार से वैल्ड करवा दूंगा ।

 

                         (जहाज के घुरघुराने की आवाज)

 

शकुंतला- क्यों जी ये स्टार्ट क्यों नहीं हो रहा है ।

गेंदा सिंह- पता नहीं क्या बात है । कोशिश तो कर रहा हूँ ।

शकुंतला- कंपनी वालों को पहले एकाध बार चला कर दिखाना चाहिये था । ट्रक पर लाद कर लाये और करें से उठा कर छत पर रख कर चले गये । देखिये किताब में कुछ दिया होगा । कुछ अंजर पंजर तो बने थे किताब में ।

शिव शंकर- पापा रिंकी के पापा का स्कूटर जब र्स्टाट नहीं होता तो वो उसको टेढ़े कर के र्स्टाट करते हैं।

गेंदा सिंह- अरे हॉं । चोक लेना तो भूल ही गया था । लो अब र्स्टाट हो जायेगा ।

 

                 (जहाज के र्स्टाट होने की आवाज और उड़ने की आवाज)

 

शकुंतला- एजी सुनिये । आप बहुत तेज जहाज चलाते हैं । मुझे चक्कर आ रहा है । थोडा धीरे उड़ाईये ।

गेंदा सिंह- अरे ये साईकिल नहीं है,  पांच लाख का हवाई जहाज है । धीरे धीरे साईकिल चलती है जहाज नहीं । …..वो देखो तुम्हारा मायका आ गया । हमारे फादर इन लॉ निकर पहन कर छत पर बैठे गेंहू सुखा रहे हैं । ऊपर से ही प्रणाम कर लो अपने पिता जी को ।

शिव शंकर- पापा मामाजी भी बैठे हैं दीवार के पीछे । नाना जी से छुप कर नावेल पढ़ रहे हैं ।

गेंदा सिंह- कितनी बार मना किया है साले को की नॅावेल पढ़ना छोड़ कर कोर्स की किताब पढ़ा कर । पर लगता है ये चौथी बार भी हाई स्कूल पास नहीं कर पायेगा ।

शकुंतला-  आप को तो बहाना चाहिये मेरे भाई को डाटने का ।

गेंदा सिंह- काम ही साला ऐसा करता है तो क्या करें । परसों मेरी जेब से पनामा का पूरा एक नया पैकेट निकाल कर सटक लिया ।

शकुंतला-  सुनिये, सरिता दीदी के घर की तरफ चलिये न । जीजा जी भी घर पर होंगे ।

गेंदा सिंह- चलेंगे, चलेंगे । अगले इतवार सबके यहां चलेंगे । आज इसका एवरेज वगैरह तो नाप लिया जाये, कि पता चला बीच रास्ते में पेट्रोल खत्म हो गया तो कहीं सड़क पर उतारना पड़ जायेगा।

शकुंतला-  देखते हैं आपको अगले इतवार तक याद रहता है कि नहीं ।

गेंदा सिंह- अरे वो नीचे देखो, ज्ञान चंद अपनी दादाजी की साईकिल पर सब्जी मंडी से सब्जी खरीद कर आ रहा है । (चिल्ला कर) ओ ज्ञान । ज्ञान चंद ऊपर देख । ज्ञान… चंद.. । 

शकुंतला-  अरे चुप भी रहिये । पूरा शहर देख रहा है आपको । ऐसे हलक फाड़ कर चिल्लायेंगे तो शहर भर की चीलें जहाज के पास इक्कठी हो जायेंगी ।

गेंदा सिंह- सलाह के लिये शुक्रिया ।

शिव शंकर- वो देखिये पापा कितनी पतंगे उड़ रही हैं । एक पतंग तोड़ कर दीजिये न ।

गेंदा सिंह- ना, ना । हाथ खिड़की से बाहर नहीं  निकालते शिवू  । हाथ अंदर करो । उड़ते जहाज में से हाथ पैर बाहर नहीं निकालते । एक्सीडेंट हो जायेगा ।

शिव शंकर- पापा एक ठो पतंग लूट लेने दो । बस एक ठो ।

गेंदा सिंह- नहीं,नहीं  । हाथ अंदर करो । नहीं, नहीं ।

 

 (हवाई जहाज की आवाज)

 

ज्ञानचंद- अरे सिंह साहब क्या हो गया आपको । ये बैठे बैठे क्या नहीं नहीं करने लगे । जहाज खरीदने का विचार त्याग दिया क्या आपने ।

गेंदा सिंह- (संभल कर) हॉं, हॉं । क्या । कुछ नहीं । कुछ नहीं । क्या कह रहे थे ।

ज्ञानचंद- मैं  कह रहा था कि जहाज का बीमा तो होगा ही ।

गेंदा सिंह- हॉं, हॉं, क्यों नहीं होगा । साईकिल थोड़े ही है जो बीमा वाले छोड़ देंगे । बीमा तो करवाना ही पड़ेगा ।

ज्ञानचंद- करवा लेंगे । बीमा भी करवा लेंगे । इतनी मंहगी चीज जो है । चोरी चकारी का भी तो डर लगा रहता है ।

गेंदा सिंह- लेकिन इस जहाज को लेकर हवाई प्रशासन थोड़ा परेशान है ।

ज्ञानचंद- वो किसलिए ।

गेंदा सिंह- वो इसलिये की जब जहाज सस्ता हो जायेगा तो हर कोई मारूती 800 छोड़ कर जहाज पर ही चलेगा । आसमान में ट्रैफिक जाम होगा, एक्सीडेंट होगा । ऊपर आसमान में ट्रेफिक लाइटें और सिग्नल लगाने पड़ेंगे । कोई आदमी ट्रेफिक के नियम तोड़ कर भागेगा तो ट्रेफिक पुलिस वाला बुलेट पर बैठ कर तो उसको चहेटेगा नहीं । उस को भी तो एक हवाई जहाज चाहिये कि नहीं, दौड़ा कर पकड़ने के लिये ।

ज्ञानचंद- बरोबर बोलते हो गेंदा सिंह जी । खर्च तो प्रषासन का भी बढ़ जायेगा । उनकी वो जाने, मैंने तो अपने खर्च का हिसाब मन ही मन लगा लिया है ।

गेंदा सिंह- कैसा हिसाब मन ही मन में लगा लिया हुजूर ने ।

ज्ञानचंद- देखिये गेंदा सिंह जी अगर कोई ऐसा जहाज बन कर मार्केट में बिकने आता है तो मैंने उसको खरीदने का निश्चय कर लिया है । पांच लाख होती क्या चीज है । आज कल तो छोटी मोटी कार पांच लाख की आती है । और फिर सरकार के लिये पांच लाख रूपये क्या मायने रखते हैं ।

गेंदा सिंह- क्या मतलब । आप सरकार के पैसों से जहाज खरीदना चाहते हैं । वह कैसे ?

ज्ञानचंद- आप तो जानते ही हैं कि मेरी मर्सडीज, जिसे आप साइकिल कहते हैं,  वह मेरे दादाजी के जामाने की है । एंटीक पीस है । पुरातत्व वाले हाथ धो कर उसके पीछे पड़े हुये हैं । फिर उस साइकिल का तो ऐतिहासिक महत्व भी है ।

गेंदा सिंह- ऐतिहासिक महत्व है । वह कैसे ?

ज्ञानचंद- अरे आप को नहीं पता । पूरे मोहल्ले को पता है । सन 1939 के चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने इसी साईकिल पर चढ़ कर कन्वेसिंग की थी । मेरे दादाजी भी कांग्रेस के चवन्निया मेंम्बर थे । इस तरह से हुई न ऐतिहासिक साईकिल । मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा कि इस राष्ट्रीय संपत्ति को अब मैं राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंपना चाहता हूँ और बदले में अगर वो मुझको कोई मूल्य देना चाहती है तो मुझको लेने से कतई इंकार नहीं होगा । मैं दान दहेज को गलत मानता हूँ, इसलिये अपनी यह साईकिल राष्ट्रीय संग्रहालय को दान नहीं करूंगा, इससे सरकार की भी बेइज्ज़ती होगी,  की बताओ इत्ती बड़ी सरकार हो करके एक पुरानी कबाड़ साइकिल का मूल्य भी नहीं चुका सकती । बस केवल दस लाख की ही तो बात है ।

गेंदा सिंह- दस लाख रुपये ! इतने रूपयों का तुम क्या करोगे । जहाज तो पांच लाख हूँ ही आ जायेगा। 

ज्ञानचंद- जहाज तो पांच लाख में तो आ जायेगा पर पेट्रोल भी तो भरवाना पड़ेगा । दो तीन साल के पेट्रोल का भी तो इंतजाम करना पड़ेगा ।

गेंदा सिंह- वाह भाई ज्ञान चंद तुम्हारा तो इंतजाम हो गया । पर मेरी साईकिल को कौन खरीदेगा । वह तो अभी मात्र 32 साल ही पुरानी है । चुनाव में तो नहीं, हॉं एक बार दंगे में  जरूर फंस गई थी, सो बेचारी 15 दिन तक थाने में पड़ी रही । पुलीस वालों ने 15 दिन इस पर खूब सवारी ठोंकी । वापस आने पर 200 रूपये ओवरहालिंग में लगे सो अलग ।

ज्ञानचंद- भाई गेंदा सिंह जी आज कल इतने एक्सीडेंट होते हैं उसकी एक बड़ी वजह है कि लोग-बाग पी-पा कर गाड़ी चलाते हैं । अब ऐसे ही जहाज भी उड़ाने लगे तो हो गया । अपना तो मरेंगे ही, जिसके सिर पर कूदेंगे वो भी बेचारा गया काम से ।

गेंदा सिंह- हॉं ये तो है ही । … एक आइडिया आया है दिमाग में । विज्ञान इत्ता तरक्की कर गया है तो एक मशीन ऐसी बनाये जो कि जहाज में हेंडिल के पास फिट हो सके । वो मशीन पायलट की नाक सूंघ कर यह पक्का करे कि ड्राईवर पी-पा कर तो नहीं आया है । जहाज का कंप्यूटर घुसते ही चेतावनी दे-दे कि नशा पत्ती करने वाले, नशा उतरने के बाद ही जहाज पर चढ़ें, नहीं तो मरे। 

ज्ञानचंद- ये आइडिया ठीक रहेगा ।

 

                         ( शकुंतला का कमरे में प्रवेश )

 

शकुंतला- यात्रियों को सूचित किया जाता है कि हमारा जहाज भटिंडा पहुंच चुका हैं, कृपया अपनी अपनी बेल्ट बांध लीजिये । बाहर का तापमान 25 डिग्री सेल्सीयस है और चाय का तापमान 98 डिग्री । लीजिये ज्ञान भईया गर्मागर्म चाय पीजिये । बहुत आसमान में उड़ चुके अब धरती पर उतरिये । (गेंदा सिंह से) शिव शंकर कब का बस्ता लटका कर तैयार बैठा है । उसको आज फिर स्कूल के लिये देरी हो जायेगी । आपकी साइकिल उसने कपड़े से रगड़ कर चमका दी है । उसको ही हवाई जहाज मान कर अब काम पर निकलिये ।

गेंदा सिंह- अरे! दस बज गये । आज फिर देरी हो गई । ये अखबार वाले भी कहॉं कहॉं की उड़ा कर ले आते हैं और हम लोग भी हंस की चाल चल देते हैं ।

ज्ञानचंद- हॉं गेंदा सिंह जी ऐसी खबरें तो हर दिन निकला करती हैं कि पानी से चलेंगी कारें, हवा से चलेंगी गाड़ियां । पर जब तक चलेंगी हम लोग दादा-नाना बन चुके होंगे ।

गेंदा सिंह- और हम लोग अभी से ही ख्याली पुलाव पका कर खाये जा रहे हैं । चल भइये ज्ञान चंद तेरे को भी तो ऑफिस की देर हो रही होगी ।

ज्ञानचंद- हॉं हॉं, चलता मशीन । जरा चाय तो पी लूं । आपके जहाज के चक्कर में मैं तो अपनी मर्सडीज़ ही बेचने जा रहा था । उसका मुकाबला भला कोई हवाई जहाज क्या कर सकता है । न पेट्रोल की जरूरत और न लाइसेंस की । …..वाह भाभी, आपकी चाय का भी जवाब नहीं । ऐसी कड़क चाय तो दार्जलिंग वालों को भी नसीब नहीं होती होगी ।

 

        (साइकिल की घंटी की आवाज)

 

शिव शंकर- पापा जल्दी चलिये । आज फिर स्कूल को देरी हो गई ।

गेंदा सिंह- ओये ठहर जा अपने बाप के पुत्तर । मुझे पैजामा तो पहन लेने दे ।

                 (उड़ते हुये जहाज की आवाज )

 लेखक: के एम मिश्र

5 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi achhi hain , main ek voice over artist hun krupya mujhe meri awaz mein bolni hain . anumati mil sakti hain, main apka pura vivran dunga,

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  3. इस नाटक को आकाशवाणी इलाहाबाद के लिए श्री कृष्ण मोहन मिश्र जी ने लिखा था. नेट के माध्यम से दर्जनों बार इस स्क्रिप्ट का मंचन किया जा चुका है और यू ट्यूब पर इसके कई संस्करण मिल जायेंगे....आप भी इसका इस्तेमाल करिए पर लेखक के नाम का जिक्र ज़रूर करियेगा क्योंकि नेट पर ये स्क्रिप्ट बहुत बार इस्तेमाल की गयी है और लोग इसके मूल लेखक को जानते हैं इसलिए छिपाना मुश्किल होगा...

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  4. हेल्लो, मधुकर जी , में शोर्ट मूवीज क्रिएट करता हु.मेरे पास कई लेखकों की कहानी है लेकिन मुझे मन की कहानी नहीं मिलाती है.कही तो लेडीस की प्रोब्लम होती है तो कही २ महीने के बच्चे की.....लेखक लोग मेरे लिए बहूत बार शोर्ट मूवी लिखे है लेकिन वो बहूत हार्ड स्टोरी बना देते है जिससे में क्रिएट करने में असमर्थ रहता हु.मुझे याहं पर मन की शोर्ट मूवीज मिली है. अगर आपकी इजातत हो जाये तो आपकी मेरा और मेरी टीम की तरफ से आपको बहूत सुक्रिया........

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