काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

मुंशी इतवारीलाल और बांझ बहू (हास्य नाटक)

बाबूलाल : (बड़बड़ाते हुये) एक हजार एक सौ मरतबा समझा चुका हूँ, पर वाह रे तिरिया ! कान पर जूं नहीं रेंगती ।

सतीश : (आवाज लगाकर) क्या बात है बाबूलालजी, सुबह सुबह लालटेन हो रहे हो ! बैठक में आओगे या अंदर ही भाषण देते रहोगे ।

बाबूलाल :(पास आते हुये) आया सतीश बाबू ! भाषण नहीं दे रहा हूँ  । अपने कर्म को रो रहा हूँ  । मगर इस घर में मेरी कोयी सुने, तब न । बताइये, एक हजार एक सौ एक मरतबा कोई बात कहूँ  तो उसका असर क्यों नहीं होता ।

सतीश : वाकई यह ताज्जुब की बात है ! हजार बार कहने से तो मंत्र से भी  सिद्ध हो जाता है ।

बाबूलाल : आप ही देखिये न सतीश बाबू ! मैंने हजार बार अपनी बहू से कह दिया कि सुबह सुबह जब मैं तिजोरी खोलकर लक्ष्मीमैया के दर्शन करता हूँ,  उस वक्त मेरे सामने न पड़ा करे । पर वह है कि ‘बाबूजी चाय’ कह कर छिपकली की तरह सामने कूद पड़ती है । कसम भगवान की, इतना गुस्सा आता है कि मेरे माथे में चाय की केतली उबलने लगती है ।

सतीश : कमाल है जनाब ! कोयी सुबह सुबह चाय न मिलने पर गुस्साता है और आप चाय देखकर भड़कते हैं ।

बाबूलाल : हॉं मैं भड़कता हॅूं । मुझे तिजोरी खोलते वक्त बहू का आना कतई पसंद नहीं ।

सतीश : क्यों क्या वह तिजोरी पर हाथ साफ कर देती है ।

बाबूलाल :  नहीं जी ! आप तो जानते हैं,  साल के साल गुजरते जा रहे हैं,  पर उसकी कोख फलने का नाम नहीं लेती । घरवाली कहती है कि वह बॉंझ है । मुहल्लेवाले उसकी छांव बरकाने लगे हैं । ऐसा अशुभ चेहरा देखने को क्या मैं ही बचा हूँ  ।

सतीश : अच्छा तो यह बात है । मैंने तो सोचा था कि शायद लड़के-बहू में बनती नहीं है ।

बाबूलाल : बनती क्यों नहीं । अरे सतीश भैया, बनती तो ऐसी है कि गुड़ और चींटा मात खा जाये । पर भैया, ऊसर में कहीं दूब जमती है । मेरी ऑंखे तरस गईं चांद से पोते का मुंह देखने के लिये । वह दिन आता तो मैं क्या नहीं करता । (लम्बी सांस भरकर) पर किस्मत को क्या कहूँ  ।

सतीश : (जोश में) आप भी बाबूलाल जी, मर्द हो कर किस्मत का रोना रोते हैं । जो किस्मत पर काबू न पाये, वह भी कोयी इंसान है ।  बहू बांझ निकल गयी तो उसका क्या रोना । हुमक कर लड़के की दूसरी शादी कर डालिये । देखिये, एक लड़की मेरी निगाह में है ।

बाबूलाल : यही तो रोना है सतीश बाबू ! लड़के पर अपना काबू जो नहींहैं । वह दूसरी शादी की बात सुनकर ऐसा मौनी बाबा बन जाता है गोया मुंह में जबान ही न  हो ।

सतीश : वाह बाबूलाजली ! आप क्या लड़के को बेशर्म समझते हैं, जो वह आपके सिर चढ़कर हामी भरे । आप शादी का डौल तो बैठाइये ।

बाबूलाल : क्या डौल बैठाऊॅं ! ऐसे में कौन भला आदमी ऑंख मूंदकर लड़की देगा । पड़ोसी हैं,  समाज है और सबसे ऊपर मुंशी इतवारी लाल की लताड़ का डर है ।

सतीश : देखिए बाबूलालजी, समाज और मुंशी इतवारीलाल को तो अपने अंगूठे पर रखिये । रही लड़की की बात, सो मेरी निगाह में आपकी बिरादरी की ही एक लड़की है । रूप-गुण में लक्ष्मी है, पर हॉं, जरा गरीब है ।

बाबूलाल : (उत्सुकता से) ऐसा । तो फिर देर क्या है सतीश बाबू ! नेकी और पूछ पूछ । आप बात क्यों नहीं चलाते ।

सतीश : बात तो पक्की ही समझिये । बस, आप एक बार चलकर लड़की देख लीजिये । लड़की क्या है, कच्चे दूध का कटोरा समझिये ।

बाबूलाल : तो चलिये, आज ही चलता हूँ ।

सतीश : चलिए, पर एक बात समझ लीजिये । लड़की गरीब घर की है, इसलिये कुछ मिलने का डौल नहीं है ।

बाबूलाल : आप मुझे क्या पैसा का लालची समझते हैं ।

सतीश : नहीं, मैं आपको साधु समझता हूँ । पर सारी बात पहले ही साफ कर लेना अच्छा रहता है । और हॉं, अच्छी बहू के लिये अगर आपके कुछ रूपये खर्च हो जायें, मेरा मतलब है – गरीब लड़की वाले की कुछ मदद करनी पड़े तो आप तैयार हैं ।

बाबूलाल : (आश्चर्य से) जी…….ई……ई……. आप चाहेंगे तो वह भी करूंगा ।

सतीश : (अकड़ कर) मैं कुछ नहीं चाहता । मैं तो सिर्फ दोस्तों की मदद और खिदमत करना चाहता हूँ  । पर होम करते हाथ जलते हैं, इसलिये सारी बात दो टूक कह दी । नहीं तो बाद में आप मुंशीजी के सामने रोना रोने लगें ।

बाबूलाल : मुंशीजी को छोड़िये सतीश बाबू ! वो तो हमेश लेक्चर झाड़ते रहते हैं । सातवें आसमान से बातें करते हैं । उन्हें कभी कभी आदमी की कसक नहीं सालती । मैं इस बारे में उन्हें बताना भी नहीं चाहता ।

                                           दृश्यांतर

पंडितजी : मुंशीजी कुछ भी कहें बाबूलाल, पर तुम्हारी बात में दम हैं । शास्त्र में भी लिखा है कि स्त्री बन्ध्या हो तो पुरूष को दूसरा विवाह कर सकता है ।

बाबूलाल : आप धरम की बात कहते हैं पंडितजी, पर यही बात मुंशीजी को क्यों नहीं समझाते । वे तो मुहल्ले में मेरा उठना बैठना मुश्किल किये हुए हैं ।

पंडितजी : मुंशीजी दीख पड़ें तब न । मैं क्या दीवारों को समझाऊॅं ।

मुंशीजी : (दूर से) दीवारों को मत समझाइए पंडितजी ! बाबू बाबूलाल जी तो आपके पास ही मौजूद हैं । उन्हें कथा सुनाइए । ये आपको दच्छिना  देंगे भगवान के फजल से ।

पंडितजी : (हंस कर) बाबूलाल को तो सुना ही रहा हूँ  मुंशीजी । आप भी आकर बैठ जाइए तो प्रसादी मिल जायेगी ।

मुंशीजी : यह परसादी बिरहमन देवता को ही मुबारक  हो ।  मुझे इस कुफ्र के धन्धे में हाथ नहीं डालना है । बाबू बाबूलालजी की अक्ल तो घास चरने गई है ।

पंडितजी : बेचारे बाबूलाल पर आप व्यर्थ नाराज हो रहे हैं । इन्हें तो अपने वंश के लोप होने का खतरा सता रहा है ।

मुंशीजी : (आवेश से) अभी तो बाबू बाबूलालजी के लड़के की शादी हुए जुमा जुमा आठ दिन हुए हैं । दोनों अभी अल्हड़ हैं । दोनों के हंसने खेलने के दिन हैं । पर आप लोग हैं कि बच्चों की हल्की फुल्की जिंदगी पर खामखॉं बोझ डालने पर तुले हैं ।

बाबूलाल : तो क्या मैं पोते का मुंह देखे बिना ही मरूंगा मुंशीजी ।

मुंशीजी : आप अभी नहीं मरेंगे क्योंकि आप हट्टे कट्टे मुस्टंडे हैं । हॉं, आप बेटे और बहू को बेमौत जरूर मारेंगे । मैं पूछता हूँ  लड़का लड़की होने के बारे में मियॉं बीबी नहीं सोचते तो आप क्यों बीच में टांग अड़ाते हैं । ये निहायत निजी मामले हैं भगवान के फजल से ।

बाबूलाल : लड़का नादान है, वह कुछ नहीं समझता । बहू बांझ है, पर लड़का उसके रूप पर लट्टू है ।

मुंशीजी : मैं आपकी यह बाकवास तब तक नहीं मानूँगा, जब तक आपके लड़के से बात नहीं कर लूँ ।

सतीश : लड़के की मर्जी ही सब कुछ हो गयी । बाप की मर्जी कुछ नहीं । क्यों मुंशीजी ।

मुंशीजी : नहीं, बाप की मर्जी खुदाई फरमान है सतीश बाबू ! आप यह शादी करवा दीजिये । पर लड़के ने नहीं चाहा तो बाबू बाबूलालजी को पोता कैसे खिलाने को मिलेगा । उस वक्त आप ही गोपाल कन्हैया बनकर बाबू बाबूलालजी की गोद में उछल जाइयेगा ।

सतीश : देखिये, आप मेरा नम बिल्कुल मत लीजिए । मैं यों भी बहुत बदनाम हो चुका हूँ । मेरा इन बातों से कोई वास्ता नहीं ।

मुंशीजी : मुझे मत चराइए सतीश बाबू, बंदा उड़ते परिंदे की जात पहचानता है । आप हरफनमौला हैं । आप लोहे में भी हैं और लुहार में भी ।

सतीश : (गुस्से से) देखिये मुंशीजी, आप मुझे बदनाम करने पर तुले हें तो लीजिए मैं ही शादी करवा रहा हूँ । आप क्या कर लेंगे ।

मुंशीजी : आप मुंशी इतवारीलाल वल्द बुधवारीलाल मीरबख्शी को चुनौती दे रहे हैं तो कान खोलकर सुन लीजिए – मैं यह शादी किसी कीमत पर नहीं होने दूंगा भगवान के फजल से ।

                                             दृश्यांतर

पंडितजी : (रूआंसे स्वर में) बाबूलाल गजब हो गया, मैं तो कहीं का न रह गया ।

बाबूलाल : (घबराये स्वर में) क्या  हुआ पंडितजी ! जल्दी बताइए, मेरा जी धक धक करता है ।

पंडितजी : अरे वो समधीजी महीनों पहले बिटिया को घर पहुंचा गये थे । मैं उस वक्त कुछ न समझा कि क्या बात है । लड़की ने भी कुछ नहीं बताया । आज समधीजी की चिट्ठी आयी है । वे लिखते हैं कि अपने लड़के की दूसरी शादी करने जा रहे हैं ।

सतीश : शादी करने जा रहे हैं, क्यों ।

पंडितजी : लिखते हैं मेरी लड़की बांझ हैं, उनका वंश डूब जाने का खतरा है । उन्होंने बरसों इंतजार किया, अब लड़के की दूसरी शादी करेंगे । तिलक भी चढ़ गया है ।

बाबूलाल : यह तो सरासर जुर्म हैं पंडितजी । हम यह अन्याय सहन नहीं करेंगे ।

पंडितजी:  मेरी मदद करो बाबूलाल, वर्ना मैं गरीब आदमी तो बेमौत मर जाऊॅंगा । तुम इसी वक्त मेरे साथ चलो । हमें यह विवाह रोकना ही पड़ेगा ।

बाबूलाल : इस वक्त ! पर इस वक्त तो मैं जरूरी काम में फंसा हूँ  । लड़कीवाले मेरे लड़के को देखने आ रहे हैं । सतीश बाबू ने सारा इंतजाम किया है ।

पंडितजी : लड़कीवालों को सतीशबाबू बैठा लेंगे । इस वक्त तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा वर्ना, मैं कुएं में कूद कर जान दे दूंगा ।

बाबूलाल : ऐसा मत कहिए, मैं अभी चलता हूँ । पर मुझसे यह सब कैसे होगा । यह काम तो मुंशीजी के ही बस का है ।

पंडितजी : मुंशीजी तो उसी दिन से ऐंठे हुए हैं । उन्हीं के पास चलो । तुम्ही उनको समझाओ । मेरा तो दिमाग चकरा रहा है ।

बाबूलाल : अच्छा चलिए । सतीश बाबू ! आप तब तक लड़कीवालों को सम्हालिएगा ।

सतीश : सम्हाललूंगा । पर आप जल्दी आइएगा ।

                          दृश्यांतर

पंडितजी : आप समधीजी को खूब समझा दीजिएगा मुंशीजी !  मैं सुदामा ब्राह्यण नहीं परशुराम हूँ  । मेरे सोंटे ने बहुत तेल पी रखा है । मैंने समधीजी का पैर पूजा है, सिर नहीं पूजा, हॉं ।

मुंशीजी : यह तो हुई धमकी । पर समधीजी भी अगर आपकी तरह शास्तर समझाने लगे, बांझ की दलील पर शादी की हिमायत में इश्लोक बोलने लगे तो मैं क्या जवाब दूंगा । यह भी समझा दीजिए भगवान के फजल से ।

बाबूलाल : शास्त्र-धरम को ताक पर रखदीजिए मुंशीजी ! हम लोग कोई घास फूस नहीं । जो समधीजी इस तरह से हमारी लड़की छोड़ देंगे । पंडितजी ने शादी की है, कोई खिलवाड़ थोड़े ही किया है ।

मुंशीजी : यह आप कह रहे हैं बाबू बाबूलालजी । पंडितजी आपके दोस्त हैं, संगी हैं, इसलिए उनकी लड़की का दर्द आपका अपना दर्द है । पर आप भूल गये कि आप जिस बहू को ब्याह कर लाये हैं, उसके भी एक बाप है और उस बाप के दिल में भी अपनी बेटी के लिये दर्द है ।

बाबूलाल : (हकलाकर) पर……..मैं………..मेरी बहू बांझ है मुंशीजी ! सच ।

मुंशीजी : बांझ तो पंडितजी की बेटी भी हो सकती है । पर इसका जवाब मैं फिर दूंगा  । अभी तो समधीजी से मिलना जरूरी है भगवान के फजल से ।

                                       दृश्यांतर

समधीजी : मैं आपका अनुरोध टाल नहीं सकता मुंशीजी ! आप सज्जन पुरूष हैं । पर मैं अपना फैसला नहीं बदल सकता । मैंने तिलक ले लिया है और लड़के की शादी करके रहूंगा ।

पंडितजी : आप यह शादी करेंगे तो प्रलय मच जायेगा समधीजी ।

बाबूलाल : हमारी लड़की के आंसू गिरे तो हम खून गिरा देंगे ।

समधीजी : आप लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । मैं जाता हूँ  ।

मुंशीजी : अरे, अरे, अभी तशरीफ लाये । अभी रौनक अफरोज हुए और अभी चल दिये । यह कैसे हो सकता है समधीजी ! मुंशी इतवारीलाल मीरबख्शी के बैठक से हुजूर नाराज हो कर जायेंगे तो गुलाम क्या मुंह दिखायेगा भगवान के फजल से ।

समधीजी : तो आप इन लोगों को समझा दीजिए कि मेरे मुंह न लगें ।

मुंशीजी : मुंह तो ये जरूर लगेंगे समधीजी ! हमारा आपका रिश्ता ही ऐसा है । हमारी लड़की आपकी बहू है । उसे दुःख होगा तो हम -आप दोनों दुखी होंगे ।

समधीजी : तो गोया आप चाहते हैं कि मैं बांझ को घर बैठाये रहूँ  और घर का दीपक बुझ जाने दूँ ।

मुंशीजी : बांझ कौन है – जरा हम भी तो सुनें भगवान के फजल से ।

समधीजी : मेरी बहू बांझ है ।

मुंशीजी : और अगर मैं यह अर्ज करूं कि वह बांझ नहीं है तो ।

समधीजी : बांझ नहीं है तो उसके संतान क्यों नहीं हो रही है ।

मुंशीजी : हॉं, यह सवाल मौजूं है और इसका जवाब आपके लड़के यानी हमारे दामाद ने इस खत में दिया है । इसे पढ़ लीजिए । इसमें बरखुरदार साफ लिखते हैं कि उनकी बीबी यानी हमारी लड़की और आपकी बहू में कोई खराबी नहीं । वह सब तरह से ठीक है, पर चूंकि बरखुरदार को अभी नौकरी नहीं मिली है और वे अपने बाप यानी हुजूर, समधी साहब पर बोझ नहीं बढ़ाना चाहते, इसलिये उनके लड़के नहीं होते ।

समधीजी : (परेशान होकर) पर ये कैसे हो सकता है । उसके चाहने से लड़के कैसे रूक सकते हैं ।

मुंशीजी : इंसान की अक्ल और साइंस के करिश्मे से सब कुछ हो सकता है समधीजी ! आप गुजरे जमाने के आदमी हैं । आपको क्या खबर कि आपका लड़का और आपकी बहू परिवार नियोजन का सहारा लेते हैं ।

समधीजी : तो यह बात है ! पर यह तो नासमझी का काम हुआ। परिवार नियोजन उसे करना चाहिए, जिसके चार-पांच बच्चों का परिवार हो । यहॉं तो परिवार ही डूबने को हो रहा है और ये लोग हैं कि………

मुंशीजी : यही तो मुश्किल है समधीजी ! परिवार नियोजन का मतलब ज्यादा बच्चों की रोकथाम नहीं । अपनी मर्जी और जरूरत के मुताबिक परिवार बनाना है । इस मामले में हमारे बच्चे ज्यादा दूरंदेश और समझदार हैं । बेहतर है हम नयी पीढ़ी के मामले में हाथ न डालें और बांझ या अशुभ का सदियों पुराना ढिंढोरा पीटना बंद कर दें । यह ढोल अब बहुत बेसुरा हो चुका है ।

बाबूलाल : अब तो आपको विश्वास हुआ समधीजी कि हमारी लड़की बांझ नहीं है ।

मुंशीजी : समधीजी  को तो यकीन हो गया बाबूलालजी, पर अभी आपको यकीन होना बाकी है ।

बाबूलाल : मुझको ।

मुंशीजी : जी हॉं, आपको ।  चूंकि आपकी अक्ल की भैंस अभी तबेले पर नहीं पहुंची है, इसलिये आप भी कान खोल कर सुन लीजिए ! आपकी बहू भी बांझ नहीं है । आपका लड़का भी वही कर रहा है, जो हमारा दामाद कर रहा है भगवान के फजल से ।

बाबूलाल : ओह ! तो यह बात है !

मुंशीजी : जनाब, यही बात है । इसलिए आपने सतीश बाबू को लड़की खरीदने के लिए जितना रूपया  दिया हो, उसे वापस ले लीजिए भगवान के फजल से ।

बाबूलाल : म….म…मैंने…..रू…रू….रूपये ।

मुंशीजी : आपने रूपये भी दिये थे और जेवर भी दिये थे । जेवर तो आपके लड़के ने वापस लाकर मेरे पास जमा कर दिये हैं । पर नकदी वसूलना आपका काम है ।

बाबूलाल : मैं अभी जाता हूँ  । सतीश अभी घर पर ही होगा ।

मुंशीजी : फौरन जाइए, और उससे लड़कीवालों का रूपया भी वसूल लीजिएगा । क्योंकि उसने लड़की की गरीब मॉं से भी पैसा ठग लिया है भगवान के फजल से ।

                                               समाप्त

लेखक : श्री नरेश मिश्र

2 टिप्‍पणियां:

  1. bahut acchi hain maine ise apni awaz mein record karni chai hain yadi apki anumati mil jatee

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  2. ये नाटक आकाशवाणी के हवामहल कार्यक्रम के तहत दर्जनों के बार आकाशवाणी मुम्बई से प्रसारित हो चूका है. यहाँ तक की ये आज भी विविधभारती से कभी कभी न प्रसारित होता रहता है अतः इसकी कॉपी निवेदन है की न करें क्योंकि लाखों करोड़ों लोगों ने इसे पहले ही सुन रखा है बेह्रारीन कलाकोरों की आवाज के साथ.....और इसका कॉपी राईट श्री नरेश मिश्र जी के पास है...

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