शुक्रवार, 17 नवंबर 2017
ग़ालिब छूटी शराब
इलाहाबाद में मेरे पास अपना कुछ भी नहीं था, जो कुछ था कर्ज का था। यही गनीमत थी कि मैं कर्ज की मय नहीं पीता था। इलाहाबाद आए एक वर्ष भी न हुआ था कि मेरा पहला कथा संग्रह ‘नौ साल छोटी पत्नीा’ प्रकाशित हुआ। उसमें लेखक परिचय कुछ इस प्रकार दिया हुआ था – रवींद्र कालिया, उम्र तीस साल, कर्ज पैंतीस हजार। इस परिचय के बावजूद यहाँ के लेखक बंधु मुझे धन्नाी सेठ समझते थे, जबकि मैं बीड़ी-सिगरेट को मोहताज था। मुझमें एक खामी यही थी कि मैं अपनी गुरबत का बखान नहीं करता था, इसका नतीजा यह निकला कि वक्तो जरूरत बिरादरी के लोग प्रायः संकट में डाल देते। मेरी स्थििति का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि शादी के बाद हम मियाँ-बीवी अलग-अलग रहने को मजबूर थे। ममता उन दिनों मुंबई के महिला विश्वबविद्यालय एस.एन.डी.टी. में अंग्रेजी की प्राध्याबपिका थी। वह होस्टसल में अकेले रह रही थी, मैं अश्क जी के यहाँ तंबू गाड़े हुए था। मैं अश्क जी के भरे-पूरे परिवार के साथ रह रहा था। आवास और भोजन की कोई समस्याा नहीं थी, जेब खर्च के लिए ममता मनीआर्डर भिजवा देती थी, मगर मेरी मुफलिसी का एहसास किसी को नहीं था। मुंबई से मैं अपने साथ रेफ्रिजरेटर और कुकिंग गैस का कनेक्श न लाया था। इलाहाबाद में उन दिनों इन दोनों उपकरणों का ज्यादा प्रचलन नहीं था। अश्क जी के यहाँ भी चूल्हेा पर खाना बनता था। कौशल्या जी को गैस काफी सुविधाजनक लगी। रेफ्रिजरेटर सीधा रानी मंडी पहुँच गया था। घड़े का ठंडा पानी पीनेवाले रेफ्रिजरेटर का पानी पी कर मुझे कोई रईसजादा समझ लेते, जबकि मुंबई के जीवन में कामकाजी दंपती के लिए रेफ्रिजरेटर एय्या शी नहीं बुनियादी जरूरत थी। यह विरोधाभास ही था कि मुंबई का एक गरीब लेखक इलाहाबाद का संघर्षशील लेखक नहीं दिखाई दे रहा था। दोनों शहरों की जीवन शैली और मूल्योंल में इतना अंतर था कि जब आकाशवाणी ने मेरे प्रसारण शुरू किए तो पाया कि मेरी फीस इलाहाबाद के वरिष्ठं लेखकों के बराबर थी। इलाहाबाद में लेखकों को जितनी फीस मिलती थी उससे मुंबई में तो लेखकों का टैक्सी भाड़ा न निकलता।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कल की बात पुरानी : भाग -1
पृथ्वी पर तीन रत्न हैं – जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं । – संस्कृत सुभाषित ब...
-
मित्रों, हास्य नाटक के इस पेज पर सबसे ज्यादा हिट्स आती हैं. नेट पर हास्य नाटक की स्क्रिप्ट वैसे भी कम है. बहुत से विद्यार्थी जो की स्कूल क...
-
बाजार का सीन गुब्बारे वाला, चुरमुरे वाला, हींग,इलाइची, लौंग, हल्दी, धनिया, गरम मसाले वाला, सड़क पर कपड़े बेचने वाला, फलवाला, सब्...
-
(घर की छत के ऊपर से हवाई जहाज के उड़ने की आवाज, अखबार पलटने की आवाज।) गेंदा सिंह- अरे शकुंतला सुनती हो । जरा इधर आना । शकुंतला – क...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें