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शनिवार, 18 नवंबर 2017

न्याय मोक्ष है

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कल अख़बार में एक खबर थी की सवा रूपये के लिए एक मुकद्दमा ३५ साल तक चला. खबर पढ़ कर मन रो उठा “प्राण जाये पर वचन न जाये” सौ अपराधी छूट जाएँ पर एक भी बेकसूर की बलि न चढ़े. न्याय के इंतज़ार में कितने लोग मर जाते हैं, कितने बूढ़े हो जाते है और बहुत बार पोता और उसका भी पोता न्याय के लिए लाइन में खड़ा मिलता है खेत खलिहान बेच कर, दो मुट्ठी सत्तू फांक कर. जैसे लोकतंत्र अमर है वैसे ही भारत में न्याय भी अमर है. इमारतें अमर है संसद की, कोर्ट की, विधानसभा की, प्रशासन की, बस वोट देने वाली जनता ही नश्वर है. इनका मानना है की आत्मा तो अजर अमर है. अगले जन्म में भी आईये न्याय की तलाश में और हो सके तो फिर तीसरा जन्म भी इसके इंतज़ार में गुजार दें.

यह तो मात्र एक खबर थी आपको सच्ची घटना बता रहा हूँ…मेरे पड़ोस में एक विधवा भाभी है उन्हें एक सरकारी शिक्षण संस्थान में पति की मृत्यु के बाद नौकरी मिली आज से २२-२३ साल पहले. आज से १६ साल पहले सन २००० में एक मुकद्दमा शुरू हुआ एक ग्रुप को लेकर और मेनेज्मेंट ने सब को टेम्परेरी एम्प्लोयी मान लिया. करीब दो ढाई सौ लोग थे तब. उनका मुकद्दमा उनकी यूनियन लड़ रही थी पिछले १६ साल से. १६ साल में बहुत से लोग मर गए, रिटायर हो गए. बहुत से जज साहब आये मुकद्दमा सुने और चले गए, मुकद्दमा चलता रहा. कर्मचारियों की भूखे मरने की नौबत आ चुकी थी की अचानक जज साहब ने एक मामूली से नुक्ते पर कहा ओह ! इस मामले में यूनियन को मुकद्दमा लड़ने का कोइ हक नहीं है. सभी लोग इंडिविजुअल केपेसिटी में फिर से रिट फाइल करें और उन्होंने मुकदमा डिसमिस कर दिया. दो कर्मचारी जो पैरवी कर रहे थे न्याय के इंतज़ार में वही कोर्ट में बेहोश हो गए. वकील जज साहब की हाँ में हाँ मिलाता और मन ही मन रुपये गिनता की बचे हुए जिंदा लोगों से फिर से कितनी फीस वसूली जाएगी दूसरी कोर्ट में भाग गया.

कोर्ट अमर है. न्याय पवित्र है. न्याय मोक्ष है, न्याय ईश्वर का प्रकाश है, न्याय ब्रह्मनाद है. न्याय के लिए हिमालय पर भागीरथ की तरह एक पैर पर खड़े हो कर १००० साल तक तप करना पड़ेगा. कलियुग का आदमी १५-२० साल में ही थक कर मर जाता है. जज साहब को यह याद नहीं आया की १६ साल में २५० में ९० लोग ही बचे है आज. बाकी या तो रिटायर हो गए या मर गए. पिछले हफ्ते ही उनमे से एक कर्मचारी महिला केंसर से मर गयी इलाज और पवित्र न्याय की आस में. अब उसकी आत्मा रिट करेगी.

चलिए मन हल्का करने के लिए आपको वकील साहब पर एक चुटकुला सुनाता हूँ. एक बड़े नामी वकील साहब थे. ३५-४० साल की प्रेक्टिस हो गयी थी. अब उनका बेटा भी वकालत में आ चुका था. एक बार वकील साहब को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा. उन्होंने बेटे को खूब समझाया की कोर्ट में क्या क्या करना है. बेटा भी समझ गया.

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हफ्ते भर बाद वकील साहब शहर वापस लौटे. लड़के ने खुश हो कर स्वागत किया पिता का. फिर धंधे की बात होने लगी. बेटे ने बताया पिताजी जिस मुकद्दमे में आप पिछले २५ साल से कोई ऑर्डर नही करा पाए थे वो मैंने कल ही निपटा दिया. हम जीत गए हैं. क्लाइंट तो बहुत ही खुश था. सुन कर वकील साहब ने माथा पीट लिया और कहा तूने गौ हत्या कर दी. अरे उसी मुकद्दमे से तो घर का खर्च चलता था. २५ साल से दूध दे रही गाय को तूने मार डाला और खुश हो रहा है. अभी तुम्हे वकील बनने में बहुत समय लगेगा.

मुकद्दमा अजर अमर है वादी नश्वर है. फाइल अमर है क्लाइंट बदलते रहते है. न्यायपालिका का मन्त्र है “सत्यमेव जयते”. यहाँ सत्य की सदैव जीत होती है क्योंकि उसे अधिकतर मामलों में कोई अपने गंदे हांथों से छू भी नहीं पाता है. सत्य सदैव निश्कलंक, श्वेत, प्रकाशमय दूर आकाश में टिमटिमा रहा है जहाँ पक्षकारों के हाँथ कम ही पहुँचते हैं.

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