71 के बाद 99 (28 साल का अंतर) एक पूरी पीढ़ी के उग आने का समय । एक पूरी पीढ़ी पैदा होकर जवान हो गई, पाकिस्तान में भी, हिंदुस्तान में भी । युध्द पढ़ा था किताबों में, सुना था बुजुर्गों से, और देखा था टी.वी. पर युध्द आधारित कार्यक्रमों में । कारगिल: हमारी ताज़ी दोस्ती का प्रतीक (लाहौर यात्रा), 28 साल के लम्बे अन्तराल के बाद तूफान का प्रतीक, 50 साल से सुलगती राख में एक चिंगारी का प्रतीक । यह चिंगारी अचानक हवा पाकर शोला हुई, भभकी और हमारे 400 जवानों के खून से अपनी प्यास बुझा कर ठंडी हो गई । कारगिल नई पीढ़ी के लिये एक नया अनुभव था ।
इन दो महीनों में देश में राष्ट्रप्रेम का भीषण ज्वार आया । वीर सैनिकों को रक्तदान के लिये इतनी भीड़ जुटी की इतना खून कैसे, कहाँ सुरक्षित रखें एक प्रश्न था । ज़ज्बा सिर्फ एक कि हमारा लहू उस लहू से मिल जाये जो हिमालय पर काम आया । अरबों रूपये शहीदों के परिवारों के लिये दान दे दिये गये । सहारा परिवार ने 300 सैनिकों के परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली । सारा देश आज सैनिकों के साथ है ।
सरहद के उस पार से गलतफहमियों और सरकारी अफवाहों ने कारगिल पचड़ा शुरू किया । पाकिस्तान और उसकी सेना को यह गलतफहमी है कि किराये के बम और मिसाइलों से वह भारत को फतह कर लेगा । 28 साल में वहां के बूढ़ों की याद्दाश्त कमज़ोर पड़ गई और उनके बच्चों ने गलतफहमियां पाल ली कि अब तो इंडिया गया समझो । नादान पड़ोसी । हिंदुस्तान कोई अफ्गानिस्तान नहीं है । एक अरब में से 1 प्रतिशत भारतीय भी खड़ा हो गया तो पाकिस्तान नक्शे में ढ़ूढ़ते रह जाओगे । ”अरे यहीं कहीं तो था इंडिया और इरान के बीच में । कहाँ गया ?”
उनको पड़ी है कि एक युध्द में कश्मीर झपट लेंगे । हम राह देख रहे हैं कि बंग्लादेश हो गया, अब पाकिस्तान भी निपटा दें । कारगिल को युध्द नहीं कहा जा सकता है । लगभग 100 किमी. के अखाड़े में डंड बैठक हो गई । पाकिस्तान को अक्ल आ गई कि अपनी औकात पंजा लड़ाने की भी नहीं है अगर कुश्ती हुयी तो एक भी हड्डी साबूत नहीं बचेगी । अमेरिका से चंदा मांगकर जैसे तैसे रोटी चलती है । इंडिया ने ठोंक दिया तो अस्पताल का बिल भी वल्ड बैंक खाते में जोड़ लेगा । ( या फिर कफ़न का खर्चा ) ।
नवाज शरीफ चीन गये । चीन ने कहा ‘अच्छे बच्चे लड़ाई नहीं करते । चलो इंडिया को सॉरी बोलो और कारगिल खाली करो ।’ नवाज नहीं माने । अमेरिका गये । क्लिंटन ने समझाया ‘शांति से रहना सीखो, नहीं तो पॉकिटमनी भी बंद कर दूँगा ।’ बिचारे शरीफ सोचे इंग्लैंड से भी बात कर ली जाये । उसने भी कह दिया ‘ 50 साल के बच्चे अब तो बड़े बन जाओ । ये लड़ना झगड़ना कब छोड़ोगे ? बच्चों कि लड़ाई में बड़े नहीं पड़ते । चलो कारगिल वापस करो ।’ शरीफ शराफत से पाकिस्तान लौट आये । डर भी लग रहा था कि कहीं सरहद पर हिंदुस्तान की तरफ मुँह की हुई तोपें अगर इस्लामाबाद की ओर मुड़ गईं तो उनकी खटिया खड़ी और तख्ता पलट जायेगा ।
शरीफ ने घुसपैठियों से अपील की ”मुज़ाहिद भाइयों, अब वापस आ जाओ । इंडिया डर गया है । इस्लाम कहता है कि डरे हुये को सताना गलत है । वापस आ जाओ (अगर जिंदा हो तो, लाशें हमारे किसी काम की नहीं) क्योंकि हमारा मकसद पूरा हो गया है (लात खाये बहुत साल हो गये थे, बल भर खा लिया है ) वापस आ जाओ क्योंकि अब तुमको देने के लिये राशन और गोलियां खत्म हो गई हैं और हमारी जेब भी खाली हो गई है । हमको मालूम है कि तुम बहुत बहादुरी से लड़ रहे हो पर किसी गरीब मजलूम पर जुल्म नहीं ढ़ाना चाहिये । इंडिया को सबक मिल गया है । कश्मीर मुद्दे का अन्तर्राष्ट्रीय करण हो गया है (कोई भी देश पाकिस्तान के साथ नहीं है । कश्मीर इंडिया के ही पास रहेगा ) वापस चले आओ नहीं तो इंडियन आर्मी पाकिस्तान में घुस आयेगी और हम लोगों को इरान, अफ्गानिस्तान में शरणार्थी बन कर रहना पड़ेगा
कारगिल से घुसपैठियों ने जवाब दिया । ”कमीने शरीफ, तुमने हमको धोखा दिया । हमारे पास खाने को कुछ नहीं है । गोली और गोले खा कर हमारे काफी साथी मारे गये । तुमने कहा था भारतीय कमजोर होते हैं पर वो तो हमारे बाप निकले । एक बार यहाँ से निकल भागें तो तुमको भी देख लेंगें ।” तभी वहाँ एक गोला गिरा ”बड़ाम” । ”अब क्या देखेंगे, खेल ही खत्म हो गया । आह…… मरा….रे.. ।”
युध्द खत्म हो चुका है और अब उनकी बारी है जो युध्द कभी नहीं लड़ सकते पर काठ की तलवारें लहराने में माहिर हैं । ये हैं हमारे आदरणीय नेतागण और बुध्दजीवी का लेबल चिपकाये हुये तमाम बुध्दिजीवी । कारगिल को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जायेगा पर हम देखेंगे कि कारगिल का बारूद तेरहवीं लोकसभा में काम आयेगा । पिछली 18 जुलाई रविवार को रात्रि मे एक कार्यक्रम मुंबई के फिल्मी कलाकारों ने शहीद जवानों को समर्पित किया ‘ऐ वतन तेरे लिये’ । शहीदों की आत्माओं की शांति के लिये तथा उनके दु:खी परिवारों को ढ़ाँढ़स बंधाने के लिये ‘प्यार तो होना ही था’, ‘लवेरिया हुआ’, ‘पहला नशा पहला खुमार’ आदि गाने सुनाये जा रहे थे । बीच बीच में बालीवुड के कलाकार आकर श्रध्दांजलियां दे रहे थे ।
राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित जावेद अख्तर और उनकी पत्नी शबाना आज़मी ने अपने विशाल ज्ञान का परिचय दिया और जोश में भारत की आबादी को ‘साढ़े नौ सौ करोड़’ बताया । कारगिल के शहीद आपका आरकेस्ट्रा सुनने के लिये शहीद नहीं हुये हैं । माना शहादत पर आंसू नहीं बहाये जाते पर मुजरा भी नहीं किया जाता है ।
(ये व्यंग्य अगस्त 1999 में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था ।)
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