मित्रों, व्यंग्य, साहित्य की एक गम्भीर विधा है । व्यंग्य और हास्य में बड़ा अन्तर होता है । हास्य सिर्फ हॅसाता है पर व्यंग्य कचोटता है, सोचने पर मजबूर कर देता है । व्यंग्य आहत कर देता है । सकारात्मक व्यंग्य का उद्देश्य किसी भले को परेशान करना नहीं बल्कि बुराइयों पर प्रहार करना है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक हो । सुदर्शन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, बुराइयों, कुरीतियों, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, बाजार, फिल्म, मीडिया, इत्यादि पर एक कटाक्ष है ।
“लोग पूछते हैं– क्या व्यंग्य साहित्य से सामाजिक परिवर्तन या क्रांति हो सकती है। मेरा जवाब है नहीं! पर व्यंग्य सामाजिक परिवर्तन की चेतना उत्पन्न करता है और परिवर्तन या क्रांति के लिए मानसिक तैयारी करता है।” –स्व0 – -हरिशंकर परसाई
साहित्य जो कि बड़े बूढ़ों के अनुसार हमेशा से एक ऐब रहा है और ऐयाशी के लक्षण हैं, ऐसे कुछ दुर्गुण खाकसार के अन्दर भी विद्यमान हैं । आज के समय में साहित्य सेवा वाकई में ऐयाशी है क्योंकि किताबें बहुत मॅंहगी होती हैं और इनको खरीदना हाथी पालने के बराबर या बीवी पालने के बराबर है । सुदर्शन समर्पित है हिन्दी हास्य व्यंग्य के पांच पाण्डवों को ।
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स्व. हरिशंकर परसाई
स्व. शरद जोशी
स्व. रवीन्द्रनाथ त्यागी
स्व. मनोहर श्याम जोशी
श्री श्रीलाल शुक्ल
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