काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

यादों के झरोखें से…..

I Next Article on Sudarshan

मित्रों यह पोस्ट सन २००९ की है. तब हमें ब्लॉगर हुए एक साल हो चुका था. किसी लेखक के लिए उसके शुरुआती दिनों में किसी अखबार के पृष्ठों पर छपना किसी पद्म भूषण से कम नहीं होता है. हालाँकि किसी अख़बार में मैं पहली बार १९९४  में छपा  था पर आज भी अगर कहीं नाम प्रकाशित हो जाता है तो ख़ुशी तो होती ही है लेकिन उतनी नहीं जितनी पहले हुआ करती थी…..२००९ में आई नेक्स्ट में ब्लॉग सुदर्शन की चर्चा हुई थी. आज न जाने कैसे सवेरे सवेरे उसकी याद आ गयी…..सोचा आपको भी उस वक्त की लिखी वह पोस्ट पढवा दूं और साथ ही वह खबर भी…

“इसका तो मुझे पूर्ण विश्वास था कि कभी न कभी मुझे कुख्याति मिलेगी पर ब्लागिंग का एक साल पूरा होते होते मिल जायेगी ऐसी उम्मीद नहीं थी । स्व0 शरद जोशी जी से चार आने, श्रीलाल शुक्ल से चार आने लेकिन स्व0 हरि शंकर परसाई जी से आठ आने प्रभावित होने के कारण मेरे व्यंग्य लेखन में ज़हर की मात्रा अधिक होती है । स्व0 परसाई जी अपनी इस विशेषता के कारण भुक्तभोगी रहे हैं । उनके विरोधियों की संख्या उनके चाहने वालों से कम नहीं थी जो उन्हें ताड़े रहते थे । भारत के उदार लोकतंत्र में हम व्यंग्य लिखने वाले खूब मुंह फाड़ लेते हैं । यही अगर किसी दूसरे ऐशियाई मुल्क में जन्म लिये होते तो इतने पुलिसिये डंडे सरकारी सब्सिडी के साथ मिलते की हरामखोरी भूल कर कोई ढंग का धंधा करते । वो तो भला हो श्रीमती इंदिरा गांधी का जिन्होंने कुछ समय के लिये इमरजेंसी की व्यवस्था कर दी थी नहीं तो बंग्लादेश और पाकिस्तान के लेखकों पर क्या गुजरती है इसका प्रेक्टिकल अनुभव कभी न हो पाता । तस्लीमा नसरीन और सलमान रश्दी बनते देर ही कितनी लगती है । खैर ।

अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता हूं कि हास्य-व्यंग्य के नाम पर विध्वंसक, कुत्सित, घटिया लेखन करूं । हास्य-व्यंग्य के नाम पर लोगों को बरगलाऊं पर न जाने क्या राजीव ओझा जी को ”सुदर्शन” में अच्छा लग गया कि छाप दिये ”आई-नेक्स्ट” के ”ब्लाग-श्लाग” कालम में । अब उनके दृष्टिदोष को दोष देने से क्या फायदा, जो होना था सो हो चुका है । लीजिये आप भी पढ़िये ।


 Reading_news –> सम्पादक जी ने कहा था की आज बच्चों के पेज पर वो मेरा लेख छापेंगे लेकिन पूरा अखबार पलट डाला पर लेख नही मिला….पूछूंगा तो वही पुराना बहाना टरका देंगे की विज्ञापन ज्यादा आ गए थे इसलिए अंतिम समय पर कई लेख छांटने पड़े…अगली बार छाप देंगे…


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कल की बात पुरानी : भाग -1

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं – जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं । – संस्कृत सुभाषित   ब...