काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

सेनापति संत

 लेखक: नरेश मिश्र 


संगीत धुन उभर कर पृष्ठ भूमि में जाती है ।

कवि रहीम छंद पढ़ते हैं ।   

             छंद –      पट चाहे तन पेट चाहत छदन मन,

                       चाहत है धन जेति सम्पदा सराहबी ।

                       तेरोई कहाय के रहीम कहे दीन बंधु,

                       आपनी विपत्ति जाये काके द्वार काहबी ।

                       पेट भर खायो चाहे उद्यम बनायो चाहे,

                       कुटुम जियायो चाहे काढ़ि गुन लाहिबी ।

                       जीविका हमारी जा पै औरन के कर डारो,

                       बृज के बिहारी तो तिहारी कहा साहिबी ।

रहीम के मकबरे का शॉट ।           

मुगल इमारतों का दृश्य   ।                          सूत्रधार  

मुगल घुड़सवारों का सीन ।    

हिन्दी साहित्य को अपने सशक्त काव्य का उपहार देने वाले  अब्दुर्रहीम खानखाना मुगल शहंषाह अकबर महान के नवरत्नों में  गिने जाते हैं । वे कला, साहित्य ज्योतिष के साथ ही तलवार के जाने माने धनी थे । उनकी लम्बी उम्र का ज्यादातर हिस्सा मैदाने जंग में  तलवारों की खनकार सुनते हुये बीता । वे अपने स्वामी अकबर की तरह हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिये गहरा लगाव रखते थे । वे उस हिन्दुस्तानी मॉं के पेट से पैदा हुये थे, जो मेवाती राजपूतों के खानदान से ताल्लुक रखती थी । वे इन्सानियत के पुजारी थे । वे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं, मान्यताओं और परम्पराओं का तहे दिल से आदर करते थे । वे प्रथम श्रेणी के हिन्दुस्तानियों में सबसे अच्छे हिन्दुस्तानी थे । फारसी, हिन्दी और संस्कृत के विद्वान रहीम महार मुगल सिपाहसालर बैरम खान के बेटे थे । बैरम खान को मक्का जाते वक्त पठानों ने गुजरात में मार डाला तो बालक रहीम बे सहारा हो गये । वे अपनी विधवा मॉं के साथ अहमदाबाद में  बादशाह अकबर के हुक्म का इंतजार कर रहे थे लेकिन कई दिन बीत जाने पर भी शाही दरबार से कोई संदेश नहीं आया तो उनकी मॉं के चेहरे पर निराशा के बादल घुमड़ने लगे ।

 विजुअल                                       

लोकेशन- महल का कक्ष         

समय- सुबह

कलाकार- बैरम खॉं की बैगम,

बालक रहीम उम्र 8 साल,

मुगल लिबास कमरे के बाहर पेहरे पर मौजुद सैनिक

 बेगम- बेटा रहीम तुम्हारे वालिद के इंतकाल को चार महीने हो गये लेकिन बादशाह सलामत ने हमारी सुध नहीं ली ।

 रहीम – धीरज रखिये मॉं बुरा वक्त आने पर ही अपने पराये की पहचान होती है ।

 बेगम – तुम्हारे वालिद मरहुम ने अपनी जिंदगी का ज्यादतर वक्त तीन मुगल शहंशाहों की खिदमत में गुजार दिया ।  उन्होंने मुगल शहंशाहों के लिये कई लड़ाईयां जीतीं । आज वे नहीं हैं तो बादशाह सलामत ने हमें भुला दिया । रहीम मॉं अहमदाबाद से आगरा बहुत दूर है । संदेश पहुंचने में  काफी वक्त लगता है ।

बेगम कुछ पल टहलती है फिर रहीम के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखती है ।

बेगम- साहबे आलम को संदेश तो मिल चुका है लकिन वे हमारे ऊपर निगाहे करम नही करना चाहते ।

रहीम – आप ऐसा क्यों सोचती हैं ?

बेगम- मेरे सोचने की वजह है । तुम्हारे वालिद ने बादशाह सलामत के खिलाफ बगावत की थी । बादशाह तुम्हारे वालिद पर नाराज थे । मुगल दरबार के कई वजीर हमारे खिलाफ हैं । वे नहीं चाहते कि महाबली हमें पनाह दें ।

रहीम- मॉं वालिद मरहूम ने मुगल खानदान पर इतने एहसान किये हैं कि बादशाह सलामत उन्हें भूल नहीं सकते । मुझे यकीन है कि शाही दरबार से हमारा बुलावा जरूर आयेगा ।

बेगम- अगर बुलावा नहीं आता तो हम कहॉं जायेंगे । महाबली ने हमें मक्का शरीफ जाने का हुक्म दिया था ।

रहीम- अब मक्का जाने का सवाल नहीं उठता । बादशाह सलामत हमें नहीं बुलायेंगे तो भी हम आगरा जायेंगे । मुसीबत के दिनों में हमारी धरती मॉं अपने आंचल में हमे पनाह देगी ।

                                          सूत्रधार

 

शंहशाह अकबर का संदेश नहीं आया तो बालक रहीम अपनी मॉं के साथ आगरे की ओर चल पड़ा । रास्ते में एक जगह सामने से घुड़सवार आते दिखे तो रहीम की मॉं के चेहरे पर घबराहट नजर आने लगी ।

पालकी पर सवार बेगम । पालकी ढ़ोने वाले चार कहार । घोड़े पर बैठा रहीम । आगे पीछे कुछ हथियार बंद सिपाही ।

एक सैनिक घोड़ा दौड़ा कर आता है

सैनिक- बेगम साहिबा कुछ घुड़सवार हमारी तरफ आ रहे हैं। मुझे तो ये लुटेरे लगते हैं।

बेगम- परवार दिगार हमारी हिफाजत करना । अब हम इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पायेंगे ।

रहीम- (रहीम म्यान से तलवार खीच लेता है) मॉं आप धीरज रखिये अगर लुटेरे हम पर हमला करेंगे तो हम आखिरी सांस तक उनका मुकाबला करेंगें ।

सैनिक – हम अब लुटेरों से बच कर भाग नहीं सकते ।

रहीम – भागने की जरूरत नहीं । तलवारें म्यान से बाहर निकालो । हम लुटेरों का सामना करेंगें ।

घुड़सवारों का दस्ता नजदीक आता है । एक घड़सवार घोड़े से उतर कर बेगम को  सलाम करता है फिर वह रहीम के पास जाकर उन्हें एक खरीता पेश करता है ।

घुड़सवार – हमारा सलाम कुबूल करें मालिक । साहबे आलम ने आपके लिये ये खत भेजा है । बादशाह ने आपको दरबार में लाने का हुक्म दिया है । फौज की यह टुकड़ी आपकी हिफाजत के लिये आयी है ।

रहीम खत पढ़ता है ।

 रहीम- मॉं बादशाह सलामत ने हमें आगरा बुलाया है ।

 बेगम- अल्लाह का लाख लाख शुक्र  । परवार दिगार के करम से इन्सान की बिगड़ी बन जाती है ।

                                            सूत्रधार                  

बालक रहीम को महान मुगल सम्राट के दरबार में पेश किया गया । अकबरी दरबार का वह दिन इतिहास के पन्नों में  दर्ज है । जब सम्राट अकबर के स्वामिभक्त सिपहसालार मरहूम बैरम खॉं के अनाथ बेटे को बादशाह के सामने लाया गया ।

तुरही बजाने वाला तुरही बजाता है ।

  नकीब – जुम्बिश न कुंद । होशियार बाश । बा अदब बा मुलाहिजा होशियार । जिल्ले सुभानी जातदारे हिन्द आलमपनाह महाबली शहंशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर तशरीफ ला रहे हैं ।

अकबर आ कर सिंहासन पर बैठता है ।

अकबर- वजीरे आजम, मरहूम उस्ताद बैरम खान के बेटे अब्दुल रहीम को पेश करो।

वजीरे आजम- जो हुक्म जिल्ले सुभानी ।

वजीर आजम इशारा करता है । सैनिक रहीम को दरबार में लाते हैं । रहीम बड़े अदब से बादशाह को सलाम करता है ।

रहीम- शहंशाहे आलम की खिदमत में नाचीज रहीम का आदब ।

अकबर- रहीम हमारे पास आओ ।

रहीम- जो हुक्म महाबली ।

रहीम सिंहासन के पास आकर खड़ा हो जाता है ।

अकबर – रूक क्यों गये । हमारे और करीब आओ । हमारे हाथ पकड़ लो ।

रहीम पास जा कर घुटनों के बल झुकता है और बादशाह का हाथ पकड़ लेता है।

रहीम – आलम पनाह वालिद मरहूम तो हमे छोड़ गये । अब आपकी मेहरबानियो का ही सहारा है ।

अकबर- रहीम तुम्हारे वालिद ने मुगल खानदान के तीन शहंशाहों की खिदमत में अपनी जिंदगी गुजारी । हमने उनकी उंगली पकड़ कर चलना सीखा था । हमने तुम्हारा हाथ इसलिये पकड़ा है कि मुगल दरबार को तुम्हारी अहमियत का पता चल जाये ।

राजा मानसिंह – महाबली सेनापति बैरम खान ने आपके खिलाफ बगावत की थी । उनके बेटे का हाथ थाम कर आपने महानता का परिचय दिया है ।

अकबर- राजा मानसिंह गलतियॉं हर इन्सान से होती हैं । हमें मरहूम बैरम खान की बगावत को नजर अंदाज कर देना चाहिये ।

वजीरे आजम- आलम पनाह बैरम खान ने मामूली गलती नहीं की थी । उन्होंने मुगल तख्त के खिलाफ बगावत का परचम लहराया था ।

अकबर – वजीरे आजम, मत भूलिये कि मरहूम बैरम खान ने हमारे वालिद को हिन्द की हुकूमत वापस दिलाने के लिये बेशुमार तकलीफें झेलीं थीं । उन्होंने पानीपत की दूसरी जंग में  दुश्मन को घुटना टेकने पर मजबूर किया था । वे आज नहीं हैं तो हम उनके बेटे को कैसे भूल सकते हैं । कान खोल कर सुन लीजिये । मॉं बदौलत को एहसान फरामोशी से सख्त नफरत है ।

वजीरे आलम- जी आलम पनाह ।

अकबर- हम रहीम को मिर्जा खान के ओहदे से नवाजते हैं । इनकी परवरिश  मुगल शहंशाहों की तरह होगी । इन्हें किताबी इल्म और जंग के हुनर एक साथ सिखाये जायेंगे ।

रहीम शिक्षक से सबक पढ़ते हुये,

रहीम पुस्तकालय में किताबे देखते हुये,

रहीम शायरों के बीच कविता सुनाते हुये,

रहीम तलवारबाजी, घुड़सवारी सीखते हुये,

रहीम एक एकांत में बैठ कर लिखते हुये।

इन दृष्यों पर एंकरपरसन की आवाज सुपर इंपोज ।                 

                                           सूत्रधार

रहीम को शहजादों की इज्जत बख्शने के लिये शहंशाह अकबर ने उनकी विधवा मॉं से निकाह कर लिया । बालक रहीम का ज्यादातर वक्त मुगल दरबार के विद्वानों और शायरों के साथ गुजरने लगा । होनहार बिरवान के होत चीकने पात । रहीम ने चंद बरसों के दौरन जंग के हुनर सीख लिये । उनकी फारसी और हिन्दी कविता समाज में  मशहूर होने लगी । रहीम मैदाने जंग की जिम्मेदारियॉं सम्भालने के काबिल हो गये तो शहंशाह ने एक दिन उन्हें अपने पास बुलाया ।

अकबर और रहीम बैठे हैं        

अकबर- हम तुम्हारी तरक्की से बहुत खुश हैं । तुमने अरबी, फारसी, हिन्दी, तुर्की और संस्कृत जबान थोड़े ही वक्त में सीख ली ।

रहीम- आलम पनाह के दरबार में आलिमों और शायरों की कमी नहीं है । उनके पास बैठ कर जबान सीखना नाचीज के लिये आसान हो गया ।

अकबर- मिर्जा खान तुम मरहूम सिपाहसालार बैरम खान के बेटे हो । जंग की फितरत तुम्हारे लहू में है । आज हमने तुम्हे एक खास मकसद से बुलाया है ।

रहीम- महाबली, क्या मैं वह मकसद जान सकता हूँ  ।

अकबर- हम मकसद भी बता देंगे । पहले तुम बताओ क्या तुम्हें जंग की एक अहम जिम्मेदारी कबूल है ।

रहीम- आलम पनाह, मेरे वालिद मरहूम ने मुगलिया खानदान के ताजदारों का हुक्म सारी जिंदगी सिर आंखों पर रक्खा । मैं भी इस चलत को कायम रखना चाहता हूँ  ।

अकबर- मॉं बदौलत को तुम्हारा जवाब सुन कर खुशी हई । गुजरात का सुल्तान मुज्जफरशाह हमारी ऑंखों में तिनके की तरह चुभ रहा है । हम इस तिनके को मसल देना चाहते हैं । इस मुहीम का सिपहसालार हम तुम्हे तैनात करते हैं । हमें उम्मीद है तुम ये जिम्मेदारी बखूबी निभाओगे ।

रहीम- महाबली, गुस्ताखी माफ इतने बड़े महासरे के लिये बड़े सिपहसालारों को छोड़ कर इस नाचीज को तैनात करने का कुछ मकसद होगा ।

अकबर- हॉं मकसद है । हम चाहते हैं कि गुजरात की जंग जीतने का सेहरा तुम्हारे सिर बांधा जाये ।

रहीम- आलम पनाह आपने बहुत सोच समझ कर फैसला किया होगा । लेकिन मुगलिया फौज के बड़े सिपहसालार इस फैसले से सहमत नहीं होंगे । जंग में कामयाबी के लिये सिपाहसालारों की एकता जरूरी है ।

अकबर- हम बड़े सिपहसालारों को सबक देना चाहते हैं । तुम गुजारात का मोर्चा फतह कर लोगे तो इन सिपहसालारों का गुरूर खत्म हो जायेगा ।

रहीम- जो हुक्म जिल्ले सुभानी ।

अकबर- बारहा के सैयद और जयपुर के राजपूत तुम्हें दिलो जान से चाहते हैं । तुम सैयदों और राजपूतों को हमेशा  अपने साथ रखना, इससे तुम्हें कामयाबी हासिल होगी ।

रहीम- जो हुक्म आलम पनाह ।

                                                दृश्यांतर

लोकेशन: लड़ाई का मैदान

पात्र- रहीम, राय दुर्गा सिसोदिया, जुझार सिंह, कुलीच खॉं, नौरंग खॉं ।

प्रापर्टी- मुगल शिविर, पीछे मुगल तंबू, मुगल वेश भूषा में सैनिक, अस्त्र-शस्त्र।

खुले शिविर में रहीम खड़ा है, दुर्गा सिसोदिया उसके पास आता है। पृष्ठ भूमि में युद्ध का कोलाहल ।  

राय दुर्गा- सेनापति मुज्जफर शाह की फौज भाग खड़ी हुयी । हमारी सेना साबरमती के किनारे पहुंच गई है । हम नदी पार करने की तैयारी कर रहे हैं ।

रहीम- राय दुर्गा, शाम हो गई है । अंधेरे में दुश्मन का पीछा करना ठीक नहीं है । लश्कर को साबरमती के किनारे रोक दो । हम आज रात इसी बाग में छावनी डाल कर दुश्मन के मोर्चे बंदी का जायजा लेंगे ।

राय दुर्गा- जो आज्ञा सेनापति मैं लश्कर को रूकने का आदेश देता हूं ।

राय दुर्गा चला जाता है । दूर घोड़े की टाप की आवाज

रहीम- पहरेदार बाहर जा कर देखो कौन आया है ।

पहरेदार- जी हुजूर ।

पहरेदार बाहर जाता है फिर लौट कर आता है ।

पहरेदार- हुजूर बड़ौदा किले के सूबेदार कुतुबुद्दीन खान का खत लेकर जुझार सिंह आये हैं । वे आपका दर्शन चाहते हैं।

रहीम- उन्हें अन्दर ले आओ ।

जुझार सिंह अंदर आ कर रहीम को प्रणाम करता है।

जुझार सिंह- सेनापति को प्रणाम  ।

रहीम- पहरेदार तुम बाहर जाओ । जब तक मैं जुझार सिंह से बात न कर लूं किसी को अन्दर आने की इजाजत नहीं है ।

पहरेदार- जो हुक्म हुजूर ।

पहरेदार सिर झुकार बाहर  जाता है

रहीम- जुझार सिंह, तुम्हारे चेहरे से साफ जाहिर होता है कि बड़ौदा के किले में खेरियत नहीं है ।

जुझार सिंह- सेनापति बहुत बुरी खबर है । सुल्तान मुज्जफर शाह ने धोखे से बड़ौदा के किले पर कब्जा कर लिया । उसने सूबेदार कुतुबुद्दीन खान को मार डाला और मुगल खजाना लूट लिया । इस खजाने में दस करोड़ रूपये थे ।

रहीम- तुम सचमुच बुरी खबर लाये हो ।

जुझार सिंह- हुजूर बड़ौदा के हालात बदत्तर हो गये हैं । अब सारा हाल इस खत से समझ लेंगे ।

रहीम- खत मुझ दो ।

जुझार सिंह खत देता है रहीम खत लेता है, पढ़ कर गहरी सांस लेता है ।

रहीम- इसका मतलब है मुज्जफर शाह हमारी फौज को किसी भी वक्त घेर सकता है 

जुझार सिंह- जी हॉं । आपको बहुत सोच समझ कर साबरमती पार करनी चाहिये ।

रहीम- जुझार सिंह, मैं ये मोर्चा सम्भाला लूंगा । तुम मेरी बात गौर से सुनो ।

जुझार सिंह- आज्ञा सेनापति ।

रहीम- तुम लश्कर में किसी से नहीं कहोगे कि मुज्जफर शाह ने कुतुबुद्दीन को मार कर बड़ौदा के किले पर कब्जा कर लिया है ।

जुझार सिंह- सेनापति मैं ये बात किसी से नहीं कहूंगा ।

रहीम- तुम इसी वक्त मुगल छावनी छोड़ कर चले जाओगे ताकि कोई मुगल फौजी तुमसे  बड़ौदा के बारे में पूछ ताछ न कर सके ।

जुझार सिंह- सेनापति मैं अभी छावानी से बाहर चला जाता हूँ । अब आज्ञा दीजिये ।

जुझार सिंह रहीम को प्रणाम कर बाहर जाता है । करूण संगीत उभरता है । रहीम चिन्तन की मुद्रा में टहलते हुये

अपने से बात करता है ।

रहीम- हे भगवान ! अब क्या होगा । बड़ौदा की हार के बारे में मुगल फौज को पता चल गया तो हम बिना लड़े ही मोर्चा खो देंगे । मुज्जफर शाह के जासूस मुगल छावनी में भी मौजूद हैं । जरा सी चूक हुयी तो लड़ाई का पासा पलट जायेगा ।

राय दुर्गा अन्दर आता है ।    

राय दुर्गा- सेनापति, ये सवार कहॉं से आया था ।

रहीम- ये सवार आगरे से आया था । ये बहुत बड़ी खुशखबरी लाया है ।

राय दुर्गा- कैसी खुशखबरी ।

रहीम- जिल्ले सुभानी खुद एक बड़ी फौज लेकर हमारी मदद को आ रहे हैं ।

राय दुर्गा- महाबली खुद आ रहे  हैं । तब तो सल्तान मुज्जफर शाह के बुरे दिन आ गये ।

रहीम- राय दुर्गा, सिपहसालारों को अन्दर बुलाओ हम आलम पनाह के खत पर उनसे मशवरा करना चाहते हैं ।

राय दुर्गा- जो आज्ञा सेनापति ।

राय दुर्गा बाहर जाता है । रहीम हाथ में खत ले कर खामोशी से कुछ सोच रहा है।  राय दुर्गा, कुलीच खान ओैर

नौरंग खान अंदर आते हैं ।

रहीम- नौरंग खान, साहबे आलम ने खत में लिखा है कि वे चंद दिनों में यहॉं पहुंच जायेंगे । हमे अब क्या करना चाहिये ।

नौरंग खान- हुजूर, शहंशाह ने हमारे लिये क्या हुक्म दिया है ।

रहीम- उन्होंने लिखा है कि जब तक वे यहॉ न पहुंच जायें तब तक गुजरात की फौज पर हमला न किया जाये ।

कुलीच खान- साहबे आलम ने हुक्म दिया है तो हमें उसके मुताबिक कदम उठाना चाहिये ।

रहीम- लकिन मुज्जफर शाह के पांव उखड़ चुके हैं । हम इस वक्त आसानी से उसका पीछा कर अहमदाबाद पहुंच सकते हैं ।

राय दुर्गा- सेनापति, मेरी राय में हमे महाबली की आज्ञा का पालन करना चाहिये ।

रहीम- राय दुर्गा, जिल्ले सुभानी ने लिखा है कि मालवा की फौज भी हमारी मदद को आ रही है ।

कुलीच खान- मालवा की फौज भी आ रही है तो जंग जीतना और आसान हो जायेगा ।

रहीम- आप की सलाह वाजिब है, लेकिन काइंया मुज्जफर शाह को मौका मिला तो वह अहमदाबाद से भाग खड़ा होगा । हम उसे पकड़ नहीं पायेंगे ।

राय दुर्गा- वह पहले भी बादशाह की कैद से भाग चुका है । इस बार उसे भागने का मौका नहीं मिलना चाहिये ।

नौरंग खान- कुछ भी हो हमे साहबे आलम की हुक्म उदूली नहीं करनी चाहिये । दो दिन इंतजार करने में हमारा कोई नुकसान नही है । हम मोर्चे पर डटे रहेंगे ।

रहीम- ठीक है । हम शाही फौज का इंतजार करेंगे लेकिन हमारी फौज मुस्तैदी से मोर्चे पर डटी रहेगी । दुश्मन बहुत मक्कार है । वह किसी भी वक्त औचक हमला कर सकता है ।

                                                   दृश्यांतर

लोकेशन महल का एक कमरा

पात्र- मुज्जफर शाह और आजम खान ।

मुज्जफर मसनद पर चिन्तन की मुद्रा में बैठा है सिपहसालार आजम आता है  ।

आजम- सुल्ताने गुजरात की खिदमत में सिपहसालार आजाम का आदाब।

मुज्जफर शाह- आजम क्या खबर लाये हो ।

आजम- हुजूर बुरी खबर है । शहंशाह अकबर खुद एक बड़ी फौज लेकर अहमदाबाद की तरह बढ़ रहे हैं । सिपहसालार रहीम की मदद करने के लिये मालवा की फौज भी मोर्चे पर आ रही है ।

मुज्जफर शाह- ये कैसे मुमकिन है । मेरे जासूसों ने खबर दी थी कि शहंशाह आगरे में हैं । उन्होंने गुजरात का मोर्चा मिर्जा रहीम को सौंप दिया है  ।

आजम- ये खबर पुरानी है । हमारे जासूसों ने कुछ देर पहले खबर दी है कि मालवा की फौज भी तुफान की चाल से अहमदाबाद की ओर बढ़ रही है ।

मुज्जफर शाह- आजम खान इस खबर में सचाई है तो हम कहीं के न रहेंगे । हमने बड़ी होशियारी से मोर्चा जमाया था । सिपहसालार रहीम अकेले इस मोर्चे को तोड़ नहीं सकते थे । अब बादशाह खुद आ रहे हैं तो हम उनका मुकाबला कैसे कर पायेंगे ।

आजम- सुल्तानेआली । हम अब भी जंग की बाजी जीत सकते हैं । मालवा और आगरा की फौज अभी अहमदाबाद नहीं  पहुंची है । आप अपनी फौज को मोर्चा छोड़ कर दुश्मन पर सीधे हमला करने का हुक्म दें । हम धावा बोल कर रहीम को गिरफ्तार कर लेंगे ।

मुज्जफर शाह-तुम ठीक कहते हो बादशाह रहीम को अपने बेटे जैसे प्यार करते हैं । हम उन्हें गिरफ्तार कर लें तो बाजी हमारे हाथ होगी । घुड़सवार फौज को तैयार करो । हम मोर्चा छोड़ कर सीधे मुगल फौज पर हमला करेंगे ।

                                        दृश्यांतर

लड़ाई का मैदान । एक तंबू में रहीम नंगी तलवार हाथ में ले कर सामने निहार रहा है, नेपथ्य से युद्ध का कोलाहल

सुनाई दे रहा है । राय दुर्गा ओैर कुलीच खान नंगी तलवार हाथ में लिये रहीम के पास आते हैं ।                      

राय दुर्गा- सेनापति, आपने मुझे बुलाया ।

रहीम- हॉं तुम्हें एक जरूरी कदम उठाना है ।

राय दुर्गा- आज्ञा दीजिये ।

रहीम- तुम अपनी फौज लेकर मोर्चा छोड़ दो ।

राय दुर्गा – मैं मोर्चा छोड़ दूं । पर क्यों ?

रहीम- राय दुर्गा मैदाने जंग में सिपहसालार से सवाल जवाब नहीं करते । तुम अपनी फौज लेकर उत्तर की ओर तीन मील पीछे जाओगे । तुम हमारे संदेश का इंतजार करोगे । हमारा संदेश मिलते ही तुम तूफान की चाल से गुजराती फौज पर टूट पड़ोगे ।

राय दुर्गा- जो आज्ञा सेनापति । मैं अभी जाता हूँ ।

कुलीच खान- सिपहसालार लगता है आप दुश्मन को किसी जाल में फंसाना चाहते हैं। 

रहीम- (मुस्कुरा कर) लड़ाईयॉं सिर्फ ताकत से नहीं जीती जातीं । इसके लिये बल के साथ छल करना भी  जरूरी होता है ।                                      

कुलीच खान- आपने मुझे क्यों बुलाया है ।

रहीम- आप अपनी फैाज लेकर दक्षिण की और काफी दूर हट जायें और हमारा इशारा पाते ही मुज्जफर शाह की फौज पर टूट पड़ें ।

कुलीच खान- सिपहसालार, इस तरह दो ताकतवर फौजों को मोर्चे से हटा लेने पर दुश्मन भारी पड़ेगा । वह हमारी फौज पर दबाव बढ़ा सकता है ।

रहीम- आप दुश्मन की परवाह न करें । उससे दो दो हाथ करने के लिये मैं मोर्चं पर डटा रहूँगा । मेरे रहते वह चार कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता है ।

                                          दृश्यांतर

एक पहाड़ी की आड़ में आजम खां और मुज्जफर  शाह खड़े हैं । दोनों का  लिबास लहू से तर है ।

दोनो के चहरे पर हवाईयॉं  उड़ रही हैं । दूर लड़ाई का  कोलाहल गूंज रहा है । 

मुज्जफर शाह- सिपहसालार, हमने जीता हुआ मोर्चा खो दिया ।

आजम- सुल्तान हमें उम्मीद नहीं थी कि आगरा और मालवा की फौज इतनी जल्दी मैदाने जंग में पहुंच जायेगी ।

मुज्जफर शाह- तुमने रहीम को गिरफ्तार करने के लिये दांव चला था । वह दांव उलटा पड गया ।

आजम- सुल्तान, सिपहसालार रहीम गजब का फुर्तीला है । ये आपने देखा नहीं वह हमारे हमले पर एक कदम भी पीछे नहीं हटा । उसके बंदूकचियों ने हमारे दो हजार फौजी मार डाले । 

मुज्जफर शाह- सिपहसालार, सचमुच ये रहीम गजब का तलवारबाज है । हमने अपनी जिंदगी में ऐसा फुर्तीला जांबाज नहीं देखा ।            

आजम- हुजूर, मैदाने जंग में उत्तर और दक्षिण की और से धूल उड़ी तभी मैं समझ गया कि आगरा और मालवा की फौज आ गई हैं । खुदा का करम है कि हम दोनो सही वक्त पर मोर्चा छोड़ कर भाग निकले ।

मुज्जफर शाह- अगर हम पकड़ जाते तो इस बार मुगल कैद से रिहाई नामुंकिन थी।

आजम- हुजूर, अब यहॉ रूकना खतरे से खाली नहीं है । मुगल फौज किसी भी वक्त यहां आ सकती है । मैं चलता हूँ  । जिंदा रहा तो फिर आपकी खिदमत करूंगा ।

मुज्जफर शाह- मुझे भी जल्दी जल्दी से अहमदाबाद छोड़ देना चाहिेये । सिपहसालार रहीम किसी भी वक्त शहर में दाखिल हो सकता है ।

                                          दृश्यांतर

अहमदाबाद का महल रहीम मसनदा पर बैठा है । बाहर से मुगल फौज की जयकार सुनाई दे रही है ।

महाबली की जय । साहबेआलम की जय । सेनापति मिर्जा खान  जिंदाबाद ।

राय दुर्गा, कुलीचखांन ,  नौरंग खान रहीम के सामने खडे़ हैं । वक्त दोपहर ।    

राय दुर्गा- सेनापति बधाई हो । आपने गुजरात के मोर्चे पर पूरी  जीत हासिल की ।

रहीम- राय दुर्गा यह सिर्फ मेरी जीत नहीं । यह महाबली के जलाल की जीत है । यह मुगल फौज की जीत है ।

राय दुर्गा – सेनापति, एक बात मेरी समझ में नहीं आयी ।

रहीम- तुम क्या समझना चाहते हो ।

राय दुर्गा – मेरी फौज के आते ही सुल्तान मुज्जफर शाह एका एक भाग खड़ा हुआ । यह कैसा चमत्कार है ।

रहीम- (हंसकर) तुम्हारी फ़ौज को आगे बढ़ता देख मुज्जफर शाह ने समझा कि महाबली की फौज आ गई है ।

कुलीच खान- सिपहसालार, अब मेरी समझ में आया कि आपने मुझे फौज लेकर पीछे हट जाने को क्यों कहा था ।

रहीम- लड़ाईयॉं सिर्फ तलवार से नहीं फतह की जातीं । मोर्चा सर करने के लिये अक्ल का इस्तेमाल जरूरी है  ।

राय दुर्गा- हुजूर, सचमुच जंग की चाले चलने में आपका जवाब नहीं ।

रहीम- राय दुर्गा, मैंने सिपहसालारों के सामने महाबली के जिस खत का हवाला दिया था वह झूठा था ।

कुलीच खान- (अचरज से) वह खत झूठा था ।

रहीम- हॉं । असली खत बड़ौदा से आया था । उसमे लिखा था कि सुल्तान मुज्जफर शाह ने बड़ौदा के सुबेदार कुतुबुद्दीन को मार कर किले पर कब्जा कर लिया है और खजाने का दस करोड़ रूपया लूट लिया है।

राय दुर्गा – सेनापति । अब मैं समझा अगर उस खत की सचाई फौज को पता चल जाती तो सिपाहियों की हिम्मत पस्त हो जाती । तब हम मुज्जफर शाह को मात नहीं दे सकते थे ।

रहीम- जंग और मुहब्बत में सब कुछ जायज है । अब हम जीत का जश्न मनायेंगे।

राय दुर्गा – सेनापति, शहर के तमाम याचक, अनाथ और भिखारी किले के दरवाजे पर खड़े हैं । उन्हें आपकी दानशीलता खींच लाई है ।

रहीम- इस लड़ाई में बेशुमार दौलत हमारे हाथ आई है । ये सारा धन गरीबों को दान दिया जाये । गरीबों को दान देने से भगवान प्रसन्न होते  हैं ।

                                                                  समाप्त


इस नाटक में सिपहसालार “अब्दुर्रहीम खान खाना”  ने कई बार भगवान् शब्द का प्रयोग किया है जबकि वो एक मुस्लिम थे. यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए की रहीम को दुनिया एक सिपाही के रूप में कम और कृष्ण भक्त के रूप में ज्यादा जानती है….इसलिए उनके मुंह से भगवान शब्द निकलने पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए.         

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