काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

रविवार, 19 नवंबर 2017

एक दिन कुकरपंती के नाम


 

 

=>ही ही ही ही हू । फस्र्ट प्राईज तो मैं ही जीतूंगा ।

 

मित्रों, अंग्रेजी में एक कहावत है ”एवरी डॉग हैज़ इट्स डे” । मतलब हर कुत्ते का साल में कम से कम एक दिन अच्छा गुज़रता है और यदि बहुत से कुत्तों का दिन आ जाये तो समझिये कि कुत्ता पर्व मनाया जा रहा है । यानि कि शहर भर के कुत्ते, स्मार्ट से दिखने वाले कुत्ते अपने अपने मालिकानों के साथ किसी स्थान पर एकत्रित होकर ‘डॉग शो’ मनाते हैं । उस दिन शहर भर के कुकुर पालने वाले सर्वसम्मति से एक दिन कुकुरपंती के नाम कर देते हैं । कुकुर रक्षा पर्व मनाते हैं जच्चा-बच्चा रक्षा पर्व की तर्ज पर । उस दिन सारे कुत्ते घरों से निकल पड़ते हैं, पता नहीं लगता है कि मालिक कुत्ता लाया है या कुत्ता मालिक को लाया है । कुत्तों के भी क्या ठाठ होते हैं । पट्टे एयर कंडीश्न्ड कार में बैठ कर आते हैं । मालिक लोग हर दस मिनट पर उन्हे मंहगे मंहगे बिस्किट खिलाते हैं । लोग बाग पानी की बोतल कंधे पर टांगे कुत्ते को पुचकारते इधर उधर फिरते हैं । इस दिन आदमी कुत्तों के पीछे पूँछ हिलाता घूमता है ।

मैं यह लेख लिख रहा हँ तो यह मत समझियेगा कि मेरे अंदर कुत्तों को ले कर कोई हीन भावना है । कुत्ता मैं भी पाल सकता था । मैंने अपने जन्म से लेकर आज तक कई असफल प्रयास भी कियें हैं और अगर सफल हो जाता तो मैं भी ‘कुत्ता पर्व’ बड़े शान से मनाता । परन्तु कुछ तो पारिवारिक कारणों से और कुछ कुत्ते के कारण मैं कुत्ता नहीं पाल सका । हमारी राजमाता कुत्तों से हार्दिक घृणा करती हैं । और मूझको भी घिन आती थी जब वह सुबह जरा सी देर हो जाने पर घर पर ही नित्य क्रिया से निवृत्त हो लेता था । साफ-सफाई में उलटी आती थी ।

मित्रों सही बताऊं तो कुत्ते मुझे काफी पसंद हैं और कुत्ते भी मुझे काफी पसंद करते हैं क्योंकि मैं उनकी काफी इज्ज़त करता हूँ । कुत्तों को और क्या चाहिये दो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार । बचपन में मैंने कई प्रयास किये कुत्ता पालने के । मैं जब भी कोई सुंदर सा कुत्ता पकड़ कर लाता और कुछ दिनों तक बड़ी लगन से उसका लालन पालन करता तभी कोई कुत्ता विशेषज्ञ पहुंच कर ऐलान कर देता कि ये कुत्ता नहीं ये तो कुतिया है । मैं हैरान, परेशान । मैं कुत्ता पालना चाहता था क्योंकि कुतिया परिवार में वृध्दि करती है । फिर उसके नन्हे मुन्नों को भी पालना पड़ता । यहाँ एक कुत्ता पालने में माता जी से युध्द करना पड़ता है उसके आधा दर्जन बच्चों को कौन खिलाता पिलाता । भविष्य की चिंता मुझे परेशान कर देती । मैं फिर उस कुतिया को वापस उसके श्रध्देय माता-पिता के पास छोड़ आता । अफसोस इस बात का है कि मुझे आज तक कुत्ते और कुतिया में फर्क करना नहीं आया । एक बार एक कुत्ता हमारे घर काफी दिन तक पल गया था । उसका नाम मैंने बड़े चाव से रॉबिन रखा था । रॉबिन भाई से हमारी बड़ी गहरी छनती थी । वो हमारे साथ ही खाते । हमारे बिस्तर के बगल में सोते । धीरे धीरे उनका जीवन स्तर इतना ऊंचा उठ गया कि वे सिर्फ घी से चुपड़ी रोटी ही खाया करते थे और रात में उन्होंने अपनी बोरी पर सोना बंद कर दिया था । उनके लिये स्पेशल एक गद्दे का इंतजाम करना पड़ा था । उनकी यह रईसी माता जी से देखी नहीं गई । एक दिन जब मैं स्कूल गया था तब उन्होंने उस नवाबी नस्ल के कुत्ते का सींकड़ सहित कुकुरदान कर दिया । फिर मैने कोई कुत्ता नहीं पाला ।

आज रविवार की सुहानी सुबह थी । मैं टी.वी. पर अपने मनपसंद कार्यक्रम के इंतजार में बैठा था । तभी हमारे दूधवाले के गाय कि तबीयत खराब हो गई । मुझे ग्वाले को लेकर डाक्टर के पास जाना पड़ा । डाक्टर साहब का नाम लेकर उनका एडवरटीज़मेंट नहीं करूंगा वे गाय कम कुत्ते ज्यादा देखते हैं (पिराफिट ज्यादा है) । अपनी डिस्पेंसरी में वे मिले नहीं, कंपनी बाग में ‘डॉग शो’ देखने गये थे । हमने कहा चलो लगे हाथ हम भी कुकुर शो देख लें । उस दिन ‘फ्लावर शो’ भी चल रहा था । अच्छे-अच्छे व सुन्दर, सुशील, कोमल फूल रखे गये थे । उन्हें देखकर मेरे मन में एक कुत्सित विचार आया कि कहीं से दो दर्जन गाय घुस आतीं तो आनंद आ जाता । उन फूलों को चरने के बाद गाय जो दूध देंती वह कितना खुशबू देता । खैर छोड़ो ।

शहर भर के कुकुर प्रमी एकत्रित थे । भीड़ में तीन प्रकार के लोग थे । पहले आर्गनाइजर और पुलीस वाले । दूसरे कुत्ताप्रेमी और तीसरे कुत्ताप्रेमियों के प्रेमीजन । यहाँ पर यह बताना चाहूँगा कि कुत्ताप्रेमियों में रईस युवतियाँ भी थीं अत: प्रेम पुजारियाँ का भी तांता लगा हुआ था । मैं अपने 5.5 क़े चश्में से सबको देख रहा था । तमाम बिल्लीनुमा कुत्तों को सयानी बच्चीयाँ गोद में उठाये दुलार कर रहीं थी । सहला रही थीं । और कितनी ऑंखे उन कुत्तों के नसीब को घूर रहीं थीं । कितनी ज़बान उन कुत्तों के नसीब पर मातम कर रहीं थीं । कितने हाथ ऊपर उठे दुआ माँग रहे थे ( हे अल्लाताल ! अगले जनम में कुत्ता ही बनाना ) । भौतिक सुखों कि प्राप्ति के लिये कुत्ता योनि में जन्म लेना चाहिये । वैसे इंसान इसी जन्म में ही कुत्ता बन जाये तो मजे ही मजे हैं । ऐसे लोग जीवन में सफल माने जाते हैं ।

अचानक दूध वाले को एक भैंस का (पड़वा) पेड़ से बंधा दिखाई दिया । मैं भी चकित था कि डॉग शो में दुधारू नस्ल कहाँ से आ गई ? इसमें हम दोनो का दोष नहीं था । क्योंकि एक तो मेरी ऑंख चश्में के बावजूद भी कमज़ोर है और दूधवाला भी गाय भैंसों के बीच ही रहता है इसलिये उसको उनके अलावा कुछ सूझता भी नहीं है । वो एक विदेशी नस्ल का काला कुत्ता था ‘ग्रेट डेन’ । लंबाई चौड़ाई, ऊंचाई एक पड़वा के बराबर थी । दूधवाला जानना चाहता था कि वह कितना चारा, भूसा खाता है ? उसका मालिक शान से उसके दिन भर की डाइट बता रहा था । जितना दूधवाला के चार ग्राहक मिल कर दूध खरीदते हैं उतना वह कुकुर दी ग्रेट एक दिन में पी जाता था । जितनी रोटियाँ मुझ गरीब आदमी के घर में बनतीं हैं उतनी वह अकेला डकार जाता था । महीने भर में 5-6 बकरों का मांस चबा जाता था । मतलब सीधा था कि हम जिस प्राणी का अवलोकन कर रहे थे शुक्र है कि उसके दर्शन के लिये टिकट नहीं लेनी पड़ी ।

फिर भी ज्यादातर कुत्ता मालिकों को एक दुख होता है कि वो अपना कुत्ता किसी पर छोड़ नहीं सकते । अगर वह राह चलते लोगों को खदेड़-खदेड़ कर काटे तो उनकी मेहनत और रकम सार्थक हो । परन्तु ज्यादातर कुत्तों को बंगले के गेट से भूँकना पड़ता है और मालिकों को उसी से संतोष करना पड़ता है । एक बात के लिये तो मैं शर्त लगा सकता हूं कि जितना पैसा श्वानप्रेमी एक विदेशी कुत्ता खरीदने में और पालने में खर्च देते हैं उसका आधा भी अगर एक देशी कुत्ते के लालन पालन पर खर्च कर दें तो वह एक डाबरमैन और अल्शेसियन से ज्यादा ताकतवर और खतरनाक निकलेगा । यह मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है । आपका फिरंगी कुत्ता अगर एक बार सड़क पर अकेला टहल जाये तो गली के कुत्ते काट खायें । यह सिर्फ बंगलों के अंदर भौंकते अच्छे लगते हैं ।

गॉव में भी लोग कुत्ता पालते हैं मगर सुबह-शाम टहलाते नहीं हैं पर उनको वक्त पर खाना जरूर देते हैं । वह कुत्ते घर, खेत, बाग सभी जगह रखवाली करते हैं । ताकत में भी वह फिरंगी कुत्तों से बीस होते हैं । भाई कुत्तों को रखवाली करने का मौका दो । उनकी रखवाली करोगे तो वे मेहरा जायेंगे और तब एक बिल्ली भी भगाना मुश्किल हो जायेगा ।

कुकुर पालना आज स्टेटस सिंबल है जो जितना खुंखार कुत्ता पालेगा वह उतने ही सम्मान की निगाह से देखा जायेगा । आज विदेशी कुत्ता और विदेशी जूता इज्जत को चार चाँद लगाते हैं । हालांकि किसी को कुत्ता बोल दो या जूता मार दो तो उसकी आबरू का जनाजा निकल जाये । फिलहाल आदमी आज जूतों और कुत्तों का मोहताज है । मैं न तो विदेशी जूता खरीद सकता हूं और न ही डॉबरमैन को दो जून की रोटी दे सकता हूँ तो फिलहाल मुझ जैसे आम आदमी का कोई स्टेटेस नहीं है ।

=>किस किस को जानिये, किस किस को देखिये । आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोईये । वऊsssss।

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