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शनिवार, 18 नवंबर 2017

हस्तिनापुर में होली

  – हैप्पी होली अंकल-आंटी

और गुरू द्रोण की क्लास खत्म होते ही सभी राजकुमारों के हाथों में उनकी फाउंटेन पेन चमकने लगी । कुछ ही देर मे सभी की सफेद युनीफार्मों पर नीले रंग की चित्रकारी झलकने लगी थी । ”अरे क्या कर रहे हो । कुन्ती माँ डांटेगी । सारी की सारी युनीफार्म गन्दी करके रख दी ।” युधिष्ठर ने अनमने ढंग से बकवास की । ”जानते हो ऐरियल कितना मंहगा हो गया है । राज धोबिन धनिया भी हर कपड़े की धुलवाई होली पर बढा रही है । कहती है – बोनस भी चाहिए ।” कौरवों के छियालिसवें नम्बर के धृतराष्ट पुत्र ने भी धृष्टता का परिचय देते हुए अपनी अगली सीट पर बैठे हुए रसोईये के शत्रु, अन्न के दुश्मन, भारी भरकम भीम की टेरालीन की बुशर्ट पर अपनी पेन से स्याही की मात्र तीस-चालीस बूंदे प्रेम पूर्वक अंकित कर दी । अपने भाईयों में खाने पीने के मामले में सबसे उदार गदाधारी भीम ने भी फिर अत्यधिक उदारता का परिचय दिया और अपनी केमिल इंक की पूरी की पूरी बोतल ही नम्बर छियालिस पर उड़ेल कर धर दी । नम्बर छियालिस गदाधारी भीम की इस उदारता के समक्ष नतमस्तक हो गये क्योंकि इस कारवाई के दौरान श्री भीम को धोबीपाट नामक क्रिया को भी सम्पन्न करना पड़ा था ।

”ये कम्बख्त होली फिर से आगई । अबकी बार तो बिल्कुल नहीं खेलूँगा । पिछले साल छ: कटोरी बेसन और तीन टिक्की लाइफबॉय घिस डाली थी तब कहीं जाकर रंग हल्का हुआ था । सारा शरीर नहाने में इतना घिस गया था कि हेल्थ बनाने में दिपावली आ गई थी । एक तो मैं वैसे ही मासिक स्नान करने वाला आदमी हँ, इस गंदे महीने में तो दो बार नहान हो जाता है ।” अर्जुन होली से खिन्न हैं क्योंकि होली उसकी आइडियोलोजी से भिन्न है । पिछले साल तो उसका अश्वत्थामा से इसी बात पर झगड़ा हो गया था । बेचारे अश्वत्थामा का रंच मात्र भी दोष नहीं था । वह कतई बेकसूर था । बस उसने अर्जुन के मुँह पर पाव-आध पाव ग्रीस लगा दी थी । इसी बात पर दोनो नौजवानों ने भविष्य में होने वाले महाभारत युध्द की रिहर्सल भी कर ली थी ।

अपने बाबा भीष्म तो होली खेलना कब की छोड़ चुके हैं । रंग से वह नहीं डरते । डरते तो वो मामा शकुनी के रंगीन पानी भरे गुब्बारों से हैं । जिस साल दु:शासन पैदा हुआ था, उसी साल मामा शकुनी ने उन्हें अपने रंग भरे गुब्बारे के निशाने पर लिया था । गुब्बारा तो नहीं फूटा पर पितामह का बाँया बल्ब फूटते-फूटते बचा । वो तो उन्होंने विदुर की बनाई रामबाण औषधि का एक महीने तक लेप लगाया तब जाकर कहीं उनकी बांई ऑंख की रोशनी बची थी । बड़ी ऐतिहासिक होली थी मित्रों वो । क्यूंकि अगर पितामह भीष्म की एक हेडलाईट फ्यूज हो जाती तो महाभारत का अखिल भारतीय टूर्नामेंट कुछ जल्दी ही डिसाइड हो जाता और वेद व्यास की एक बोतल इंक भी बचती और बी. आर. चोपड़ा को महाभारत सीरियल के कुछ ऐपिसोड कम बनाने पड़ते । खैर । जैसी विधि की करनी । अब जिस युध्द को श्री कृष्ण जैसे कूटनीतिक, आर्म्स डीलर फाइनेन्स कर रहे हों, ऊ साला बिना हुए थोडे ही मानेगा । जैसी हरि इच्छा ।

मित्रों, व्सास जी ने गलत खबर उडाई थी कि धृतराष्ट जन्मांध थे । धृतराष्ट की दोनों ऑंखे बचपन में एकदम फस्स क्लास थीं । हुआ यों कि बचपन में एक होली पर धृतराष्ट, पांडू और विदुर तीनों बालकगण् आपस में पिचकारी लेकर होली-होली खेल रहे थे । इसी बीच खेल-खेल में विदुर की पिचकारी से बचने के चक्कर में पांडू ने कलाबाजी खाई तो उनकी पिचकारी की नोंक धृतराष्ट की ऑंख में घुस गई । अब काने धृतराष्ट हस्तिनापुर के राजा बनते तो बड़ी जगहंसाई होती, इसलिए बालक पांडू ने उनकी दूसरी ऑंख में भी पिचकारी की नोंक घूसेड़ कर उन्हें काना राजा के नाम से बदनाम होने से बचा लिया था । इस बात की पुष्टि बहुत बाद में विदुर ने कृपाचार्य से एक अनौपाचारिक मुलाकात में की थी मगर इस बात को ज्यादा तूल नहीं दिया गया था और बात बहुत पहले ही दबा दी गई थी । गदाधारी

भीम ने इस बार दुर्योधन को देख लेने की धमकी दे रखी थी । हुआ ये था कि मकर संक्रान्ति पर दुर्योधन ने भीम की लम्बी पतंग पर हत्था मार दिया था । इसी बात पर दोनो पहलवानों में पहले तो वाक युध्द हुआ । उसके बाद दोनों ने अपनी-अपनी पेन्ट उतार कर लंगोटे भी कस लिए थे पर क्लासटीचर द्रोणाचार्य उधर से निकल पड़े तो युध्दविराम हो गया था । मगर मन में खटास तो आ ही चुकी थी, जो बाद में महाभारत युध्द में जाकर खत्म हुई ।

उधर ब्रज में श्री कृष्ण गोपियों के साथ अबकी नये तरीके से होली खेलने का मन बना रहे थे, लेकिन राधा रानी को उनकी हर प्लानिंग की खबर पहले से ही लग चुकी थी इस लिए वो उनको नंदगांव के बाहर अपने सहेलियों संग घेरने का प्रोग्राम बना चुकी थीं । श्री कृष्ण को पिछले साल ही हस्तिनापुर में बाबा भीष्म से वार्निंग मिल चुकी थी कि ”होली होली की तरह खेलो और थोड़ा बुजुर्गों का भी लिहाज किया करो ।” हुआ ये था कि पिछली होली श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर में मनाई थी और श्री कृष्ण का साथ पाकर सारे कौरवों-पाण्डवों ने वो ऊधम मचाया कि हस्तिनापुर वालों की नाक, कान, ऑंख, गले सबमे दम-दमा-दम करके रख दिया था । और तो और उस साल पहली बार लोगों ने हस्तिनापुर के राजदरबार में रंग चलते देखा था । इस सब के पीछे दिमाग किसका था । वही अपने माखन चोर का । नरक करके रख दिया था । जिधर देखो उघर रंग ही रंग । यहाँ तक की खाने पीने के सामानों तक में रंग घोल कर रख दिया । हस्तिनापुर की बालाओं का तो रंग पंद्रहियों नहीं छूटा था । और छूटे भी तो कैसे, सबसे पक्का रंग तो कन्हा ही ले कर आया था । वो होली लौण्डों को खूब याद रही । सबने श्री कृष्ण से अगली होली पर फिर आने की सिफारिश की थी मगर बुआ कुंती ने श्री कृष्ण के हाथ जोड़ कर कहा ”मोहन! ये ब्रज की होली तुम ब्रज में ही खेला करो, हस्तिनापुर वालों को अगली बार से बख्श देना ।” लेकिन इस बार श्री कृष्ण की होली भी कुछ फीकी पड़ने वाली थी ।
ऐन होली के चार दिन बाद ही कृष्ण के बोर्ड के पेपर शुरू हो रहे थे और बड़े भाई बलराम ने भी श्री कृष्ण को होली पर कम और पढाई पर ज्यादा ध्यान देने की नसीहत दी थी ।

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