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किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

रविवार, 19 नवंबर 2017

गरीबी का मारा अमीर रिक्शेवाला

=> बीस रूपये से एक पैसा कम नहीं लूंगा । दस रूपये में आप रिक्शा चलाइये, मैं रिक्शे पर बैठता हॅंू ।

जनता एक्सप्रेस ने अपने वादा निभाया था । भोलाराम और तमाम दूसरे यात्रियों को उसने इलाहाबाद पहुँचा कर ही दम लिया । ये और बात है कि ट्रेन अपने निर्धारित समय से मात्र चार घंटे ही लेट थी । एहसान ही था भारतीय रेल का सभी यात्रियों पर क्योंकि कल यही ट्रेन पौने आठ घंटे लेट आई थी । समय का क्या है, इफरात में पड़ा रहता है । कम से कम भारत में तो समय की कोई कीमत नहीं होती है । घर तो पहँच ना ही है । चाहे आज पहुँचे, चाहे कल । तत्काल की सुविधा सिर्फ टिकट खरीदने तक ही सीमित है । एक्सप्रेस सरचार्ज किस-किस ट्रेन पर लगाया गया है इसकी जानकारी सिर्फ रेल विभाग के सुपर कम्प्यूटर को ही दी गई है । इंजन चालक से लेकर तमाम दूसरे कर्मचारीगण इस प्रकार की किसी भी जानकारी से अनभिज्ञ हैं । हाँ, यात्रियों की जेब में मुद्रा संकुचन की स्थिति जरूर पैदा हो जाती है । अब देखिये अर्थ और मुद्रा से सम्बन्धित दिक्कतों के लिए हमें वित्त मंत्रालय के सामने जाकर ऑंसू बहाने चाहिए । ये क्या कम है कि किसी रेल दुर्घटना में अगर आपके दोनों हाथ या पांव कट जायें तो रेल मंत्री आपको पचास हजार का चेक सप्रेम पकड़ा देते हैं । अब अगर वो चेक बाउंस कर जाता है तब इसमें रेल विभाग की क्या गलती । अब आप रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के सामने जाकर अपने कटे हुए हाथ-पांव फैलाकर भीख मांगने का गौरव अर्जित कर सकते हैं । भीख मांगना राष्ट्रीय कर्म है । विश्व बैंक और आई. एम. एफ. के सामने जैसे हमारी सरकार कटोरा लिया खड़ी रहती है । कटोरा हमारा राष्ट्रीय बर्तन है ।

देर तो हो ही चुकी थी, घर पहँचने की कोई जल्दी भी नहीं थी इसलिए भोलाराम ने टैम्पों की जगह रिक्शे को तरजीह दी । कंजूस भोलारामजी हर जगह मोलभाव करने से बाज नहीं आते । बड़ी चिक-चिक के बाद आखिर एक हट्टा-कट्टा जवान रिक्शेवाला बीस रूपये पर राजी हुआ । गरीब आदमी से उसके घर का, खेत-खलिहान का हाल चाल पूछिये तो वो जल्दी ही पिघल जाता है । घर जाकर कर थोड़ा सा गुड़ और एक लोटा पानी पिला दीजिए तो कभी-कभी पांच रूपये की बचत भी हो जाती है । समय काटने के लिए और उसकी गरीबी पर हमदर्दी जताने के लिए भोलाराम ने उससे बात करनी शुरू की ।

क्यॅंू  भाई क्या नाम है तुम्हारा?

”सीताराम नाम है बाबूजी ।” उसने थोड़ी देर बाद जवाब दिया ।

”तो सीतारामजी कहाँ के रहने वाले हो ?”

”साहब रीवाँ जिले के सौहागी पहाड़ पर छोटा सा गाँव है हमारा ।”

”यार बोल-चाल से तो तुम कुछ पढे लिखे मालूम देते हो !”

”हाँ बाबूजी, दर्शनशास्त्र से एम. ए किया है मैंने रीवा युनिवर्सिटी से ।”

जान कर भोलाराम को आश्चर्य हुआ और थोड़ा दुख भी हुआ कि एम.ए. पास युवक रिक्शा चला रहा है । भोलाराम ने सीताराम का इंटरव्यू जारी रखा ।

”यार तब तुम कहीं कोई नौकरी क्यूं नहीं कर लेते हो, बेवजह रिक्शा चला रहे हो ।” भोलाराम ने उसको फ्री फंड का काम चलाऊ सुझाव दिया ।

”साहब जी इसी नौकरी के चक्कर में ही तो रिक्शा खींच रहे हैं ।” उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया ।

एका एक भोलाराम की हैरानी बढ गई । ”वो कैसे, क्या किसी मंत्री संत्री को घूस देने के लिए पैसा का जुगाड़ कर रहे हो ?”

”नहीं बाबूजी बात आपने उल्टी कही है । रेवेन्यू डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी के लिए दादा-परदादा की जमीन बेच कर तीन लाख रूपये एक छुटभैया नेता जी को थमाये थे । क्लर्की तो मिली नहीं खेत भी हाथ से निकल गया ।” सीताराम की बातों में दर्द छलछला आया था । भोलाराम को भी उसकी कहानी सुन कर दु:ख हुआ ।

बात बदलने के लिए भोलाराम ने आगामी अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव का जिक्र छेड़ दिया । ”तो भाई सीताराम इस बार वोट किस पार्टी को देने जा रहे हो ।”

”क्या बाबूजी अपने भी किन हरामियों की याद दिला दी । सब साले एक जैसे हैं । किसी एक को भी वोट देना अपने वोट के साथ बलात्कार करने जैसा है ।” सीताराम का मुँह कडुवा हो गया था, उसने सड़क पर खखार कर बलगम थूक दिया ।

”क्यूँ भई, आज देश इतना तरक्की कर चुका है, चाँद पर जा रहा है, न्यूक्लियर रियेक्टर लगा रहा है, गरीबी पहले से कितनी कम हुई है, गाँव-गाँव कितना विकास हुआ है । देश ने साठ साल में इत्ती तरक्की की है और तुम हो कि नेताओं को कोई श्रेय ही देना नहीं चाहते हो ।” भोलाराम ने दलील दी ।

”क्या साहब आप भी पढे लिखे हो कर सरकार के चरके में आ गये । सरकारी आंकड़े नेताओं की ही तरह फर्जी होते हैं । थोड़ी सी अक्ल लगायेंगे तो वास्तविकता सामने आजायेगी ।”

भोलाराम इस पढे-लिखे रिक्श वाले की बौध्दिक बाते सुन कर हैरान हो रहा था । ”तुम सरकारी आंकड़ों को फर्जी कैसे कह सकते हो ?” भोलाराम ने प्रतिवाद किया ।

”क्या साहब, आप जैसे पढे लिखे लोगों को पढाना सरकार के बांये हाथ का खेल होता है । क्या आपने कभी संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव विकास सूचकांक को देखा है । हर साल प्रकाशित होता है । उस सूचकांक में भारत देश का नम्बर 128 वाँ है । मतलब इस दुनिया में 127 देशों में गरीबी हमारे देश से कम है ।

भोलाराम आश्चर्यचकित हो गये । लेकिन सीताराम ने आंकड़े देना जारी रखा ।

”सर जी सरकार कहती है कि भारत में 25 फीसदी लोग ही गरीब हैं लेकिन यू. एन. ओ. के अनुसार भारत में 84 करोड़ लोग ऐसे हैं जो कि हर रोज 20 रूपये भी नहीं कमा पाते हैं । यही आंकड़ा हमारे अर्थशास्त्री डा0 मनमोहन सिंह जी के वर्तमान आर्थिक सलाहकर प्रो अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 की रिपोर्ट में भी प्रकाशित हुआ है । सरकार भी इसे सच मानती है ।”

”फिर 25 फीसदी का आंकड़ा कहां से आया है ? भोलाराम ने जिज्ञासा प्रकट की ।

”सरजी सन 1971-72 से सरकार ने कैलोरी आधारित गरीबी का नया पैमाना शुरू किया है जनता को धोखे में रखने के लिए । सरकार का कहना है कि गाँव में हर रोज अगर आपको 2400 कैलोरी और शहर में हर रोज अगर आपको 2900 कैलोरी का भोजन मिल रहा है तब आप गरीबी की रेखा से ऊपर हैं । यानि की गाँव में रहना वाला व्यक्ति अगर प्रतिदिन 12 रूपये कमा रहा है और शहर में रहने वाला व्यक्ति अगर प्रतिदिन 18 रूपये कमा रहा है तब वह गरीब नहीं है । गरीबी का यह सरकरी पैमाना कैलोरी पर आधारित है, प्रति व्यक्ति आय पर नहीं ।”

”लेकिन नेता तो कहते हैं कि गरीबी का कारण जनसंख्या वृध्दि है ।” भोलाराम ने सीताराम से और आंकड़े निकलवाने चाहे ।

क्या सॉब आप पढे लिखे लोगों को सरकारें भी खूब उल्लू बनाती हैं । आपको नहीं मालूम है तो चलिए मैं ही आप का ज्ञानवर्धन किये देता हँ । जब देश 15 अगस्त सन 1947 में आजाद हुआ था तब हमारी आबादी थी 32 करोड़, जिसमें गरीब थे मात्र 2 करोड़ लोग । ये भारत सरकार का आंकड़ा हैं जिसे सरदार पटेल के करीबी हिम्मत भाई पटेल ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था । आज सन 2009 में भारत की आबादी है 120 करोड़ और गरीब हैं 84 करोड़, ये मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार प्रो0 अर्जुन सेन गुप्ता की 2006 में प्रकाशित हुई रिपोर्ट कहती है । यानि की सन 47 से आबादी बढी है चार गुना लेकिन गरीबी बढी है 20 गुना । कुछ समझे आप । यानि की गरीबी का जनसंख्या वृध्दि से कोई लेना देना नहीं है । इसी तरह से सन 47 में पूर्णरूप से बेरोजगारों की संख्या थी 2 करोड़ आज है 20 करोड़ यानि की 10 गुना बेरोजगारी भी बढ गई है ।”

”फिर इतनी विशाल गरीबी के क्या कारण हैं ?” भोलाराम ने जानना चाहा ।

”इस गरीबी का सीधा कारण है नेता और भ्रष्टाचार । हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी कहते थे कि अगर किसी योजना के तहत एक रूपये दिल्ली से भेजा जाता है तो आम आदमी को सिर्फ दस पैसे ही मिलते हैं । इस गरीबी को मिटाने के लिए कई पंचवर्षीय योजनाएं चलाई गईं, इससे नेताओं की गरीबी तो मिट गई लेकिन जनता और गरीब होती चली गई । इस गरीबी का सबसे बड़ा श्रेय तो उसी हाथ को जाता है जिसने 50 साल देश पर शासन किया और अब कहती है कि उसने देश की गरीबी तकरीबन मिटा दी है । साहब अगर स्विस बैंक में जमा भारतीय पैसों का हिसाब लगाया जाये तो 80 प्रतिशत पैसा इसी पंजे का जमा किया हुआ निकलेगा । देश का बंटवारा इनके कार्यकाल में हुआ, दो तिहाई जम्मू कश्मीर इन्होंने ने ही गंवाया, अरूणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलो मीटर जमीन चीन ने इनकी कायरता के कारण छीन ली, पिछले पांच सालों में देश में जितनी आंतकवादी घटनाएं घटी उतनी तो इराक और अफ्गानिस्तान में भी नहीं घटीं । फर्जी आंकड़ेबाजी तो इतनी है कि 6 महीने में मंहगाई दर 12.5 प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत पर पहँच गई जबकि मंहगाई उतनी ही है । क्या चीज सस्ती हुई है इसकी कोई खबर नहीं है । इन्होंने देश को मात्र पांच साल के अंदर कृषी निर्यातक से कृषी आयतक देश बन दिया । कितना कुछ इन्होंने देश को बर्बाद करने में किया लेकिन फिर भी बेर्शमों की तरह फिर सरकार बनाने का ख्वाब देख रहे हैं । क्या करिएगा, इस खूनी पंजे का धंधा ही यही है ।”

इतना लंबा भाषण सुनने के बाद भोलाराम से रहा नहीं गया मित्रों और एका एक उनका मुँह खुला और आग सी निकली :

”अबे साले! पहले ये बता कि तू भाजपाई है या सपाई है या कामरेडी है । बड़ा आया है भाषण देने वाला । यहीं पर रिक्शा रोक । मैं यहाँ से पैदल चला जाऊंगा । एक पैसा नहीं मिलेगा तुमको । साले! रिक्शावाला बनकर गांघी जी की पार्टी के खिलाफ कनवेसिंग करता है । चल भाग यहाँ से । देश की तरक्की से जलने वाले संघी हो तुम लोग ।”

भोलाराम की ये बातें सुन कर रिक्शावाला खड़े खड़े मुस्कुराने लगा । बोला ”साहब आप का मुहल्ला आ गया है, घर भी आपका अगल-बगल ही होगा । पैसा नहीं देना है तो मत दीजिए, आपके 20 रूपयों से मेरी गरीबी में कोई अन्तर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन अगर आप लोग ऐसी ही सरकारें चुनते रहे तब वो दिन दूर नहीं जब आप भी गरीबी की रेखा के नीचे पहँच जायेंगे ।” इतना कह कर सीताराम वापस अपना रिक्शा लेकर चला गया ।

भोलाराम जी ने अपना ब्रीफकेस उठाया और खुशी खुशी अपने घर की ओर चल दिये, खुश होते भी क्यों न आखिर उनके 20 रूपये जो बच गये थे ।

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