काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

रविवार, 19 नवंबर 2017

चाट का ठेला

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पृथ्वी गृहे, भरतखंडे,जंबूद्वीपे, आर्यावर्त के किसी भी हिस्से में आप भ्रमण कर लीजिए, एक चीज आपको हर जगह मिल जायेगी । क्या ? चाट का ठेला । पढ़ते ही आपके मुंह के किसी कोने में पानी की टोंटी लीक करने लगी होगी । संभालिए एक प्रकार का लिसलिसा पदार्थ आपके होंठों के किनारे से टपकने वाला है । एक आम भारतीय, होटल ताज, ओबराॅय, हयात इत्यादि एक चाट के ठेले पर बिना सोचे समझे कुरबान कर सकता है । कर भी देना चाहिए । जो चीज अपनी न हो उसे बेझिझक कुरबान कर देना चाहिए । खैर । क्या खूबसूरत सी चीज बनाई है बनाने वाले ने । चाट का ठेला । वल्लाह !


कहते हैं, पहले भगवान ने ये दुनिया बनाई, फिर पेड़ पौधे बनाये, फिर पशु पक्षी बनाये और लास्ट में जब उसको लगा कि, बहुत हो गया, अब कोई एक दम से तोड़ू चीज बनाई जाये तो उसने बनाया आदमी । अब जो भी बात रही हो, आदमी बेचारा तो जन्म से ही शरीफ होता है, तो वह पठ्ठा मुंह लटका कर खड़ा हो गया । जब वह शरीफ आदमी हद से ज्यादा मनहूस हो गया तो विधाता ने कहा, ”अबे साले, तेरे कू पूरी दुनिया पड़ी है इन्जॅाय करने को । तू घोड़े की तरह मुंॅह क्यो लटकाये रहता है ?“ आदमी बोला, ”अकेले दिल नहीं लगता, पार्टनर चाहिए बापू“ ।


अब मि. विधाता ने बड़ी मेहनत करके, मार ओवर टाईम करके, एक ठो औरत बनाई । धत्त ! औरत नहीं । लड़की । हाॅं, तकरीबन कोई सतरह-अठरह साल की लड़़की बनाई, जो कि कमबख्त, मेनुफेक्चरिंग मिस्टेक के कारण गलती से खूबसूरत बन गई । अब मि. विधाता लगे उसको दीदे फाड़ फाड़ कर घूरने । पर उस मानस पुत्री ने न तो विधाता को ही लाइन दी और नहीं शरीफजादे मर्दजात से कुछ बोली । गंदे संस्कार । अब उस बखत टी. वी. पर बिग बाॅस – 2 तो आता नहीं था कि कुछ पवित्र संस्कार पायल रोहतगी और मोनिका बेदी से वह सीखती, सो लगी रहती थी संतोशी माता की भजन-आरती में ।


मि. विधाता ने स्टेचूटरी वार्निंग दे रखी थी कि बाग के गेट पर, हर शाम शैतान चाट का ठेला लेकर रोज़ खड़ा हो जाता है, उसके पास मत फटकना और गोलगप्पे, टिकिया, दही बड़े, समोसे मत भकोसने लगना नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।
तो भाई, एक दिन दोनों छोरा-छोरी बाग के गेट पर खड़े हो कर भुनी मूंगफली धनिया और हरी मिर्च की चटनी के साथ टूंग रहे थे कि मि. शैतान, भगवान जी के पट्टीदार, अपना चाट का ठेला लेकर आ गये । फेस्टिवल आॅफर । एक दोना सकोड़ों के साथ एक पत्ता खस्ता, खट्टी चटनी और तीखे दमआलू । भाई, ऐेसे आॅफर जिंदगी में बार बार नहीं आते हैं । दोनों छोरा-छोरी से रहा नहीं गया । विधाता जी भी लेपटाॅप लिए, गूगल पर सृश्टि रचना के लिए नये नये डिज़ाइन सर्च कर रहे थे । दोनों ने आव देखा न ताव, एक-एक पत्ता करारे खस्ते, धांसू गोलगप्पे और दही बड़े सरपोट डाले । घड़े का ठंडा पानी पिया और आसतीन से मुंह पोछ कर वापस उसी गमगीनी पोज़ में । इनोसेंट चाईल्ड ।

लेकिन श्रीमान विधाताजी ने भी कच्ची गोलियाॅं नहीं खेली थीं । उन्होंने स्पाई कैमरे अपने फार्म हाउस के कोने कोने में फिट किये हुये थे । उनके लेपटाॅप ने चाट स्कैण्डल को लाईव टेलीकास्ट किया । और फिर वही हुआ जो सबको पता है । सेब-वेब वाली कहानी तो झूठी है । असली किस्सा तो शैतान मिंया के चाट के ठेले का था । जो भी हो छोरी-छोरा के मुंह खून तो लग ही गया था । सो उनकी औलादों में भी चाट के प्रति जो हार्दिक प्रेम जब तब प्रकट होता रहता है तो ये सब जेनेटिक डिसआर्डर का नतीजा है, वांशिक रोग है, हेरिडेटरी प्राब्लम, जो कि अब लाइलाज हो गया है । फिर इससे नुकसान ही क्या है । 25-50 रू0 का खर्च और रात भर के लिये गेस्ट्रिक ट्रबुल, खट्टी डकारें, एसिडिटी, अपच और सुबह-सुबह निस्तारण में जलन और मरोड़ । लेकिन एक दोना करारी आलू टिकिया का आनंद इन सब प्रताड़नाओं से बहुत ऊपर है । जैव्हिक परमानंद । यह बात सब नहीं समझ सकते ।


कभी लाईन में लगे हैं आप चाट की दुकान पर । अहा ! क्या रमणीक दृश्य होता है । एक तरफ सुशील कन्यायें, वधुएं, मातायें, भाभियाॅं, अपने सगे भाईयों की सगी बहनें कंधे से कंधा रगड़ाते हुये गोलगप्पे की लाईन में  लगी हैं । तो एक तरफ उनके पति परमेश्वर या सलोने जीजाजी नहीं तो पूज्य पिताजी, और कोई नहीं मिला तो रक्षालु भाई साहब टमाटर चाॅप भकोसने के बाद खस्ता दमआलू सरपोट रहे हैं । चिरंजीवी चाट वाले मुन्नू भाई साहब फुर्ती से तड़ातड़ दही बड़ों पर मीठी चटनी, नमक मिर्ची और हरे धनिये की लेयर बिछा रहे हैं । और इस वक्त आप क्या कर रहे हैं ? आप इस वक्त मुंह में एक बाल्टी लार संभाले हुए अपने करारे-चटपटे करेलों के इंतजार में खड़े हैं और टाईम पास के लिए चटोरी लड़कियों का सिंहावलोकन कर रहे हेैं ।


ओये होये, आपने भी तो गोलगप्पे गटके होंगे कभी न कभी । याद कीजिए । दस मिनट तक इंतजार में भावविभोर होने के बाद जब आपका नंबर आया होगा तो अपने ने भी एक दोने की विनती की होगी । अब आप सभी 8-10 प्यासे लोग, पद्मश्री मुन्नू भईया के ईर्द-गिर्द बडे़ अनुशासन से गोला बनाकर खड़े हो गये । मुन्नू जी ने सबको पहले दो राउंड करारे गोलगप्पों में उबली मटर के साथ खट्टा जलजीरा चलाया । अब तीसरा राउंड उन्होंने मटर की जगह दम आलू के टुकड़े और मीठी चटनी के साथ जलजीरा चलाया । इस के बाद एक राउंड मटर मीठी चटनी, दही और लाल मिर्ची के साथ खट्टा जलजीरा । इस के बाद एक राउंड सकोड़े के गरम और तीखे पानी के साथ । अब 3 राउंड उबली मटर के साथ खट्टमिट्ठा जलजीरा । अब 10 गोलगप्पे लीलने के पश्चात बाकी लोग तो पालक और बैंगन के पकोड़ांे की तरफ लपके मगर आप ने नाक और आंॅख से बहते पानी को बांह से पोछकर एक पत्ता गोलगप्पे की फिर फरमाईश कर डाली । डट कर भिन्न भिन्न प्रकार के 20 गोलगप्पे डकारने के पश्चात अब एक दोना कुरकुरी आलू की टिकिया नहीं खाई तो फिर आपने क्या चाट खाई । देशी घी में देर तक तलकर कुरकुरी की गई दो टिकियों पर एक लेयर मटर की फिर एक-एक लेयर खट्टी और मीठी चटनी की, फिर दो चम्मच दही । उसके बाद पांच तरह के नमक, पिसी हुई लाल मिर्ची, हरा धनिया और अंत में थोड़ी सी कुरकुरी नमकीन । अब जो भाप छोड़ती हुयी टिकिया आप चम्मच से तोड़कर मुंॅह में डालते हैं, तब उस क्षण आपके दिमाग में उस टिकिया के सिवाय कुछ नहीं होता है । बस आप होते हैं और आपके हाथों में एक दोना करारी आलू की टिकिया । दुनिया के सारे गमों को कुछ देर के लिए ये एक दोना आपसे दूर कर देता है । और थोड़ी देर बाद एक नया गम सताता है कि साली टिकिया कुछ जल्दी ही खत्म हो गई । अब अगर आपका हाज़मा कमज़ोर है तब आप एक प्लेट दही बड़े खाकर आज शाम के चटोरे अभियान पर बे्रक लगायेंगे, नही तो बिना एक प्लेट खस्ता दमआलू और एक कटोरी सकोड़े खाये आत्मा को चैन मिल सकता है । नहीं मिल सकता । तो खाये जाओ प्यारे । रूको मत। फिर ये हसीं शाम हो, न हो ।


तो भाई लोगों, इस तरह श्री मुन्नू जी हर शाम समाज के हर वर्ग की, बच्चा-बच्ची, किशोर-किशोरी, युवक-युवती, प्रोैढ़-प्रौढ़ा, वृद्ध-वृद्धा, सभी लोगों की आत्मा, जो कि जीभ में बसती है, तृप्त करते हैं । और श्रद्धालुओं को भी देखिये, वो मुन्नू जी की व्यस्तता का सम्मान करते हैं । अनुसाशनपूर्वक अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैैं और मुन्नू जी के काम में व्यवधान भी नहीं डालते ।


अब जैसे मुन्नू जी हर एक राउंड गोलगप्पे बांटने के बाद एक गंदे से चीकट कपड़े से अपने हाथ पोछते हैं और फिर उसी हाथ से दमआलू निकालने लगते हैं, लेकिन लोग उनकी इस हरकत पर ध्यान नहीं देते । अब रोज़-रोज़ कोई नई तौलिया तो लेकर आयेगा नहीं । इतना तो एडजस्ट करना ही पड़ता है । 7 प्लेट दही बड़ों का आर्डर है । बिजली की फुर्ती से वे बड़ों पर दही कलछुल से उलच रहे हैं । इसी बीच एक मक्खी बीच में आ गई और उसके ऊपर मीठी दही की पर्त, फिर मीठी चटनी की एक पर्त, फिर नमक-मिर्च, धनिया वगैरह । ग्राहक को पता भी न लगा होगा कि आज कौन सा नया मसाला दही बड़े में पड़ा था ।
दशहरे से दीपवाली तक शाम से ही कीट-पतंगों, कीड़ो-मकोड़ों का राज शुरू हो जाता है । यहाॅं तक की घरों के खिड़की-दरवाजे़ बंद करने पड़ते हैं । लेकिन कीड़े-मकोड़ों से डर कर मुन्नू जी क्या अपनी चाट की दुकान बंद कर देंगे  । त्योहार और मेलों का महीना । बिज़नेस का चऊचक चांस । अब ऐसे में चाट खाने वाले भी उनकी इस मजबूरी को समझते हैं और अगर आलू की टिकिया के साथ कुछ छोटे-छोटे कीड़े भी प्लेट में चले जायें तो उसे जीरा ही समझा जाता है । मकोड़े के पंखों को प्याज के छिलकों सा सम्मान दिया जाता है ।


मुन्नू जी जुलाई-अगस्त की चिपचिपाती गर्मी में पसीने में डूबे अपने मिशन में लगें हैं । पसीना की धार उनके माथे से बह रही हैं, कुर्ता पसीने से तर है, वो उसी हाथ से माथे का पसीना भी पोंछ रहे हैं और उसी हाथ से गोलगप्पे भी सप्लाई कर रहे हैं, पर खाने वालों को कोई दिक्कत नहीं है। जैसे मुन्नू जी का मिशन है, जैसे भी हो, चाट खिलाना, वैसे ही खाने वालों का मिशन है, जैसे भी हो, चाट खाना । एक जबरदस्त मुचुअल अंडरस्टैंडिंग रहती है दोनों पक्ष में । अब भाई चाट का मज़ा लेने है तो थोड़ा बहुत काॅम्प्रोमाईज तो करना ही पड़ेगा ।


तो मित्रों, देखा आपने, जिस तरह से दारू के दीवानों को आप कहीं भी, किसी के भी साथ, किसी भी पैमाने में, कैसे भी, दारू का निमंत्रण दीजिए, उनके लिए सिर्फ दारू ही मुख्य है, बाकी सब गौण, वैसा ही हाल चाट के शौकीनों का भी होता है। अब इतना सब देखेंगे तो इंजॅाय कर चुके आप डिलिशियस चाट । अब क्या चाट खाना छोड़ देंगें आप कृष्ण मोहन के कहने पर । सब जगह कुछ न कुछ घिनौनी चीज़ निकल ही आयेगी, तो क्या लाईफ इंजाॅय करना बंद कर देंगें आप । नहीं न । तो छोड़िये बेकार की बातें और हो जाये एक-एक प्लेट करारे खस्ता और फिर दही बड़े ।

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