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शनिवार, 18 नवंबर 2017

सबसे प्राचीनतम ब्लॉगर ।

=> मित्रों, मैं हूं दुनिया का सबसे पुराना ब्लागर । मेरा नाम कपालभंजक है । मैं पाषाण काल का जीव हूं जो कि अफ्रीका के किसी कोने-अतरे में निवास करता है । मैं अपने कबीले का सेनापति हूं और साथ ही कबीले का सबसे श्रेष्ठ कवि भी । कबीले के सरदार ने कपालभंजक नाम मुझे दो कारणों से दिया है । एक तो मैं युध्द के दौरान बड़ी वीरता का प्रदर्शन करता हूं और अपने भारी भरकम हथियार से शत्रु के कपाल पर प्रहार कर उसके दो टुकड़े कर देता हूं । इसके अलावा अगर कबीले में सरदार का कोई शत्रु पैदा हो जाता है तब उसको बेड़ियों से जकड़ कर मेरी झोपड़ी में छोड़ दिया जाता है । मैं दुर्दांत कवि जो हमेशा श्रोताओं की कमी का रूदन करता रहता हूं, उस नासमझ शत्रु पर अपनी 5265 कविताओं के साथ हमला बोल देता हूं और कुछ समय पश्चात वह व्यक्ति अपना कपाल दीवार पर पटक-पटक कर देह त्याग देता है ।

सो मित्रों मेरी इस काव्य प्रतिभा के कारण ही सरदार पिछले 19 वर्षों से हमारे कबीला का बेधड़क सरदार बना हुआ है लेकिन श्रोताओं की कमी मुझे हमेशा अखरती है । यहां तक की कबीले के कविसम्मेलन में भी मुझे सबसे अंत में बुलाया जाता है, जब सिर्फ टेंट और दरी वाले ही शेष रहते हैं । इन सब हार्दिक और काव्यजनक कष्टों के कारण ही अब मैं ब्लॉगिंग पर उतर आया हूं । अपनी सारी काव्य रचानायें मैंने अपने ब्लॉग “www.kapalbhanjak.stoneage.com” पर पोस्ट कर दी हैं लेकिन सबसे प्राचीनतम ब्लागर होने का एक कष्ट यह भी है कि उन कविताओं पर मुझे स्वयं ही टिप्पणी करनी पड़ती है । हर हफ्ते काउंटर के हिट्स खुद ही बढ़ाने पड़ते हैं और स्टोनऐज डॉट कॉम जो कि मेरा ही बनाया हुआ पोर्टल है, की नंबर एक रेटिंग भी अपने ब्लॉग को देनी होती है ।

मेरे कबीले के ओझा ने मुझे बताया है कि मेरी मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी और 21 वी सदी में इंटरनेट पर ब्लॉगर्स मक्खियों की तरह भिनभिनानें लगेंगे तब मेरी कविताओं की पूछ एका-बढ़ जायेगी । बहुत से उदयीमान कवि और बम्फाट ब्लॉगर्स मेरी कविताओं को कॉपी करगें और ढेरों टिप्पणियाँ कमायेंगे । ऐसे फोकट के कवियों के लिये ही मैं अपने ब्लॉग पर ताला और डू नॉट कापी का बोर्ड नहीं लगा रहूं ।

मुझे यह सोच कर खुशी मिलती है कि मैं ब्लागर्स कवियों की आने वाली पीढ़ी के लिये कुछ कर के जा रहा हूं । मेरी कविताओं से वे इंटरनेट और कविसम्मेलनों में बहुत नाम कमायेंगे । नाम के साथ साथ उनको घर ले जाने के लिये तरकारी, अण्डे और पादुकायें भी मिला करेंगी क्योंकि इनका भी मुझे व्यक्तिगत अनुभव रहा है ।

अंडे, सड़ी सब्जियॉं मेरे लिये हमेशा से ही उपयोगी और स्वास्थवर्धक रहीं हैं लेकिन मुझे सबसे ज्यादा परेशान मेरे कबीले के फटीचर व्यंगकारों ने किया है । इन कमीनों को कभी साहित्य की समझ नहीं रही और ये मेरी कविताओं के सबसे बड़े दुश्मन रहे हैं । काश मुझे इन्हें झोपड़ा बंद करके कविता सुनाने का मौका मिल पाता । ये चिरकुट बड़े ही ताड़ू होते हैं । एक निश्चित दूरी से ही फिकरे कसते हैं और मुझे पास आता देख चप्पलें जेब में रख सरपट भाग निकलते हैं । मुझे डर है कि इक्कीसवीं सदी में भी मेरी कविताओं पर इस जीव के हमले कम नहीं होगें । लेकिन मुझे क्या मैं तो अपनी हाथी की चाल से चला जा रहा हूं अपनी कविताओं को गुनगुनाते हुये भोंपू पर । ही ही ही । वाह, वाह क्या बकवास लाईनें दिमाग में आयीं हैं । आज ही नये कैदी पर ट्राई करूंगा । साला पहली ही लाईन सुनते ही खुशी के मारे मुझ पर जान झिड़क कर मर जायेगा  । आप भी सुनिये ……
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भैंस के पूंछ हिलाने से 
चलती है खुश्बूदार हवा । वाह वाह ।

21वी सदी के हिन्दी के कवि ब्लागर्स कृपया इस लेख को अपने हृदय पर लेने की कृपा न करें । मेंरी कवितायें अफ्रीकन लिपि में हैं जो कि भारतीय कवियों के लिये दुरूह हैं ।

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