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शनिवार, 18 नवंबर 2017

मौसम बड़ा बेइमान है

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लीजिये साहब बरसात आ गई । अब की बार वक्त पर आ गई । अखबार वाले कह रहे थे कि पिछली बार तो बेवक्त भी नहीं आई थी । आनी भी चाहिये अगर सर्दी, बसंत और गर्मी, ठीक वक्त पर आ सकते हैं तो बरसात को भी टाईम का पाबंद होना चाहिये । पाबंदी जरूरी है । हमारे बॉस का भी यही कहना है कि हर काम टाइम पर होना चाहिये, हालांकि प्रात: स्मरणीय श्री बॉस को दशकों हो गये प्रात: काल में बिस्तर छोडे हुये । छोड़िये उनका क्या । वे तो बॉस हैं । बरसात आ गई है । बाहर झमा झम पानी बरस रहा है और धर्म पत्नी का आग्रह है कि ‘आज आफिस मत जाईये, पहली बरसात है, इसका आनंद लेना चहिये । कहीं घूमने चलते है । मौसम बड़ा ही सुहावना है, यानि की बेइमान है । प्लाजा में नई भोजपुरी फिल्म लगी है ‘सावन में साजन’ और पड़ोस वाले पांडे-पड़ाईन उसकी बड़ी तारीफ कर रहे थे ।’ एक बार तो मुझे अपने श्री बॉस का श्रीमुख याद आया फिर याद आया कि आज तो संडे है और आज के दिन अगर मैं आफिस न भी गया तो कोई पहाड़ नहीं टूट पडेग़ा । और फिर याद आयी मेरी सेकेंड हैंड साइकिल जिसका कुत्ता पिछले दो सप्ताह से फेल हैं और दोनो ब्रेक टकराने के बाद ही आज कल लग रहे हैं । उनको दुरस्त करवाने का सुनहरा अवसर इतवार होता है । इस लिये फिल्म केंसिल क्यों कि धर्म पत्नी जिस कैरियर पर बैठेंगी उसका भी नट बोल्ट गिर गया है ।

‘फिल्म न सही तो फिर बेसन ही ले आओ । बरसात में गरमा गरम पकौड़ों का अपना ही आनंद है । प्याज, अदरक, हरी मिर्च वगैरह घर में हैं ही ।’ इतना कह कर उसने झोला और छाता पकड़ा दिया । हम बरसात का आनंद लेते हुये खरमा खरमा पनसारी की दुकान पर पहुचे । उसे घुन रहित बेसन का ऑर्डर दिया, लिफाफे में पाव भर बेसन लिया और जनता पान भंडार कि तरफ बढ़ लिये । इतनी देर में हमे यह पता चल चुका था कि हमारा छाता भी रिपेयरिंग मांग रहा है क्योंकि हमारी बुशर्ट पीछे से गीली हो चुकी थी ।

जनता पान भंडार वाले से हमारा पुराना याराना है इसलिये वो हमको देखते ही ज़र्दे वाला पान बनाना शुरू कर देता है और उसका हिसाब अपने रजिस्टर में हमारे नाम के आगे चढ़ा देता है । क्योंकि हमारा आग्रह सदा से यही रहा है कि भइया अपने पान का हिसाब तुम महीने महीने कर लिया करो । ये रोज रोज की अठन्नी चवन्नी हमसे नहीं दी जायेगी ।

पान खाकर, एक हाथ में झोला, झोले में बेसन और दूसरे हाथ में छाता लेकर हम घर की तरफ बढ़े । बुशर्ट पीछे से पूरी तरह भीग चुकी थी और जीभ भी जरा सी कट चुकी थी क्योंकि जनता पान भंडार वाले ने चूने का प्रयोग इफरात से किया था । अपनी किस्मत को कोसते हम घर की तरफ लपके जा रहे थे कि तभी पीछे से पांडे ज़ी की आवाज सुनाई दी । पलट कर देखा तो वो भी एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में ब्रेड लिये चले आ रहे थे । हमने इस बरसात में निकलने का कारण पूछा तो उन्होंने भी वही पत्नी परायणता का नारा बुलंद किया जिसके मारे हम भी टुटहे छाते में भीगते फिर रहे थे ।

आते ही उन्होंने समाचार दिया कि बरसात में कभी चप्पल पहन कर नहीं निकलना चाहिये क्योंकि उससे उछलने वाले छींटों से पैंट या पाजामा गंदा हो जाता है, जैसे कि मेरा पाजामा गंदा हो चुका है । मैं हतप्रभ और दुखी हो कर पीछे पलटा और अपने पाजामे का मुआयाना करने लगा । पांड़े जी ने हमारे चप्पल को घटिया बताया और हमने पांड़े जी का समर्थन किया । हमने बातचीत के विषय को बदला और प्लाजा में लगी हुयी भोजपुरी फिल्म की बात उठायी । पांड़े जी ने बताया कि फिल्म हाउस फुल जा रही है और टिकट का इंतजाम उन्होंने ब्लैक में किया था । हमने महसूस किया कि ब्लैक वाली बात पर उनका सीना कुछ ज्यादा ही फूल गया था और उनके शब्दों से रईसी टपकने लगी थी । इसी बीच एक लंबी कार हमारे बगल से सर्र से निकल गई जिसके पहियों से उछला कीचड़ हम दोनों के कपड़ों को तरबतर कर गया । पांड़े जी ने उस लंबी कार वाले को गला फाड़ कर गरियाया और हमने उनका समर्थन किया । उस लंबी कार वाले का बहुत बहुत धन्यवाद जिसने समाजवाद का कीचड़ उछाल कर पांड़े जी को मेरे स्तर तक पहुंचा दिया था। अब हम दोनों के कपड़े एक जैसे, एक ही रंग में, और एक जैसी गंध वाले हो गये थे । इन कपड़ों में हमारा स्वागत हमारी पत्नियों के सिवाय और कोई कर भी नहीं सकता था इसलिये हम घर की तरफ तेज चाल से चल दिये ।

हमारा गेटअप देख कर धर्मपत्नी ने आश्चर्य प्रकट किया और फिर बेसन सही सलामत देख कर संतोष की सांस ली । धर्मपत्नी ने आग्रह किया कि आप कपड़े बदल कर हाथ मुंह धो लें क्योंकि कीचड़ सिर्फ कपडों पर ही नहीं मुंह पर भी लगा है । इतना कह कर वे प्याज काटने चली गयीं और मैं गुसलखाने में हाथ मुंह धोने चला गया । अब बस पकौड़ों का इंतजार था । मैं हाथ मुँह धोकर, कपड़े बदल कर ड्राइंग रूम में बैठा पकौड़ों का इंतजार करने लगा । थोड़ी देर में पत्नी ने सूचना दी कि नमक भी घर में नहीं और अगर बिना नमक के पकौड़ों नहीं खाने हैं तो जा कर प्लीज दुकान से नमक ले आईये । हमारे लिये ये सूचना कतई सुखद नहीं थी क्योंकि हम उस प्रक्रिया को दोबारा नहीं भोगना चाहते थे ।

बाहर पानी झमा झम बरस रहा था और मैं सोच रहा था कि ऐसी बरसात से जेठ की लू भली। इतना सब भोगने के बाद हमारा मिजाज काफी हद तक बिगड़ चुका था क्योंकि बिजली भी जा चुकी थी।

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