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शनिवार, 18 नवंबर 2017

ट्रैक्टर की सवारी ।

मित्रों बहुत समय पहले कक्षा 6 की हिन्दी की किताब में मैंने एक व्यंग लेख पढ़ा था साइकिल की सवारी । पढ़ कर आनंदित हुआ था । लेखक ने साइकिल सीखने में बड़ी मेहनत की थी और शायद वह सीख भी गया हो लेकिन उसने सीखने की प्रक्रिया में अपने घुटने कितनी बार तुड़वाये, कितनी बार कोहनी छिली और कितने पाजामों का सत्यानाश किया होगा वह वही जानता है या फिर उसकी धर्मपत्नी ।

साइकिल सीखने में छोटी मोटी दुर्घटनाएं होती रहती हैं और हर साइकिल चालक की अपनी राम कहानी होती है । मेरी भी है । साइकिल चलाने के चक्कर में मैं पड़ोसी के आंगन में वाया उसकी छत गिर पड़ा था । ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था । दांत सभी सलामत थे बस दांये हाथ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था, नाक पर चार टांके आये थे और माथे पर भी एक कट का निशान हमेशा के लिये चस्पा हो गया था । इस घटना के बाद मेरे चेहरे का भूगोल काफी हद तक बदल गया । बात दरअसल यह हुयी थी कि मैं जिस साइकिल की सवारी करना चाहता था वह मामा जी की थी और उस दिन उन्होंने उसमें ताला लगा रखा था । फिर मैं छत पर किरायेदार के लड़के की पतंग उड़ाने जा पहुंचा । पतंग पर कोई ताला नहीं लगा था । उस पतंग को लेकर में अपनी छत से होता हुआ पड़ोसी की छत पर जा पहुंचा और उसकी छत से उसके पक्के आंगन में ।

एक बार में अपने छोटे भाई को साइकिल के डंडे पर बिठा कर आ रहा था । एकाएक मैंने उससे कहा कि देखो मैं हाथ छोड़ कर भी चला सकता हूं । वह इतना छोटा था कि मना भी न कर पाया । बगल में ही एक चौड़ा नाला बह रहा था । साइकिल को पता नहीं क्या सूझी की वह हाथ छोड़ते ही नाले की तरफ लपकी और पलक झपकते ही दोनो भाई नाले में गंगा स्नान कर रहे थे (वह नाला आज भी गंगा जी में ही गिरता है) । अगल बगल के लोगों ने तुरंत हम दो सकुमारों को नाले से बाहर निकाला और बगल के हैण्डपाईप से पानी लाकर दुबारा स्नान करवाया ।

तो मित्रों, साइकिल की सवारी के अपने मजे हैं । मगर क्या आपने कभी ट्रैक्टर की सवारी की है । कुछ लोगों ने जरूर की होगी । गांव-दिहात के मजे लूटने वाले बहुत से लोगों ने तो बकायदा ट्रैक्टर चलाया होगा । इधर कुछ दिन हुये मुझे ट्रैक्टर की सवारी करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । मैं एक सत्संग परिवार से जुड़ा हुआ हूं । बीसियों हजार सत्संगियों का जमावड़ा एक छोटे से कस्बे में हुआ । तीन दिन का सत्संग कार्यक्रम था । मैं सेवा कार्य में लगा हुआ था । अगले दिन सत्संग कार्यक्रम का समापन था और वापस लौटने वाले सत्संगियों के लिये पूरियां तैयार हो रही थीं । रात के करीब ग्यारह बज रहे थे । एक ट्रैक्टर खिचड़ी के बड़े बड़े भगौनों को धर्मशालाओं में पहुंचा कर लौटा था । तभी मैंने देखा कि तमाम बच्चे और युवाओं ने उस ट्रैक्टर को घेर लिया और उसकी सवारी करने के लिये मचलने लगे । मैंने अपने पास खड़े युवक से पूछा कि क्या माजरा है । ट्रैक्टर की सवारी के लिये इन बच्चों में जो कि संपन्न घरों के थे इतनी लालसा किस लिये है । उसने बताया कि यहां ट्रैक्टर की कोई बात नहीं है ये सब ट्रैक्टर चालक श्री देवधर जी का कमाल है । ये सब उनकी ड्राविंग के मुरीद हैं । मैंने सोचा कि चलो आज हम भी ट्रैक्टर की सवारी करेंगे ।

मित्रों हम उस ट्रैक्टर के साथ लगी ट्राली पर सवार हो गये । मेरे साथ और भी नवयुवक थे । मैंने सोचा कि आज की इस यात्रा की मोबाईल पर फिल्म बनानी चाहिये । इसके पहले की मैं मोबाईल जेब से निकालता चालक देवधर जी ने ट्रैक्टर को गियर में डाल कर एक्सीलेटर दाब दिया । मैं हतप्रभ रह गया देवधर जी की चपलता देख कर । उन्होने अत्यधिक कुशलता से उस ट्रैक्टर को एक स्पोर्ट्स कार में बदल दिया था । ससुरी फरारी का भी यह पिकअप नहीं होगा जो पिकअप उस ट्रैक्टर ने लिया । मैं ट्रैक्टर के उस रॉकेटनुमा पिकअप से ऐसा लड़खड़ाया कि मेरा कुर्ता और हाथ ट्राली के फर्श पर फैली खिचड़ी में सन गये । अच्छा ही हुआ जो मैंने मोबाईल नहीं निकाला था वरना वह छिटक कर कहां समाता पता ही न चलता ।

दस फिट चौड़ीं गली में देव बाबू ने जो फर्राटा भरा कि लड़कों की चीखें निकल गयीं । छोटी नालियों और गङ्ढों से जब वह ट्राली गुजरती तो रीढ की हड्डी में जोरदार झटके लगते थे । ट्रैक्टर पर सवार युवको ने मारे खुशी या डर या पता नहीं किस कारण से चिल्लाना शुरू कर दिया । देवबाबू तो इस चिल्लहटो के आदी थे उन्होंने इस चिल्लहटो पर कोई ध्यान नहीं दिया और ट्रैक्टर को उड़ाने में लगे रहे । अब मैं समझा कि क्यों युवक युवतियों में ट्रैक्टर की सवारी के लिये इतनी उत्कंठा ठाठें मार रही थी । वो सब इस छोटे से कस्बे में डिजनी लैण्ड का मजा लेना चाहते थे । गजब का थ्रिल महसूस हो रहा था उस ट्रैक्टर ट्राली पर बिराज कर । इस थ्रिल में रोमांच के साथ साथ एक डर भी था ट्राली से छिटक कर सड़क पर गिर पड़ने का । इधर देवधर बाबू तो जैसे कान में तेल डाल कर ट्रैक्टर उड़ा रहे थे । मैं भी ट्राली की दीवार को दोनों हाथों से जकड़ कर चिल्ला रहा था । ट्राली पर बैठने में ज्यादा थ्रिल था क्योंकि एक तो उसमे शॉकर नहीं होते हैं और दूसरा वह लहराती भी ज्यादा है ।

ट्रैक्टर गली से निकल कर रोड पर आ गया । रोड पर उसने अपनी फुल स्पीड पकड़ी तो हमारे दिल ने टाप गियर में धड़कना शुरू कर दिया । रोड तकरीबन खाली थी । जो इक्का दुक्का लोग सड़क पर थे भी उन्होंने उस ट्रैक्टर की हैवानों सी रफ्तार देख कर और उसपर सवार लड़कों की चीखें सुनकर तुरंत रोड छोड़ देने में ही भलाई समझी । श्री देवधर बाबू जी ब्रेक का इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर करते हैं मानों एक बार ब्रेक लगाने पर उनकी जेब से बीस रूपये खर्च हो जाते हों । उनका मानना है कि भगवान जी ने सबको एक सा बनाया है । आंखें भी लगभग सभी को दे रखी हैं इसलिये लोगों को अपनी लाखों करोड़ों की जान बचाने का जो मूलाधिकार संविधान ने उन्हें दे रखा है उसका उन्हें दिल खोल कर इस्तेमाल करना चाहिये । सड़क पर चलते लोग अपनी जान बचाने के लिये अनुच्छेद 21 में दिये मूलाधिकार का चाहे प्रयोग करते हों या नहीं पर अपनी टांगों का इस्तेमाल जान बचाने के लिये सरपट भगाने या छलांग लगाने में तो जरूर कर रहे थे । पक्की बात है, मैंने खुद उस दिन अपनी चार चार आंखों से देखा था । लोग बाग ऐसे कूद कूद कर भाग रहे थे मानों मथुरा के राजपथ पर कंस का कोई बिगड़ैल पुत्र रथ दौड़ा रहा हो और प्रजाजन अपनी जान बचाने के लिये राजपथ से दूर भागे जा रहे हों । रोड पर डिवाइडर लगे हुये थे । थोड़ी थोड़ी दूर पर जहां डिवाइडर नहीं थे देवबाबू वहां पर ट्रैक्टर को बांये से दांये लहराते और फिर दांये से बांये ।

रास्ते में हमें कुछ गधे (वो जो कि सफेद कलर के होते हैं, चार टांगों वाले, जिनकी पूंछ भी होती है और कान इत्ते बड़े की मन करे अभी उमेठ कर धर दो) खड़े मिले । वो वाकई में गधे थे और यह बात श्री देवधर बाबू भी जानते थे कि यह साले जान दे देंगे लेकिन हटेंगे नहीं इसलिये उन्होंने ट्रैक्टर को लहरा कर दूसरी साइड कर लिया । गधों ने ट्रैक्टर ट्राली पर कुछ चिल्लाते हुये लड़कों को देखा तो मन ही मन हंसे होंगे ‘ये इंसान भी अजीब जानवर होते हैं । लगता है गाड़ी पर पहली बार बैठे हैं जो इत्ती खुशी मना रहे हैं या फिर इनको भी बकरों की तरह काटने के लिये कसाई के यहां ले जाया जा रहा है ।’ एक गधा तो वाकई में हमलोगों को चिल्लाते देख कर सड़क के बीचों बीच आ गया था । पहली बार देवधर बाबू ने जज्बातों को काबू में कर के ब्रेक पर पांव धरा नहीं तो ब्रेक महाराज तो कैजुअल लीव का मजा ले रहे थे ।

एक दूसरे पर गिरते पड़ते, चीखते चिल्लाते हम लोग हाईवे पर पहुंचे । वहां श्री देवधर बाबू ने हम सब को कुल्फी खिलाई । शायद इसलिये क्योंकि उनको भी हमेशा ऐसी चीखने वाली सवारियों का टोटा पड़ा रहता होगा जैसे कवियों को श्रोताओं की कमी खलती है। समय देख कर मैंने देवधर जी से कहा कि जान की अमान पाऊं तो इंटरव्यू टाईप प्रश्न पूंछ लूं । वो पहले तो घूरकर देखे फिर मुस्कुरा कर इजाजत दी ।
मैंने प्रश्न दागा । ट्रैक्टर कम से कम 60 किलोमीटर/घंटे की रफ्तार पर तो चल ही रहा था । वो बत्तीसी निपोर कर हंसने लगे । कहे मालिक ने ट्रैक्टर की स्पीड 40 किलोमीटर/घंटे पर बंधवा दी है क्योंकि एक बार मैंने ट्रैक्टर से उसकी 3 बकरियां कुचल दी थीं ।

मैंने दूसरा प्रश्न दागा । आपको हाईवे पर ट्रैक्टर दौड़ाने में आनंद आता है कि खेत में । उन्होंने उत्तर दिया कि खेत में सन्नाटा रहता है । जब तक किसी की चीखने की आवाज न सुनाई पड़े तब तक ट्रैक्टर चलाने में मजा कहां । मैंने सहमति में सिर हिलाया । रास्ते भर मैं भी खूब दम लगा कर चीखता आया था ।

मैंने तीसरा प्रश्न दागा । अब तक आप कितनों को ऊपर पहुंचा चुके हैं । उन्होंने घूर कर देखा और कहा नो पर्सनल क्वेश्चंस । क्या जेल भिजवाने का इरादा है । इसके बाद वे फिर अपनी सीट पर विराजमान हो गये । वाकई में बड़े चालाक चालक हैं देवधर जी ।

वापसी में फ्लाईओवर के नीचे जहां काफी अंधेरा था एक साइकिल सवार अचानक ट्रैक्टर के आगे आगया । ट्रैक्टर की हेड लाईट या तो थी नहीं या फिर देव बाबू ने थ्रिल के लिये जलायी नहीं थी । साइकिल सवार जब एक दम आगे आ गया तब देवधर बाबू ने बड़ी कुशलता से उस अकुशल साइकिल सवार की जान बख्श दी और आगे बढ़ गये । बेचारा साइकिल सवार । उस अंधेरे में अगर वह कुचल जाता तो उसको पता भी न चलता कि वह ट्रैक्टर के नीचे आया था कि ट्रक के । लेकिन इस घटना पर एक पुलिस वाले की नजर पड़ गयी । वह चिल्लाया और एक थ्री व्हीलर पर बैठ कर उसने ट्रैक्टर का पीछे करने का दुस्साहस भी किया लेकिन बाद में थ्री व्हीलर वाले ने ही शायद कहा होगा साहब आपको ट्रैक्टर के पीछे से जो करना हो कर लो ट्रैक्टर के आगे जा कर मुझे अपना थ्री व्हीलर नहीं तुड़वाना है । वह देवधर बाबू की स्टाईल से बखूबी परिचित था । पुलिस वाले ने भी अपना इरादा बदल दिया और वो वापस लौट गये ।

तो मित्रों इस तरह हम चीखते चिल्लाते वापस लौट आये । ट्रैक्टर ट्राली से उतरे तो शरीर के कई पुर्जे हिल चुके थे । कुर्ता और पाजामा तो ट्राली के फर्श पर पड़ी खिचड़ी में कब का सन चुका था । हमारे उतरते ही बच्चो की एक दूसरी टीम ट्राली पर सवार हो गयी लेकिन देवबाबू तब तक किसी दूसरे काम में व्यस्त हो गये थे ।

आपके अवलोकनार्थ देवबाबू के ट्रैक्टर और उसकी ट्राली की फोटो हम आप के सामने पेश करते हैं  । देवबाबू की इसलिये नहीं दिखायेंगे क्योंकि उन्होंने कहा था कि पुलिस वाले पहचान लेंगे और रैश ड्राइविंग में अंदर कर देंगे । पिछली बार हजारों दे दिवा कर पिंड छूटा था वर्दी वालों से ।

मित्रों, यह थी कहानी उस रात थ्रिलिंग ट्रैक्टर ड्राइव की । इसमें कुछ मसाला मैंने अपने से जोड़ा है लेकिन 95 प्रतिशत घटनाएं एक दम सच्ची हैं । हां देवधर बाबू इस तरह की ड्राइव पब्लिक डिमांड पर ही करते हैं वह भी रात के सन्नाटे में । यह लेख भी में रात के सन्नाटे में ही लिख रहा हूं इसलिये अब आप लोगों से अनुमति लेकर कुछ देर बेड पर शवासन करना चहूंगा । नमस्कार ।

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