काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

रविवार, 19 नवंबर 2017

आओ खेलें दंगा-दंगा

(मित्रों, बरेली शहर पिछले 15 दिनों से दंगे की आग में झुलस रहा है । दंगा और नंगा में ज्यादा फर्क नहीं होता है । नई शताब्दी का स्वागत भी हमने गुजरात दंगों से किया था । दंगा अपने आप में धर्मनिरपेक्ष होता है । कैसे ? जानने के लिये पढ़िये गुजरात दंगों पर लिखा व्यंग्य : आओ खेलें दंगा-दंगा ।)

बड़ा फक्र है मुझे अपनी संस्कृति, परंपराओं, इतिहास, दर्शन, अध्यात्म, अपने धर्म, अपने देश की मिली जुली संस्कृति पर, आपसी भाई चारे पर, धर्मनिरपेक्षता पर, समाजवाद पर । महान धर्म के अनुयायियों ने अपने अपने नाड़े खोल दिये और दुनिया को दिखा दिया कि हमें मौका मिलना चाहिये । हमें नंगा होन से कोई परहेज नहीं हे । ये सभ्यता के चङ्ढी-बनियाइन हमारी त्वचा में चर्म रोग फैलाते हैं । जन्म के कोढ़ी हैं हम । एक मौका दीजिये हमें । हम आपके सामने आज से दस हजार साल पुराना मानव पेश करेंगे जो कि बड़े प्यार से नरभक्षी था । माफ कीजिये हम इतिहास में अनोखे हैं । हमारी सानी इतिहास में नहीं मिलेगी । नई टेक्नोलॉजी । अधुनिक युग के शैतान की तुलना आप हजारों साल पहले के इंसान से नहीं कर सकते हैं । हमारे हाईटेक वहशीपन का कोई पैमाना अभी तक नहीं तैयार हुआ है ।

दंगा क्या होता है ? दंगा होता है ब्लैंक चेक । दंगा होता है कल्पवृक्ष । दंगा होता है शिव का वरदान (जो भस्मासुर को मिला था ।) दंगा होता है दुश्मनी निकालने का सुनहरा मौका । पहले मानव, असुर तपस्या करते थे वर्षों । कठिन तपस्या । खड़े हैं एक पैर पर । आग का घेरा चारों तरफ । बड़ा पसीना बहाने के बाद देवता प्रकट हुये । एकाध वरदान मांगा, दूसरा अभी सोच रहे हैं कि क्या मांगे तब तक देवता फरार । किसी असुर ने तपस्या कर के देवता को फिर प्रसन्न किया । देवता प्रकट हुये । असुर ने अपनी समस्या बताई कि प्रभू आपका नाम जपते जपते हम भूल जाते हैं कि क्या मांगने के लिये तपस्या की थी । आप पहले यह प्रॉब्लम साल्व करो । देवता मुस्काए । बोले फिकर मत करो । कलयुग में हम वैसे भी प्रकट नहीं होंगे, इसलिये जब भी तुम तपस्या करोगे हम देश में दंगे करवा देंगे । जो चाहोगे । मिल जायेगा । रूपया, जवाहरात, औरत जो चाहना लूट लेना । सारी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी । ये लो तलवार जल्दी शहर भागो, दंगा शुरू हो चुका है । वीर भोग्ये वंसुधरा ।

संत, फकीर कहते हैं कि अल्लाह और ईश्वर एक हैं । एकदम सही । दंगाई भी यही मानते हैं । पाकिस्तान भी हमारे राम को मानता है और श्री राम पाकिस्तान की मनोकामना पूरी भी करते हैं । ईश्वर हिंदू, मुसलमान में भेद नहीं करता है । आई.एस.आई. ने राम नाम जपा और गुजरात दंगों में जलने लगा । भगवान की निगाह में मानव और असुर सभी बराबर हैं । नाम जपो वरदान पाओ । लोग गलत कहते हैं कि हिंदूओं ने दंगा किया, मुसलमानों ने दंगा किया । दंगाई पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष होते हैं । वह यह नहीं देखता कि सामने वाली दुकान हिंदू की है या मुसलमान की । वो देखता है कि ये सुनार की दुकान है । ये बाटा का शो रूम है । घर मे कलर टी.वी. नहीं है इसलिये कुछ दंगाई सैमसंग के शो रूम में मंदिर निर्माण करते हैं । इस घर में औरते इतनी सुंदर क्यों हैं । साली देखती तक नहीं थी पहले, आज इसको देखते हैं । दंगाई पूरे समाजवादी होते हैं । राजा और रंक, अमीर और गरीब सभी से कुछ न कुछ मतलब लायक जुगाड़ कर लेते हैं ।

एक परामानंद और प्राप्त होता है । एक लंबा सा छूरा लेकर या तलवार लेकर निकल जाईये सड़क पर । नहीं नहीं कट्टा, तमंचा, बम फालतू चीज है । इनमें वो मजा कहाँ । सड़क पर कोई मजदूर, रिक्शा वाला या भिखारी तो मिल ही जायेगा, बस और क्या चाहिये । एक बार में, पूरी ताकत से तलवार घुमाइये । सिर धड़ से अलग । अब लीजिये मजा सरकस का । बिना सिर का आदमी कुछ मिनट तक ज़ोरदार डांस करेगा । बिल्कुल पी.सी. सरकार के जादू के खेल की तरह । आया न मजा । इसी तरह से किसी मुसाफिर के पीछे से पूरी तलवार उसकी पीठ में भोंक दीजिये । दो बार आड़ी तिरछी कर के ऊपर नीचे घुमाइये फिर निकाल लीजिये । बचपन में कुत्ते के पूछ में पटाखे बांध कर कितना मजा लिया था । इससे सौ गुना मजा अब लीजिये । वो आदमी अपनी बाहर निकली हुयी अंतड़ियों को देख कर बुरी तरह घबरायेगा । उसके शरीर से झरता हुआ खून और गिरता पड़ता भागता वह आदमी । वल्लाह, है न मजेदार खेल । अब जरा बांयी तरफ देखिये एक कटी टांग उछल उछल कर कितना प्यारा भांगड़ा कर रही है । जरा गौर से देखिये आप की ही टांग है क्योंकि पता नहीं कब कोई दूसरा तलवार बाज आपके पीछे जाने कहां से आ गया और आपकी एक टांग उसने घुटने से उड़ा दी है । ये लीजिये अब आपका शरीर बिना सिर के रॉक एन रोल कर रहा है । दंगा जोरों पर है । 

ओहो ! भूला । दंगे का सबसे मजेदार खले तो बताया ही नहीं । सपोज किजिये कि आप दो-चार सौ की भीड़ लिये दंगा-दंगा खेल रहे हैं । जो रास्ते में मिलता है उसका कीमा बनाया जाता है । इस खेल के लिये कुछ पुराने घाघ पेट्रोल या मिट्टी के तेल का कनस्तर ले कर चलते हैं । रास्ते की दुकानों और घरों को फूंकते चलिये । एक छोटे से घर में आग लगा दी आपने । अब घर के सदस्य पुरूष, महिलायें, बच्चे बिलबिलाते, चिल्लाते बाहर निकल रहे हैं । उनको पकड़ कर उन पर प्रट्रोल उड़ेल दीजिये और जलते घर में दुबारा फेंक दीजिये । है न रोमांचक खेल । टी.वी. पर देखा होगा कि एक आदमी फायरप्रूफ जैकेट पहन कर शरीर पर आग लगाकर ऊंचाई से कूदता है, पर साला हर बार बच जाता है । लेकिन अपके खेल में पूरा आनंद है । आग की लपटों से घिरा आदमी या बच्चा या औरत बेतहाशा चीख रहा है । चारों तरफ भाग रहा है । कुछ देर में जमीन पर गिर पड़ता है । जलते हुये इंसानी मांस का धुंआ कितना खुश्बूदार होता है ।

बड़े खुश हैं आज आप । काफी जेवरात, नगदी और एक डी0वी0डी0 प्लेयर लेकर घर आ रहे हैं । आज बीवी बड़ी खुश होगी । बड़ी फरमाईश थी उसकी सोने के जेवर पहनने की । बूढ़ी माँ का मोतियाबिंद का आपरेशन भी हो जायेगा । पैसा काफी लूटा है आपने । गली में घुसते ही सांप सूंघ गया आपको । पूरी की पूरी गली धूं धूं कर के जल रही है । पूरी ताकत से दौड़ते हुये, जलते हुये किवाड़ को लात से खोल कर अंदर आते हैं । सामने है बूढ़ी माँ की लाश । एक लंबा छूरा उसके सीने में । बगल में ही पांच साल के बच्चे की कमर से दो टुकड़ा लाश । धड़कते दिल से जब अपने कमरे में पहुंचते है तो वहाँ वही जाना पहचाना धुआं । एक औरत का नंगा शरीर जल कर कोयला हो चुका है । ये थी आपकी दु:ख सुख की साथी । आपकी अर्धागिनी । लगता नहीं की जो घर आप एक घंटे पहले उसके रहने वालों के साथ जला कर आये थे, वो आपका ही था । बड़ा गंदा खेल है साला दंगा । बस सिर्फ खेलने वाले को ही मजा आता है । फिलहाल गुजरात में होलिका दहन भी हो गया और बकरीद भी मना ली गई ।

क्या जब एक हिंदू बच्चा पैदा होता है तो उसके सिर पर ताज होता है और एक मुसलमान बच्चा पैदा होता है तो उसके पूंछ लगी होती है । क्या मुसलमान का खून हरा होता है । एक पांच साल के बच्चे से पूछिये कि उसका क्या धर्म है तो वह कोई जवाब नहीं देगा । उसे जात-पात, धर्म, संप्रदाय, अमीरी-गरीबी किसी से कोई मतलब नहीं होता है । वह एक दम स्वच्छ, निर्मल और पवित्र होता है । इसीलिये बच्चों को भगवान का रूप कहा जाता है । पर जैसे जैसे वह बड़ा होता है हम उसको अपनी घटिया सोच, संकीर्ण मानसिकताओं से भरपूर कर देते हैं । और फिर नई बोतल में पुरानी शराब, नई टेक्नोलाजी पुराने ढर्रे पर, वही पुरानी कहानी फिर दोहराई जाती है । वह हम जैसा ही बन जाता है ।

आज भगवान राम अपने पैदा होने पर मातम मना रहे होंगे । सीताजी को रावण की कैद से छुड़ाने के लिये भगवान राम ने इतने राक्षस नहीं मारे होंगे जितने इंसान आज उनके मंदिर के नाम पर काट डाले गये । बड़े शान से हिंदू मुस्लिम भाई-भाई का नारा दिया जाता है । कितना बड़ा झूठ है यह । मात्र एक चिंगारी इस देश में आग लगाने के लिये काफी है । एक हजार साल से हम एक ही जमीन पर, एक देश में साथ रहते आ रहे हैं पर दूसरे की भावनाओं की कभी इज्जत नहीं की । सेकुलर होने का ढ़िंढ़ोरा पीटने के लिये रोज गले मिलते हैं पर मन में साला कटुआ और हरामी काफिर ही होता है । बस एक बात का रोना कि हमारा धर्म महान, तुम्हारा धर्म घटिया । काहे के महान जब दूसरे को प्यार और इज्जत नहीं दे सकते हो । लानत है तुम्हारे ज्ञान, बुध्दि, शांति, अहिंसा, भाईचारे पर । जो इंसान की जान की कीमत नहीं समझता उसके लिये भगवान मात्र एक पत्थर के टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं है ।

एक जमीन के टुकडे क़े लिये इतनी लाशें, इतनी बरबादी, इतनी तबाही । लड़ाई सिर्फ इतनी है कि मैं वहाँ अपने अल्ला मियां की इबादत करूंगा या मैं वहाँ अपने राम की पूजा करूंगा । जबकि दोनों ही उस एक परम सत्ता, परमेश्वर के मात्र अलग-अलग नाम हैं । मंदिर मुद्दा अगर सुलझ सकता है तो बस आपसी बातचीत से । सुप्रीम कोर्ट भी जनता की धार्मिक भावनाओं को छेड़ने का प्रयास जल्दी नहीं करती है । ऐसे मुद्दे बरसों के लिये लटके रहते हैं और राजनेता इन चूल्हों पर वोट की रोटियाँ सेंकते रहते हैं । फिलहाल न तो कोर्ट और नहीं कोई राजनैतिक पार्टी वहां पर मस्जिद का निर्माण करा सकती है । तो फिर क्यों न वहां मंदिर ही बनने दिया जाये और उसके बगल में एक मस्जिद का भी निर्माण हो जो कि हमारी अनेकता में एकता का ढ़ोल पीटे, खोखले भाईचारे को प्रदर्शित करे पर वास्तव में इस खूनी मुद्दे को हल करने का मात्र एक सफल प्रयास हो । इसके अलावा कोई और हल हो तो मुझे जरूर बतायें ।

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