काम ऐसे करो कि लोग आपको….

किसी दूसरे काम के लिए बोले ही नहीं….

रविवार, 19 नवंबर 2017

दुख के सब साथी सुख में न कोय

क्यों भईया ! चौंक गये ने शीर्षक देख कर । आप सोचोगे कि ‘गोपी’ फिल्म में तो दिलीप कुमार ने तो कुछ और ही बताया था । हो सकता है कि इसके पहले किसी दोहा रचइता ने इसे छाप मारा हो । पर हण्ड्रेड परसेंट सही बोल रहा हूं । आज पूरी दुनिया आपको अपने दुख में रोती मिलेगी, सुख में कोई नहीं आता हाथ बटाने । आज सच्चा सुख दूसरे को दुखी देखने में है और उसके ऊपर यह एहसान लादने में है कि देख मैं तेरे दुख में दुखी हूं । अंतरात्मा तो मारे खुशी के राग मालकोश गा रही होती है । बहुत सुखी रहता था नालायक, अब थोड़ा पतझड़ का भी मजा चख । जाहिर है कि आज का सच्चा दुख दूसरे को सुखी देखना है । आत्मा की खुशी कोढ़ की तरह गल गलकर टपकने लगती है । इसलिये इंतजार है कि कब अगला खून के आंसू रोवे और हमारी आंखों से खुशी के आंसू झरने लगे । बताया तो यही जाता है कि भाई तेरा दुख देख कर आंखे रो रही हैं । पर अंदर सुख का सागर हिलोरें ले रहा होता है और खुशी के चक्रवात की कुछ लहरे आंखों से भी छलकने लगती हैं ।

तो फिर अब आप समझ ही गये होंगें कि परिवर्तन कितना निष्ठुर होता है । पहले तो लोग यह सोचते थे कि भईया दुख में ही अपने परायों की पहचान होती है । जो दुख में काम आये वही अपना सच्चा साथी है । इस लिये परायों ने सोचा इस फार्मूले की कोई तगड़ी काट निकालनी चाहिये, सो सारे पराये दुख के समय एक साथ पहुंच कर घड़ियाल के भाई बंधु बन जाते हैं । हमे लगता है कि अपने ही आये हैं, हमारे दुख में दुखी हैं । लेकिन वो यह देखने आते हैं कि हमारे दुख का मरकरी कितने सेंटीग्रेट पर है और आगे कितान ऊंचा और पहुंच सकता है । यह देख कर उनके कलेजे को ठंडक मिलती है । दूसरों के हरे भरे जीवन को रेगिस्तान बनता देख उनकी अंतरात्मा कश्मीर की ठंडी वादियों में विचरण करने लगती है ।

आप सोचोगे, चलो कोई तो अपना पहुंचा जो मेरे दुख में दुखी है, कुछ न कुछ मदद तो अवश्य मिल जायेगी । पर आपके मदद मांगते ही वह अपनी दुखों की गठरी खोल देगा । उसके दुख ऐसे होंगे जैसे जमीन पर एक कुदाल मारने पर पानी फूट पड़ता है, वैसे ही उसके दुख मदद की कुदाल लगते ही फूट पड़ते हैं, कल-कल करके बहने लगते हैं । इसके पहले की आप उसके दुखों की बाढ़ में बह न जायें मदद की दरख्वास्त वापस ले लेते हैं । चलो भईया इस बुरे वक्त पर आ गये, दो मीठे बोल बोल दिये, हमारी पीड़ा को समझा यही बहुत है । सबकी अपनी अपनी परेशानियां होती है । सब मदद नहीं कर पाते । आ गये । गले मिलकर रोलिये । यही बहुत है ।
अगला छूटते ही मंदिर जायेगा । एक नारियल तोड़ेगा और सवा पांच रूपये का प्रसाद भी चढ़ायेगा ।

वैसे अगर आपके पास कोई दुखियारा पहुंच कर अपने दुखों को गाने लगे तो यह खतरा तो बन ही जाता है कि अब इनकी मदद भी करनी पड़ेगी । जाहिर जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूं कि मानवों के लिये दूसरों के दुख च्यवनप्राश के समान होते हैं । तेरा दुख देख कर मेरा ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है । मेरा सुख देख कर तुझे हार्ट अटैक हो जाता है । सो भाई लोगों, अगर आपके पास ऐसा ही कोई दुखियारा दीन हीन हालत में फरियादा लेकर पहुंचता है और आप उसकी मदद बिना नगदऊ खर्च किये हुये करना चाहते हैं तो इस सूत्र को अजमाईये । मेरे पास अगर कोई फरियादी पहुंचता है तो मैं यही जताता हूं कि भईया तुझसे ज्यादा दुखी तो मैं अपने लड़के से हूं । लड़के नालायक निकल जायें तो सबसे बड़ा दुख होता है आदमी को । पूत सपूत तो का धन संचै । पूत कपूत तो का धन संचै । इतना सुनते ही फरियादी की सांसे लौटने लगती हैं । थोड़ी राहत महसूस हुई । चलो मैं ही अकेला नहीं हूं । ये मि. सुखी भी दुखी हैं । लेकिन इतने में लड़के की सांस फूलने लगती है । वह हांफने लगता है । आखिर उसे नालायक जो घोषित किया जा चुका है । कोई ऐसे थोड़े ही नालायक हो जायेगा । बरहाल मि. दुखी को सांत्वना मिल जाती है । मेरे क्लेश उनके लिये ग्लूकोज़ की बोतल होते हैं । थोड़ी ताकत मिली, थोड़े दिन और जिया जा सकता है । अपन भी रोकड़ के बहिगर्मन पर रोक लगा देते हैं । पूरी दुनिया को सुखी करने का ठेका मैंने तो ले नहीं रखा है ।

दूसरों को सुखी करने के तरीके और भी है । जैसे मुझको पता है श्रीमान ‘अ’ जिनके लिये मेरे परिवार की खुशियां आयोडाइज्ड नमक के समान है । सुना नहीं की बी.पी. लांच हुआ । उनकी सेहत अल्ला ताला बनाये रखे इसलिये मैं खुद दुखी होने की कहानियां गढ़ता रहता हूं और ऐसी कोई खबर उन तक नहीं पहुंचने देता जिससे कि वे दबा के बोझ तले दब सकें । एक दिन रास्ते में मिल गये । ”कहिये मिश्रा जी, छोटे का बोर्ड का रिजल्ट आ गया ? बच्चा सेंकेण्ड डिविजन निकल गया हैगा । चलिये बढ़िया हुआ ।“

मैं भी नहीं बताता हूं कि छोटे का तीन विषयों में डिस्टिक्शन है । फालतू में उनकी सांस रूक सकती है । उनका लड़का भी तो सेकेण्ड डिविजन है । इस तरह से समाज सेवा भी हो जाती है । मि. ‘अ’ खुश है कि मिश्रा का लड़का पढ़ने में खास नहीं है । मैं खुश हूं कि कैसा बेवकूफ बनाया ‘अ’ को । जब उसे वाकई में पता चलेगा कि छोटे को तीन विषय में डिस्टिक्शन मिली है तो उसको ब्रेन हैम्रेज हो जायेगा जो कि मेरी तंदुरूस्ती की आधारशिला होगी ।

इसी तरह मुझको पता है कि श्रमान ‘ब’ भी श्रीमान ‘अ’ के समान ही हैं और उनको दुखी करने में मुझे एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के समान सुख की प्राप्ति होगी तो मैं इनके सामने गप्पे हांकने में भी संकोच नहीं करता हूं । एक दिन रास्ते में मिल गये ।

”ओ हो ! मिश्रा जी, कैसे हाल चाल हैं आप के ।“

”सब आपकी दया से सुचारू रूप से ठीक ठाक चल रहा है । सुरेश का मेन में हो गया । इंटरव्यू का बुलाया आया है । देखिये क्या होता है । इतना सुनते ही मि. ‘ब’ के दोनों साइड में फालिस के लक्षण प्रकट हो जायेंगे । अपने को बेइंतहा खुशी होगी । बाद में कह दूंगा कि इंटरव्यू में पैसा चल गया । सुरेश को छांट दिया गया । वो भी इतना सुन कर नार्मल हो जायेंगे पर उनका दुख मुझे असीम संतोष प्रदान करेगा ।“

मनुष्य एक सामाजिक जानवर है । वह अपने सुख दुख समाज में ऐसे ही बांटता है । मनुष्य ब्रह्मा का बनाया हुआ सर्वाधिक ईश्र्यालू प्राणी है । ईश्र्या इसकी प्राण वायु है । बिना ईश्र्या किये इसका जीवन कटता ही नहीं है । चार आदमी इकठ्ठे हो कर किसी पांचवे के दोष गिनते हैं । सुख दुख शायद ब्रह्मा ने इसी लिये बनाये थे कि एक का दुख देख कर दूसरा सुखी हो सके । यही हमारे सुख-दुख नापने का पैमाना भी है । निन्दा करने से बड़ा सुख और टाईम पास करने का तरीका और दूसरा नहीं है । हम अन्नतकाल तक बिना खाये पीये निन्दा तप कर सकते हैं । निन्दा करना सबसे बड़ा तप है और इससे प्राप्त संतोष मोक्ष के समान होता है । अन्तर का गुबार निकाल कर मानव वायु के समान हल्का हो जाता है । आत्मा परमतत्व की स्थिति प्राप्त करती है । यह अवस्था प्राप्त करने के पश्चात मनुष्य सामान्य हो जाता है और बाकी कार्य सुचारू ढंग से करने लगता है । फिलहाल तो मेरी तबीयत खराब हो रही है क्योंकि मेरा पड़ोसी नई मारूती खरीद कर लाया है और मेरे पास मेरा पूज्य पिताजी की सन 62 की लमरेटा है ।

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