गुरुवार, 16 नवंबर 2017
हास्य नाटक – काले घोड़े की नाल की अंगूठी
”इम्तिहान में बच्चा पास न होता हो । बच्चे को स्कूल में कुछ समझ में न आता हो । बच्चा बड़ा होने पर भी बिस्तर गीला कर देता हो । बच्चे के दांत समय से न निकल रहे हों । धंदा मंदा चलता हो, बिजनेस व्यौपार में हमेशा घाटा होता हो । ग्राहक उधारी माल ले जाये और बाद में आपको पहचानना बंद कर दे । आफिस में बॉस हमेशा बांस ले कर खड़ा मिले । पत्नी से कलह हर दिन का पंचाग बन जाये । घर में पढ़ा लिखा लड़का बेरोजगार बैठा हो । मनपसंद लड़की आपको पसंद न करे और प्रेमिका आपको पहचानने से इंकार कर दे । घर में जवान बेटी के हाथ पीले करने की चिंता में आप खुद पीले पड़ते जा रहे हों । पड़ोसी से हर दिन झगड़ा फसाद मचा रहे । कोर्ट में मुकद्दमा खत्म होने का नाम न ले और इधर आपकी सारी पूंजी मय मकान, खेत, जेवर सब बिकती जाये । पुलिसवाले रोज थाने में हाजिरी लगवाते हो । अस्पताल के खर्च से आपका दीवाला निकल रहा हो या फिर आपके हाजमें का इलाज किसी भी वैद, हकीम, लुकमान के पास न मिलता हो । खाना खाते ही खट्टी डकारों का आना । तेज दस्त लगना या फिर लाखों इलाज के बाद भी भूख न लगना । खूनी बवासीर हो या फिर बादी भगंदर…… आपके हर रोग और परेशानी का हल है हमारे पास । हजारों परेशानियों की बस एक दवा………..एक दवा………एक दवा……………..शनी की साढ़े साती का 100 प्रतिशत गारंटी के साथ इलाज करने वाली “काले घोड़े के नाल की अगूंठी”……………… “काले घोड़े के नाल की अगूंठी” ……………कीमत मात्र दस रूपया, दस रूपया, दस रूपया, दस रूपया ।
घर के पूजाघर में जीतलाल ऊन के आसन पर बैठा “ॐ शनिश्चारय नमः” जाप कर रहा है ।
पुष्पा हाथ में चाय का कप लिये मुस्कुराती हुयी स्टेज पर आती है । पुष्पा को मुस्कुराते आता देख कर जीतलाल कहता है ।
जीतलाल : सब जानता हूँ कि क्या पढ़ते हो । गुलशन नंदा के उपन्यासों की एक लंबी कतार तुम्हारे सिरहाने रखी है । मुझे चराने की कोशिश मत करो । बड़ा भाई हूँ तुम्हारा । आधे से ज्यादा उपन्यास मेरी ही अलमारी से निकाले हैं तुमने ।
जीतलाल: अरे चंपकलालजी, जो सुख आपके हाथ से पानी पीने में है वो खुद ले कर पीने में कहॉं ?
चंपकलाल : अरे कलाकार आदमी हैं । थोड़ी वाह वाह कर देंगी तो साहित्य कल्याण हो जायेगा ।
पुष्पा : तुम नहीं सुधर सकते । मैं ही पत्थर से सर टकरा रही हूँ…..
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